राजनीति का पारा बिहार में गर्म है। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री बिहार से बाहर के बिहारियों को गोलबंद करने में जुटे हैं। दिल्ली में दो कार्यक्रमों के जरिये नीतीश ने बिहार से बाहर रह रहे बिहारी वोटरों को लुभाने की कोशिश की है। नीतीश कुमार की ये कोशिश आगे भी जारी रहेगी। अभी दिल्ली में हुआ है। इसके बाद मुंबई, कोलकाता, गुवाहाटी में भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी है। इस बार बिहार से बाहर नीतीश की इस कोशिश के खास मायने हैं। विधानसभा का चुनाव जिस वक्त होने वाला है उस वक्त छुट्टियों का मौसम रहेगा। दशहरा से लेकर दीवाली से पहले तक चुनाव होने की उम्मीद है। नीतीश और उनकी पार्टी की कोशिश यही है कि बिहार से बाहर जो लोग हैं उनके बीच उनका कथित सुशासन का संदेश आसानी से पहुंचाया जा सके।
दिल्ली, मुंबई, गुवाहाटी, जालंधर, लुधियाना, सूरत, अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों में बड़ी संख्या में बिहार के लोग रहते हैं। दिल्ली में तो करीब तीस फीसदी आबादी बिहार के लोगों की है। जवाब में बीजेपी भी गुजरात, पंजाब, हरियाणा के शहरों में बिहारी सम्मेलन करने वाली है। नीतीश कुमार अपने भाषण में हर जगह ये जिक्र कर रहे हैं कि उन्होंने बिहारी शब्द को सम्मान दिलाने का काम किया है। हैबिटेट वाले कार्यक्रम में और श्रीराम सेंटर दोनों ही कार्यक्रमों में नीतीश बिहार के लोगों से कहते सुने गए कि लोग अब बिहारियों पर फब्तियां नहीं कसते, सम्मान करते हैं।
बात सही भी है। नीतीश कुमार का इसमें बहुत बड़ा योगदान है। नीतीश के सत्ता में आने से पहले मेरा देखा हुआ है कि दिल्ली में बिहार के छात्र खुद को बिहारी कहने से कतराते थे। लेकिन 2005 के बाद परिस्थितियां वाकई में बदली है। लेकिन नीतीश जी आपको ये भी बताना चाहिए कि किन लोगों की वजह से बिहारी शब्द गाली का पर्याय बना ? आज जिन लालू के साथ आप गलबहियां कर रहे हैं उन्हीं के दिये गड्ढ़ों को तो आप भर रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था को लेकर सुशासन का दंभ आप भरते हैं, भरना चाहिए क्योंकि आपने ऐसा किया है। लेकिन आपको बिना किसी हिचक के ये भी बताना चाहिए कि इन चीजों के लिए लालू,राबड़ी और कांग्रेस की हुकुमतें जिम्मेदार रही हैं। लेकिन आप आज की तारीख में ऐसा कहने की हिम्मत नहीं जुटा सकते। क्योंकि आप उन्हीं लोगों की बैसाखी के सहारे अभी सरकार चला रहे हैं और आगे भी उन्हीं की बैसाखी के सहारे सत्ता में बने रहना चाहते हैं। तो क्या आपके मुंह से आज की तारीफ में बिहारी सम्मान की वापसी का जिक्र करना शोभा देता है ?
जिन परिस्थितियों में बिहारी शब्द कहा जाना गाली हो गया था क्या उन परिस्थितियों की बिहार वापसी चाहता है? मुझे लगता है कि नीतीश जी को अपने स्तर पर सर्वे करवाना चाहिए। वाकई आप बिहार का भविष्य सोच रहे हैं तो फिर आपके अपने पर भरोसा करना चाहिए। जिस जाति की राजनीति को बिहार भूलने लगा था। उस जाति की राजनीति को आज फिर से क्यों उभारा जा रहा है ? नीतीश जी आपसे बिहार जानना चाहता है। बिहार से बाहर रहने वाले बिहारी जानना चाहते हैं कि क्या विकास विरोधी छवि वाले चारा घोटाले में जेल की सजा काट आए लालू से हाथ मिलाने की मजबूरी आपके कमजोर होने का संकेत नहीं है ? नीतीश जी आप राजनीतिक रूप से कमजोर हुए हैं तो अपनी वजह से।
लालू से हाथ मिलाने का फैसला आपका अपना था। जिस वक्त आपने लालू से हाथ मिलाया क्या उस वक्त आपको इस तरह के कार्यक्रम आयोजित कर बिहारियों से राय लेने की जरूरत नहीं थी ? अगर उस वक्त ऐसा करते तो शायद आपको लोग सही राह दिखाते।ऐसा नहीं है कि लालू यादव राजनीतिक रूप से कमजोर हैं। लालू की राजनीति का अपना स्टाइल है। अपने तरीके से राजनीति करके लालू ने बिहार को बर्बादी के गड्ढे में धकेल दिया। दस साल से नीतीश कुमार उसकी भरपाई कर रहे हैं। जात-पात, अगड़ा-पिछड़ा, दलित-सवर्ण, भूराबाल, चरवाहा विद्यालय, पहलवान विद्यालय ये सब लालू की राजनीति का हिस्सा था। दंगों का डर दिखाकर मुस्लिमों के वोट बटोरने के आरोप लालू पर लगते रहे। अब उनके साथ जाकर आप बिहारियों के बीच अपने कथित सुशासन का संदेश दे रहे हैं।
