Friday, August 31, 2018

1 अगस्त को मिलिंद सर, 31 अगस्त को निखिल सर......

चैनल में आज तो आखिरी दिन था ये हम लोग जानते ही थे । सुबह जब मैं आया तो ये सोचते हुए दफ्तर में पहुंचा कि सर आएंगे तो उनके आने का वीडियो बनाऊंगा । लेकिन जब मैं पहुंचा तो वो पहुंचे हुए थे ।
हल्के फुल्के अंदाज में मैंने उनसे कहा भी कि मैंने ये सोचा था... उन्होंने जवाब दिया हां कैमरा बाहर लगवा दिया है... जाते वक्त सब होगा ।
सुबह से ही हमलोग कह रहे थे कि माला मंगवाऊंगा, नारेबाजी होगी.. जॉली मूड में सब चल रहा था ।
निखिल सर से बात हुई तो बोले कि शाम को 4 बजे के आसपास चला जाऊंगा । साथ खाना खाने के बाद हम लोग रोज की तरह ऑफिस के पीछे पेड़ के नीचे जमा हुए, कुछ इधर उधर की गॉशिप हुई फिर चले आए काम करने ।
हुआ कि केक मंगा लिया जाए । शर्मा ने पांडे को बुलाया और पैसे दिये.. निखिल सर शायद समझ गये थे । पांडे का हाथ पकड़कर बोले कि पैसा वापस करो... हमसे बोले ये सब ठीक नहीं है । हमने भी मना कर दिया और पैसा वापस करने को कहा ।
कुछ देर बाद निखिल सर जब कार्ड जमा करने की बात करने गये तो मौका मिल गया और शर्मा ने पैसे देकर पांडे को केक लाने भेज दिया । पांडे केक की दुकान पर पहुंचा और फोन करके पूछा कि सर, लिखना क्या है... मैंने कहा लिखवा दो फिर मिलेंगे...पांडे ने कुछ नाम को लेकर ज्ञान देना शुरू किया तो मैंने फोन शर्मा को थमा दिया और बोला बात कर लो....

समय से पांडे केक लेकर आ गया... शाम पांच बजे के आसपास सारी कागजी प्रक्रिया पूरी हो गई और फिर हमलोग केक काटने कैंटीन बुलाकर ले गये । जितने लोग पहुंच सकते थे सब पहुंचे... केक कटाई हुई... चेहरे पर केक की मालिश की गई... लोग गले मिले... पांडे भावुक हो गया... खूब सारी फोटो खींची गई
इसके बाद हुआ कि चला जाए....हिमांशु जाने वाला था इसलिए उसे सारथी बनाया... कैंटीन से निकले तो सर गैलरी से बढ़ने लगे.,. मैंने कहा न्यूज रूम में भी आ जाइए और बाकी लोगों से मिल लीजिए..

सर आए... न्यूजरूम में सबसे मिले.. फिर पीसीआर गये... ग्राफिक्स, वेब, प्रोग्रामिंग सब टीम से मिले...कोई गले मिल रहा था तो कोई हाथ मिला रहा था... कोई शुभकामना दे रहा था और जो नहीं जान रहा था वो आश्चर्य कर रहा था...हिमांशु रोने लगा....सर सब लोगों से मिलकर बाहर निकले.... रजनीस सर, अरुण सर भी थे... रिसेप्शन पर पहुंचने के बाद उन्होंने सब को आने से मना कर दिया.. हाथ हिलाते एबीपी न्यूज से विदा हो गये... दो साल से कुछ ज्यादा दिनों का सफर इस दूसरी पारी में उनके नाम रहा.....
निखिल सर को चैनल में लाने वाले मिलिंद सर इसी महीने की पहली तारीख को विदा हुए थे आखिरी तारीख को निखिल सर ने विदा लिया....
अगस्त का महीना भारी रहा, विवादों से भरा रहा.... 

