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लवली आनंद, आनंद मोहन |
लोकसभा चुनाव में भले ही बीजेपी
ने किसी बाहुबली को टिकट नहीं दिया लेकिन पार्टी ससानबाहुबलियों से दूरी बनाकर भी
नहीं रह सकी। इस बार भी विधानसभा चुनाव में बीजेपी बाहुबलियों को गले लगाने वाली
है। सहयोगी पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा में लवली आनंद का शामिल होना इसकी
शुरुआत है। लवली आनंद बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी हैं। लवली शिवहर या सहरसा की
किसी सीट से उम्मीदवार हो सकती हैं। बिहार
की राजनीति में बाहुबलियों की एंट्री की शुरुआत आनंद मोहन के विधायक बनने के समय
ही शुरू हुई थी। आनंद मोहन पहली बार 1990 में विधायक का चुनाव जीते थे। उस वक्त
उनका बाहुबली वाला रूप चरम पर था। बाद में वो सांसद भी बने और अभी डीएम हत्याकांड
की वजह से जेल में हैं। आनंद मोहन को राजपूतों का नेता माना जाता था।
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पप्पू यादव, रंजीत रंजन |
बाहुबली कहे जाने वाले पप्पू
यादव अगर बीजेपी के करीब नहीं हैं तो दूर भी नहीं हैं। पप्पू को विद्रोह के बाद
लालू ने पार्टी से निकाल दिया था। जिसके बाद से वो अपनी नई पार्टी बनाकर लालू का
नुकसान करने में जुटे हैं। पप्पू यादव लालू को जितना नुकसान पहुंचाएंगे बीजेपी को
उतना ही फायदा होगा। यूं तो पप्पू की निगाहें पूरे बिहार पर है । लेकिन कोसी और
पूर्णिया प्रमंडल की 37 सीटों पर उनका प्रभाव लालू-नीतीश के गणित को बिगाड़ सकता
है। पप्पू यादव का अपने इलाके में मुसलमान और यादवों पर अच्छी पकड़ है। वैसे
रॉबिनहुड वाली छवि की वजह से अपने इलाके में वो हर समाज में लोकप्रिया माने जाते
हैं। लेकिन राज्य के बाकी हिस्सों में आम लोगों के बीच उनकी छवि अच्छी नहीं मानी
जाती।
बिहार की राजनीति में बाहुबलियों
का अपना अलग ही महत्व है। चुनाव जीतने के लिए तमाम पार्टियां अपने समीकरण के हिसाब
से बाहुबलियों को गले लगाती रही है। बाहुबली नेता भी अपने हिसाब से पाला बदलते रहे
हैं। एक दौर में आनंद मोहन को लालू के खिलाफ प्रतीक के तौर पर माना जाता था लेकिन
1998 के चुनाव में उन्होंने लालू से हाथ मिला लिया था। लालू राज में बाहुबली छोटन
शुक्ला, अशोक सम्राट, बृजबिहारी प्रसाद, हेमंत शाही, प्रदीप महतो सहित दर्जनों बाहुबली
मारे गए। इसके बाद तो हर गली मोहल्ले में बाहुबली जन्म लेने लगे। बाहुबली बदमाशों
का भी जातीय वर्गीकरण होने लगा। लालू-राबड़ी के कार्यकाल में यादव बाहुबलियों का
वर्चस्व बढ़ा। इस दौरान समाज में जाति की दीवार चौड़ी होती चली गई। लालू राज में
जो बाहुबली राजनीतिक तौर पर सताए जा रहे थे, नीतीश के राज में उन बाहुबलियों में
से ज्यादा माननीय हो गए। 2000 के दौर में कहा जाता था कि नीतीश कुमार मुन्ना
शुक्ला को मानते हैं तो रामविलास पासवान की पसंद सूरजभान और रामा सिंह हैं। लालू
शहाबुद्दीन को गले लगाते हैं। यानी अपने वोट बैंक के लिए हर बाहुबली हर बड़े नेता
की पसंद हुआ करता था। साल 2000 में जब नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे।
उस वक्त बाहुबलियों ने नीतीश का साथ दिया था। विधानसभा के बाहर की एक तस्वीर काफी
चर्चित रही थी जब नीतीश कुमार ने निर्दलीय जीते बाहुबलियों के साथ हाथ उठाकर तस्वीर खिंचवाई थी।
सूरजभान, मुन्ना शुक्ला, जगदीश शर्मा, राजन तिवारी, धूमल सिंह सहित आठ-नौ बाहुबलियों के साथ हाथ उठाकर
नीतीश एकता का संदेश दे रहे थे। हालांकि उस वक्त सरकार नहीं बच पाई। लेकिन
बाहुबलियों से ये दोस्ती बढ़ती चली गई। बाहुबल का खौफ, पैसे की कमी नहीं और पार्टी
का जातीय हिसाब-किताब बाहुबली नेताओं की जीत की गारंटी बन गया। नतीज हुआ कि जिताऊ
बाहुबली नेता पार्टियों की पसंद बनते रहे और बाहुबली नेता भी सत्ता के साथ रहकर
अपनी झोली भरते रहे। राज्य में ज्यादातर बड़े बड़े ठेकों पर बाहुबलियों का ही
कब्जा है।
दस साल से बाहुबलियों का साथ
नीतीश-बीजेपी गठबंधन के साथ था। लेकिन इस बार तस्वीरें बदलती दिख रही है। जिन अनंत
सिंह के सामने नीतीश कभी हाथ जोड़े खड़े रहते थे उनको इस बार जेल भिजवा चुके हैं।
