
इस साल विकास के नाम पर बिहार के लोगों ने जो जनमत दिया उसमें नीतीश के बाहुबलियों की बल्ले बल्ले रही। जेडीयू और बीजेपी के सभी बाहुबली जीतकर विधानसभा पहुंचे। लेकिन दूसरी पार्टियों के बाहुबली धरती पकड़ लिए। एक भी जो कोई जीत
पाता। नामी-नामी दिग्गज बाहुबली जो नीतीश के खिलाफ खड़े थे सब के सब हवा हो गए। यहां तक के अपने न लड़ के रिश्तेदारों को लड़वा रहे थे लेकिन उनको भी नहीं जीतवा पाए। चाहे एलजेपी के सूरजभान हो तब या फिर रामा सिंह। कांग्रेस के आनंद मोहन या फिर साधु यादव। जितने भी पुराने यदुवंशी बाहुबली क्षत्रप थे जो लालू की टिकट पर उतरे सब के सब हवा हो गए। लेकिन नीतीश की पार्टी से अनंत सिंह, सुनील पांडे, धूमल सिंह, लेसी सिंह, बीमा भारती, जगमातो देवी, गुड्डी चौधरी, अन्नू शुक्ला, गुलजार देवी, पूर्णिमा यादव, मीना द्विवेदी, सरफराज आलम, प्रभाकर चौधरी, अमरेंद्र पांडे, कौशल यादव, प्रदीप कुमार, बोगो सिंह, हो या फिर बीजेपी के टिकट पर उतरे चितरंजन सिंह, सतीश दूबे, अवनीश कुमार जैसे बाहुबली नेता या उनके रिश्तेदार, सब के सब जीत गए। उधर कांग्रेस के टिकट पर मैदान में ताल ठोकने वाली बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद, पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन, लालू के साले साधु और सुभाष यादव, बाहबली अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी, बाहुबली आदित्य सिंह की बहू नीतू कुमारी या फिर एलजेपी के टिकट पर ताल ठोंकने वाली बाहुबली ललन सिंह(सूरजभान के करीबी) की पत्नी सोनम देवी, सूरजभान के बहनोई रमेश कुमार सब हार गए।
अब थोड़ा इनके जीत हार का अंतर भी देख लीजिए जिस आनंद मोहन ने साल 1995 में अपनी पार्टी बनाकर पूरे बिहार में उम्मीदवार खड़े किए थे, तब झारखंड भी साथ था। उस आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को आलम नगर में मात्र 22 हजार वोट मिले, जबकि जानते हैं जीतने वाले उम्मीदवार जेडीयू के नरेंद्र यादव को 64 हजार वोट मिले। आगे बढ़े उससे पहले लवली के बारे में थोड़ा अपडेट करते चलें आपको, लवली की सियासी पारी तब शुरू हुई जब 1994 में वैशाली लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हो रहा था। आनंद मोहन ने लवली को पहली बार पार्टी फोरम पर लाकर चुनाव लड़ाने का एलान किया। इस चुनाव में राजपूत-भूमिहार बहुल वैशाली सीट पर इन दोनों जाति के वोटरों ने विरोध की पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए लवली का साथ दिया। नतीजा हुआ कि लवली जीत गई। 1995 में आनंद मोहन ने बिहार की 324 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा कर दिया। एक सीट छोड़ सब सीट हार गए। खुद लड़ रहे तीन सीटों से आनंद मोहन हार गए। 94-96 तक सांसद रहने के बाद लवली फिर कभी लोकसभा नहीं पहुंचीं। 96 में नवीनगर से उपचुनाव में विधायक बनीं। 2005 के फरवरी वाले चुनाव में बाढ़ से जेडीयू के टिकट पर विधायक बनीं थी। सवर्ण वोटों की सियासत करने वाले आनंद मोहन ने जब 1998 में लालू से हाथ मिलाया उसके बाद इनका मार्केट डाउन हुआ, और राजपूत नेता की जो प्रभावशाली छवि बनी थी वो खत्म होने लगी। फिलहाल कलेक्टर मर्डर केस में आनंद मोहन को फांसी की सजा मिली हुई है। पत्नी लवली के भरोसे सियासत में बने रहने की कोशिश कर रहे थे जिसको जनता ने नकार दिया।