Monday, August 20, 2018

अटल के अंतिम दिन की कहानी

बुधवार 15 अगस्त की शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एम्स गये । करीब चालीस मिनट रहने के बाद मोदी रात साढ़े आठ बजे के आसपास वहां से निकले । इस दौरान मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में एक झरने पर दर्जन भर लोगों के बह जाने की खबर आ गई । वीडियो बहुत ही भयानक था लिहाजा अटल जी की तबीयत वाली खबर उस वक्त हल्की पड़ गई । हालांकि लोगों को ये अनुमान लग गया था कि अटल जी बहुत बीमार हैं और अब शायद न बचें । सुबह से ही तमाम चैनलों ने कवरेज शुरू कर दिया । चैनलों के कलर स्कीम बदल दिये गये । मेडिकल बुलेटिनों पर टकटकी लग गई । एम्स के बाहर, अटल जी के घर पर , बीजेपी मुख्यालय पर रिपोर्टर तैनात कर दिये गये ।

रात से ही एम्स में जाकर अटल जी को देखने वालों का तांता लग चुका था । सुबह भीड़ बढ़ती जा रही थी और लोगों की धड़कनें भी बढ़ रही थी । न्यूज रूम और स्टूडियो में सिर्फ यही चर्चा थी कि कितने बजे एलान होगा ।

16 अगस्त की दोपहर को पीएम मोदी भी एम्स गये । अमित शाह, जेपी नड्डा, विजय गोयल सहित बड़े बड़े नेता मंत्री वहां मौजूद थे । मोदी चालीस मिनट रहकर लौट गये । इस दौरान दोपहर का वक्त भी बीत गया था । सास बहू के शो चैनलों पर ड्रॉप हो चुके थे । अमूमन बहुत बड़ी खबर होने पर ही सास बहू का शो कोई भी चैनल ड्रॉप करता है ।

ढाई बजे से पीसीआऱ में रनडाउन में ड्यूटी लग चुकी थी । हर मिनट की हलचल पर नजर थी । कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी धीरे धीरे एम्स पहुंच रहे थे । शायद सरकार और सिस्टम को पता चल गया था कि अटल जी अब एम्स से जिंदा नहीं निकलने वाले । इस बीच अटल जी के घर पर भी तैयारियों की सुगबुगाहट हो रही थी ।

शाम को 4 बजे के आसपास जब स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा मीडिया से बात करने आये तो लगा कि वही एलान करेंगे । हालांकि क्रिटिकल बताकर वो चले गये । खबर आने लगी कि पांच बजे मेडिकल बुलेटिन आएगा । स्टूडियो, पीसीआर, न्यूज रूम और एम्स में बहुत तेज हलचल थी ।

साढ़े पांच बजे के करीब हमारे संपादक पीसीआर में पहुंचे और बताया कि अभी एक मिनट पहले एक अखबार ने नहीं रहने का खबर ट्वीट किया है । तैयारी कर लो । सर ये बताकर न्यूजरूम में आ गये और अगले ही मिनट में मोबाइल पर एक मेडिकल बुलेटिन का पर्चा लेकर फिर से पहुंचे ।

सर बोले कि ये किसी ने ट्वीट किया है । मेडिकल बुलेटिन है तुम तैयार हो जाओ । तभी एम्स के बाहर से रिपोर्टिंग कर रहे अंकित गुप्ता और विकास भदौरिया के पास भी हलचल तेज हुई । लेकिन विकास भदौरिया के मोबाइल पर एम्स के मेडिकल बुलेटिन का पर्चा खुल नहीं रहा था । तभी मेरे पीछे खड़े हमारे संपादक ने कहा चला दो खबर ।

संपादक का आदेश कान में पड़ते ही मैंने अपने कंट्रोल में लिये विज से लाल फुल फ्रेम फायर कर दिया ।

पूरी स्क्रीन पर लिखकर आया
पूर्व पीएम अटल जी नहीं रहे ।

चंद सेकेंड बाद बाकी चैनलों पर भी फुल फ्रेम खबर और ब्रेकिंग की पट्टी चलने लगी । अटल जी के नहीं रहने की पुष्टि हो चुकी थी । तुरंत पीएम मोदी ने ट्वीट करके श्रद्धांजलि दी... इसके बाद नेताओं के ट्वीट पर ट्वीट आने लगे ।