आप भले ही कानून व्यवस्था को लेकर श्रीराम सेंटर में हुए हंगामे को हल्के में ले रहे हैं। लेकिन बहुत मुमकिन है कि आपको इस तरह की तस्वीरों का सामना बिहार में भी करना पड़े। ऐसा नहीं है कि आपके राज में अपराध पर बिल्कुल ब्रेक लग गया था। घटनाएं तब भी होती थी, आज भी हो रही हैं। फर्क इतना है कि तब अफसरों पर सिर्फ आपका जोर चलता था आज लालू भी जोर लगाते हैं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी एसएसपी को फोन करके हड़काते हैं।
कहने का मतलब ये कि ये सब सबूत है कि सत्ता पर आपकी पकड़ ढीली पड़ती जा रहा है। अफसरों के तबादले पहले भी होते रहे हैं, मांझी के जमाने में भी हुए। तब किसी ने सवाल नहीं उठाए। आज बीजेपी वाले ताल ठोककर कह रहे हैं कि लालू और कांग्रेस नेताओं की मर्जी वाले अफसर बिठाये जा रहे हैं।
इस बात का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि दस साल पहले तक यही लोग अफसरों को पॉकेट में रखने की बात करते थे। मंच पर खैनी बनाने से लेकर पीकदान उठाने तक की तस्वीर देश के लोग देख चुके हैं। आज फिर जब बिहार से बाहर चौक चौराहों दफ्तरों में चर्चा होती है तो लालू का जिक्र हो रहा है। लोग कह रहे हैं कि लालू का राज लौट आया है। लालू राज लौटना ऐसे कहा जा रहा है जैसे कोई ऐसी ताकत वापस आ गई है जिससे बिहार बुरे दौर में लौटने वाला है।
सर्वे के नतीजों के देखें तो नीतीश जी आप अच्छी राजनीति के लिए जाने जाते हैं। लोग आज भी कह रहे हैं कि नीतीश अच्छे हैं लेकिन लालू का साथ लेकर उन्होंने अच्छा नहीं किया। बिहार के मूड को समझिए। राजनीति एक दो दिन की चीज नहीं है। हो सकता है वोटों के समीकरण के हिसाब से आप सत्ता में दोबारा लौट आए। लालू और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार भी बना लें। लेकिन तब क्या आप उस ईमानदारी और हिम्मत से काम कर पाएंगे जिस तरीके से आज तक करते आए हैं ? तब आपकी गिनती भी लालू के साथ होगी। तब आप भी उन लोगों में शुमार होंगे जिन्हें बिहार को उठाकर पटकने के लिए पहचाना जाएगा।
लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है। राजनीति चीज ही ऐसी है। पहले नेता अपनी हैसियत और ताकत तौलता है फिर जनता का नंबर आता है। जिन जॉ़र्ज फर्नांडिंस ने अपनी पूरी राजनीतिक जिंदगी कांग्रेस के खिलाफ लगा दी। आप उन्हीं जॉर्ज के शिष्य हैं। जॉर्ज के साथ आपने समता पार्टी का गठन किया था। जॉर्ज न होते तो आप शायद बिहार के मुख्यमंत्री कभी नहीं बनते। लेकिन कुर्सी पाने के बाद आपने पहले जॉर्ज को छोड़ा,फिर जॉर्ज की विचारधारा को। जॉर्ज बुजुर्ग हो गये तो उन्हें राजनीति से दूर कर दिया। लेकिन जॉर्ज के साथ रहे लोग जो आपके राजनीतिक साथी भी थे उनके साथ आपने क्या किया ?
बीजेपी से रिश्ता तोड़ने के लिए शिवानंद तिवारी, साबिर अली को आपने हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। लेकिन मौका मिला तो दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर कर दिया। उपेंद्र कुशवाहा, भगवान सिंह कुशवाहा, ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, डॉक्टर अरुण कुमार, डॉक्टर हरेंद्र कुमार, दिनेश कुशवाहा ये सब लोग आपके संघर्ष के दिनों के साथी थे। जब आप बिहार में अपनी जमीन बना रहे थे तब इन लोगों ने आपके मशाल को दिन रात जलाए रखा था। लेकिन इनके साथ क्या किया आपने ? मैं ये नहीं कह रहा कि इन सब मामलों में आपकी एकतरफा गलती है। लेकिन आप नेता थे इनको आपको सोचना चाहिए था। ऐसा क्या हुआ कि आपके अपने दूर चले गए और दुश्मन दोस्त हो रहे हैं ?
पीएम मोदी ने डीएनए वाला बयान दिया तो कैसे आपको दुख हुआ और आपने उसे बिहार के सम्मान से जोड़ दिया। उसी तरह पार्टी और बिहार में जो हो रहा है उसे भी अपने अपमान और सम्मान से जोड़कर देखिये तब बिहार का भी भला होगा और बिहारियों का भी।
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