बड़ी चर्चा हुई थी रंजीता रंजन को लेकर, बाहुबली पप्पू यादव की पत्नी हैं। बिहारीगंज से लड़ने गई थी कांग्रेस के टिकट पर हार गई। वोट मिला 27 हजार। जीतने वाली रेणु कुमारी को मिला 79 हजार। रंजीता यहां तीन नंबर पर रहीं। अंतर देख लीजिए। रंजीता का भी थोड़ा छोटा परिचय कराते हुए आगे बढ़ते हैं,पप्पू यादव की पत्नी होने के साथ राजनीतिक परिचय ये है कि सहरसा से 2004 में एलजेपी के टिकट पर सांसद चुनी गई थी। 2009 में हार गई। पप्पू यादव अभी विधायक अजीत सरकार की हत्या के दोषी है सो जेल में हैं। पप्पू का राजनीतिक उदय 1990 में हुआ था जब वो सिंहेश्वर सीट से पहली बार जनता दल के टिकट पर एमएलए बने थे। आपराधिक छवि के पप्पू यादव पर लूट, हत्या,रंगदारी,अपहरण के दर्जनों केस हैं।
राजनीतिक रूप से जागरूक कोई भी शख्स साधु यादव के नाम से तो अंजान नहीं ही होगा। लालू के साले होने के अलावा शायद कोई और परिचय पहले रहा होगा, अब ये है कि लालू के साथ नहीं हैं और कांग्रेस के टिकट पर गोपालगंज से चुनाव लड़ने गए थे। घर भी गोपालगंज ही पड़ता है। वोट कितना मिला जानिएगा तो हैरान रह जाइएगा। यहां से जीतने वाले सुभाष सिंह को मिला 58 हजार और इनको मिला कुल जमा 8 हजार 488 वोट। तीसरे नंबर पर रहे। अंतर देखते चलिएगा। इ भी बाहुबली थे अपने जमाने के। इनके एक दूसरे भाई जो अब लालू के साथ नहीं हैं। सुभाष यादव विक्रम से निर्दलीय लड़ने गए थे। 9994 वोट मिला इनको। लेकिन चौथे नंबर पर आ गए। वारसलीगंज में मुकाबला बाहुबलियों के बीच था। प्रदीप महतो के दाहिना हाथ प्रदीप कुमार के सामने थीं अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी। प्रदीप जेडीयू के टिकट पर जीते लेकिन अरुणा को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में 36953 वोट यानी प्रदीप से 5 हजार कम वोट मिले। बाहुबलियों के बीच ही मुकाबला मोकामा में भी था। जेडीयू के टिकट पर अनंत सिंह जीत गए। एलजेपी के टिकट पर ललन सिंह की पत्नी सोनम हार गईं। अनंत सिंह को 51 हजार और सोनम को 42 हजार वोट मिले। विभूतिपुर में बाहुबली सूरजभान अपने बहनोई रमेश कुमार को लाख कोशिशों के बाद भी नहीं जीतवा पाए। जेडीयू के जीते उम्मीदवार को यहां मिला 46 हजार वोट और रमेश कुमार को मिला 23 हजार। लेकिन दूसरे नंबर पर रहा सीपीआई का उम्मीदवार। रमेश को तीसरे नंबर से संतोष करना पड़ा। हिसुआ में आदित्य सिंह की बहू हो तब या फिर मधुबन में बाहुबली बबलू देव। कांग्रेस के टिकट पर इन लोगों की भी हार हुई। रामा सिंह का नाम तो सुने ही होइएगा। आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों में इनके खिलाफ मामले बताये जाते हैं। वैसे कई साल से माननीय थे। लेकिन इस बार इनके सामने इनके पुराने परिचित अच्युतानंद सिंह आ गए। महनार में रामा सिंह का तंबू उखड़ गया और बीजेपी उम्मीदवार के हाथों 25 सौ वोट से हार गए। अब थोड़ा जीतने वाले बाहुबलियों का भी बायोडाटा देख लीजिए। तरारी में सुनील पांडे तीसरी बार विधायक बने। बतौर जेडीयू उम्मीदवार इनको 42 हजार वोट मिले। जबकि आरजेडी को 34 हजार। यहां लेफ्ट के उ्म्मीदवार को जो 30 हजार वोट मिले वहीं उनकी जीत का रास्ता खोला। नहीं तो 34 और 30 जोड़के कुछ घटा भी दे तो मामला गोल था। क्षेत्र बदलके धूमल सिंह इस बार गए एकमा, हारने वाले दूसरे नंबर के उम्मीदवार से दोगुना वोट मिला। धूमल सिंह को 55 हजार वोट मिले। यहां धूमल सिंह को छोड़कर बाकी सारे उम्मीदवारों के वोट को जोड़ दे न..