कुछ देर बाद अटल जी के पार्थिव शरीर को उनके घर 6 कृष्ण मेनन मार्ग पर लाया गया । जहां तमाम नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी । रात 10.30 बजे तक चैनल लाइव मोड में रहा । फिर 10.30 बजे अटल जी पर ही स्टोरी चली ।

इस दौरान हमलोगों ने अगले दिन क्या करना है इसकी रणनीति बनाई  क्योंकि अगले दिन अंतिम यात्रा निकाली जानी थी । तय हुआ कि चैनल का चेहरा कल सफेद रहेगा ।
एंकरों के लिए सफेद कपड़े मंगवाए गए । सहयोगी शिखा सिंह रात को जाकर एंकरों के सफेद कपड़े खरीद कर लाई । निखिल सर के आइडिया को अमल में लाने के लिए संपादक रजनीश सर के कहने पर सत्येंद्र सर ने कंस्टीट्यूशन क्लब में श्रद्धांजलि सभा की रातों रात तैयारी करवाई । रात में हमारी पूरी टीम देर तक रुकी और हमने कल सुबह की पूरी तैयारी की । मुकम्मल तैयारी करने के बाद रात करीब 12 बजे घर निकले । 

Tuesday, August 7, 2018

उस दिन राजमहल में मातम पसरा था......

'अवंतिकापुर' में सब लोग शांति से जी रहे थे । जंगल के राजा को चिंता रहती थी लेकिन प्रजा खुश थी । प्रजा को अपने राजा पर पूरा भरोसा था और राजा भी प्रजा पर उतनी ही शिद्दत से यकीन रखता था ।
लेकिन राजा ठहरा राजा । पड़ोसी राजाओं को देखकर इनका भी मन राज्य के विस्तार को मचलता रहता था । और बड़े राजा भी चाहते थे कि पड़ोसियों की तरह हमारा भी राज्य विस्तार हो । हम भी दुनिया के नंबर दो, नंबर तीन मुल्कों की श्रेणी में गिने जाएं ।

समय बीत रहा था । राजा हर मुमकिन कोशिश कर रहा था । मंत्री, साथी सलाहकारों के साथ बैठक करता । चर्चा में जो राय बनती उस पर अमल करता और करवाता । लेकिन कोई नतीजा उस तरीके का नहीं आ रहा था जैसी उम्मीद की जा रही थी । एक दिन राजा को किसी ने सलाह दी कि पड़ोसी राज्य का एक सेनापति इन दिनों बागी हो चला है । उसे साथ लिया जाए तो शायद साम्राज्य के विस्तार पर कुछ मदद मिल सकती है ।

राजा ने उस सेनापति से संपर्क साधा और उसे साथ कर लिया । सेनापति ने राजा को ही नहीं प्रजा को भी भरोसा दिया कि वो आ गये हैं तो सब ठीक कर देंगे । राजा भी खुश, प्रजा भी खुश । लेकिन प्रजा के मन में संशय था । संशय इस बात का कि कहीं ये बाहरी सेनापति राजा के साथ ही राजनीति न कर दे ।