मोकामा से टिकट की गारंटी है कि नहीं कहा नहीं जा सकता। मोकामा बिहार की ऐसी सीट
है जहां मुकाबला बाहुबली बनाम बाहुबली का होता है। तरारी से विधायक सुनील पांडे अब
तक जेडीयू से जीतते आ रहे थे। किडनैपिंग केस में एक बार नाम आया तो जॉर्ज
फर्नांडिस ने पार्टी से बाहर तक कर दिया था लेकिन चुनाव के वक्त फिर से नीतीश की
पसंद बन जाया करते थे। पर इस बार गणित उनके पक्ष में नहीं है। जेडीयू के खाते में
सीट रही तो भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष चंद्र भूषण राय को टिकट मिलना तय है। आरजेडी
के खाते में सीट गई तो फिर कांति सिंह या उनके परिवार, पसंद का कोई उम्मीदवार
बनेगा। विधान परिषद चुनाव में सुनील पांडे के भाई हुलास पांडे को एलजेपी ने टिकट
दिया था। घोसी से पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के विधायक बेटे राहुल शर्मा इस बार बागी
हैं लिहाजा उनका एनडीए के टिकट पर लड़ने की चर्चा है।
लालगंज से मुन्ना शुक्ला की
पत्नी अन्नू शुक्ला, रुन्नी सैदपुर से राजेश चौधरी की पत्नी गुड्डी देवी, रूपौली
से अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती, कुचायकोट से सतीश पांडे के भाई अमरेंद्र
पांडे, दरौंधा से अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह. एकमा से मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल
सिंह, गोविंदपुर से कौशल यादव नवादा से कौशल की विधायक पत्नी पूर्णिमा यादव,
वारसलिगंज से प्रदीप कुमार, खगड़िया से रणवीर यादव की पत्नी पूनम यादव (जैसे
बाहुबली नेता या उनके परिवार के सदस्य) को जेडीयू का टिकट मिलना तय है।
बाहुबली प्रभुनाथ सिंह के परिवार
के दो-तीन सदस्य आरजेडी के उम्मीदवार होंगे ही। बाहुबली बबलू देव मधुबन, केसरिया
में से कही से आरजेडी के दावेदार हैं। ललित यादव, अनवारुल हक, शहाबुद्दीन, पप्पू
खां के परिवार से भी टिकट के दावेदार हैं।
जहां तक बीजेपी की बात है तो
अरवल से चितरंजन सिंह फिर से लड़ेंगे ही। बाहुबली विशेश्वर ओझा के परिवार से
मुन्नी देवी शाहपुर सीट से फिर से लड़ेंगी । दोनों अभी भी विधायक हैं। ढाका के
निर्दलीय विधायक पवन जायसवाल हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए हैं। सीवान के आतंक
शहाबुद्दीन को टक्कर देने वाले रामाकांत पाठक की पत्नी आशा पाठक जीरादेई से विधायक
हैं। इनका टिकट कटने का सवाल ही नहीं है। पाठक ने शहाबुद्दीन से लड़ाई में अपना
परिवार खोया है। जीरादेई वही सीट है जहां से शहाबुद्दीन पहली बार जीतकर विधायक बने
थे। शहाबुद्दीन की सत्ता को सीवान में तहस नहस करने वाले ओम प्रकाश यादव बीजेपी से
सांसद हैं। बाहुबली बृजबिहारी की पत्नी रमा देवी अभी शिवहर से बीजेपी की सांसद
हैं। बृज बिहारी जब बिहार में मंत्री थे तब उनकी हत्या हुई थी।
एनडीए की सहयोगी पासवान की
पार्टी की बात करें तो एक जमाने में इसे बाहुबलियों का बंगला तक कहा जाता था।
हालांकि अब भी परिवार से बाहर के जो 3 लोग सांसद हैं उनमें से दो बाहुबली और उनके
परिवार से ही हैं। सूरजभान की पत्नी मुंगेर से और रामा सिंह वैशाली से सांसद हैं।
कहा जा रहा है कि परिवार के सदस्यों के अलावा जिनको भी पार्टी का टिकट मिलेगा उनका
रिश्ता बाहुबलियों से जरूर होगा। मोकामा से सूरजभान सिंह के दाहिना हाथ माने जाने
वाले ललन सिंह की पत्नी चुनाव लड़ सकती हैं। बाहुबली पप्पू देव भी एलजेपी के
संपर्क में हैं। पत्नी पिछली बार बिहपुर से लड़ी भी थी। इस बार पप्पू सेफ पैसेज
देख रहे हैं। मुमकिन है कि बात बनने पर जेडीयू का भी रुख करें। विधान परिषद चुनाव
में पासवान ने सहरसा सीट से जेडीयू के बागी दबंग नीरज सिंह बबलू की पत्नी को टिकट
दिया था। वो जीत गई हैं सो बबलू की उम्मीदवारी भी किसी सीट से तय है।
हर दल को बाहुबलियों पर यकीन है।
फिलहाल सुशासन की बात करने वाले नीतीश की पार्टी में ही सबसे ज्यादा बाहुबली हैं। वो
भी किसी जाति विशेष के नहीं। लगभग हर जाति समुदाय के बाहुबली का कनेक्शन यहां मिल
जाएगा। जीत के लिए बीजेपी भी उसी हिसाब से अपने मोहरे फिट करने में जुटी है।
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