तो भी धूमल सिंह को मिले वोट से कम है। बाहुबली बूटन सिंह जो अब इस दुनिया में नहीं हैं उनकी पत्नी लेसी सिंह इस बार भी जीती। अवधेश मंडल की पत्नी चुनाव से पहले पाला बदलकर नीतीश के साथ हो गई, किस्मत अच्छी रही और जीत गई। रूपौली में वैसे भी अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती का मुकाबला बाहुबली शंकर सिंह से था। लेकिन शंकर सिंह को बतौर एलजेपी उम्मीदवार 27 हजार वोट मिले और बीमा भारती को 64 हजार। बाहुबली अजय सिंह की मां जगमातो देवी दरौंधा से,बाहुबली देवनाथ यादव की पत्नी गुलजार देवी फुलपरास से और बाहुबली राजेश चौधरी की पत्नी गुड्डी चौधरी रून्नी सैदपुर से जीतकर विधायक बन गई हैं। उधर बाहुबली देवेंद्र दूबे की भाभी मीना दूबे का मुकाबला बाहुबली राजन तिवारी के भाई राजू तिवारी से था। लेकिन एलजेपी के टिकट पर उतरे राजू तिवारी हार गए और जेडीयू की टिकट पर उतरी मीना गोविंदगंज की लड़ाई 8 हजार वोट से जीत गई। कुचाय कोट सीट से बाहुबली सतीश पांडे के भाई अमरेंद्र कुमार पांडे जीत गए और हार गए बाहुबली काली पांडे के भाई आदित्य नारायण पांडे। जेडीयू के अमरेंद्र को 51 हजार और आरजेडी के आदित्य को 32 हजार वोट मिले।
बाहुबली मुन्ना शुक्ला की पत्नी अन्नू शुक्ला पहली बार विधायक बनीं हैं। लालगंज में अन्नू शुक्ला को 58 हजार वोट मिले। लड़ाई में आरजेडी गठबंधन का उम्मीदवार नहीं था। दूसरे नंबर पर रहे राज कुमार साह जो कि निर्दलीय उम्मीदवार थे उनको 34हजार वोट मिले। अब थोड़ा अन्नू शुक्ला का परिचय भी जान लीजिए। सत्य और अहिंसा का पैगाम देने वाले महावीर और बुद्ध की धरती वैशाली की लालगंज सीट से बाहुबली मुन्ना शुक्ला की पत्नी अन्नू शुक्ला जीती हैं। राजनीतिक पहचान यही है कि मुन्ना शुक्ला की पत्नी हैं। विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को अपराध की दुनिया में पहचान विरासत में मिली है। 1999 में मुन्ना शुक्ला ने राजनीति में कदम बढ़ाया। उस वक्त लोकसभा चुनाव हो रहा था और मुन्ना शुक्ला ने जेल में रहकर मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ गये। उसी वक्त उनकी पत्नी अन्नू शुक्ला ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी। हालांकि स्वजातीय नेताओं के समर्थन के बाद भी मुन्ना शुक्ला कैप्टन जयनारायण निषाद को हरा नहीं सके थे। अगले ही साल 2000 में अपने पैतृक विधानसभा क्षेत्र लालगंज से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत गये। 2004 के लोकसभा चुनाव में वैशाली से निर्दलीय मैदान में उतरे लेकिन हार गये। इसके बाद 2005 में पहले लोजपा से फिर नवंबर 2005 में जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने। 2009 के लोकसभा चुनाव में वैशाली से पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था लेकिन हार गए। पूर्व मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के केस में सजा मिली है। सो जेल में बंद हैं।
ये रहा बिहार के नामी बाहुबलियों(रिश्तेदारों)के जीत हार का रिपोर्ट कार्ड। सब नामों को समेटने का वक्त अभी नहीं मिल रहा। वक्त निकालकर जो नाम छूट गए हैं उनकी भी चर्चा करूंगा।
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