हुआ भी यही । सेनापति खुद को राजा समझने लगा । आया था राज्य के विस्तार के लिए लेकिन उसने राज्य को ही तहस नहस करना शुरू कर दिया । प्रजा परेशान थी । लेकिन राजा पर भरोसा था लिहाजा प्रजा ने कभी मुंह नहीं खोला । और यही पर प्रजा से गलती हो गई ।
राजा को भी लगा कि सब ठीक हो जाएगा । लेकिन हुआ नहीं । और फिर अमावस की उस काली रात को राजा ने राज पाट छोड़कर संन्यास लेने का फैसला कर लिया ।
प्रजा में हाहाकार मच गया । जंगल में आग की तरह खबर फैल गई कि राजा तो जा रहा है । सब कुछ छोड़कर । प्रजा को छोड़कर । राज पाट छोड़कर ।
अमावस के अगले दिन राजमहल में मातम का माहौल था । मंत्री से लेकर संत्री तक सब परेशान थे । प्रजा में रूदन क्रंदन का माहौल था । महल में सब इस बात का इंतजार कर रहे थे कि राजा तो जा रहा है अब राजपाट कौन संभालेगा  ?
तरह तरह की आशंकाओं के बाद अवंतिकापुर पर छा चुका था । अवंतिकापुर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था । सभासदों की बैठक में नए राजा पर फैसला हो गया । दिन ढल रहा था । पुराने राजा से मिलने के लिए लोग लाइन में लगे थे । कोई रो रहा था, कोई परेशान हो रहा था.. सब उस सेनापति को लेकर गुस्से में थे जिसे राजा राज्य के विस्तार के लिए लाया था ।  गुस्से में दुकानें बंद होने लगी थी, बाजार बंद हो रहे थे.... देखते देखते समय बीत रहा था.... शाम ढली और अवंतिकापुर का चक्रवर्ती सम्राट अपने राज पाट को छोड़कर संन्यास की राह पर निकल पड़ा.....

लेकिन कोई समझ नहीं पाया कि राजा ने ऐसा क्यों किया ? क्या राजा पर कोई दबाव था ? और राजा उस दबाव को झेल नहीं पाया ?
सवाल का सही जवाब प्रजा आज भी तलाश रही है.... राजा के बिना राज्य चल रहा है....

क्रमश....

Tuesday, December 5, 2017

बिहार में अबकी बार, दिग्गज होंगे :बेकार'


बिहार में टिकट का बंटवारा बीजेपी नेताओं की नींद हराम कर देगा। बिहार में लोकसभा की चालीस सीट है। बीजेपी 22 पर जीती थी। इनमें से इस बार कई सांसदों का टिकट कटना तय है। पटना साहिब से शत्रुघन सिन्हा बागी हैं इसलिए उन्हें इस बार टिकट नहीं मिलेगा। दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद पार्टी से बाहर हैं उनकी पत्नी दिल्ली में कांग्रेस की राजनीति कर रहीं हैं । इस बार इनको भी बीजेपी नहीं उतारने वाली। इन दोनों के अलावा बागी तेवर दिख चुके भोला सिंह बुजुर्ग की श्रेणी में हैं इसलिए इनका भी टिकट कट चुका हुआ समझिये । सासाराम के सांसद छेदी पासवान की सदस्यता जा चुकी है इसलिए इनको इस बार घर बैठना होगा।
इनके अलावा पार्टी परफॉर्मेन्स के आधार पर भी कुछ लोगों को बेटिकट करेगी। इनमें सुनी सुनाई बात ये है कि उत्तर बिहार से बेतियाशिवहर,मुजफ्फरपुरझंझारपुर के सांसदों का नाम आ सकता है। बेतिया सीट बीजेपी की पुरानी सीट है लेकिन बीजेपी इस सीट को जेडीयू को दे सकती है। अगर बीजेपी ही लड़ी तो पार्टी साबिर अली या देवेश चंद्र ठाकुर को उतार सकती है। वैसे स्थानीय समीकरण संजय जायसवाल को बेटिकट करने की इजाजत नहीं देते। अगर संजय को ही पार्टी बेतिया से लड़वाती है तो फिर शिवहर से रमा देवी का टिकट कट सकता है। अगर ऐसा हुआ तो पार्टी पूर्व एमएलए रत्नाकर राणा को उतार सकती है। रत्नाकर के अलावा लवली आनंद भी बीजेपी से टिकट की दावेदार बन सकती हैं। राजपूत में ये दोनों ही मजबूत उम्मीदवार होंगे। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में बने रहने की सूरत में ये सीट लोजपा को जा सकती है और वैशाली के सांसद रामा सिंह यहां से उम्मीदवार बनाये जा सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चर्चा है कि उपेंद्र कुशवाहा खुद वैशाली से लड़ने का मन बना रहे हैं।
शिवहर से अगर एनडीए ने राजपूत उम्मीदवार नहीं उतारा तो फिर वैश्य समाज से पवन जायसवाल और वैद्यनाथ प्रसाद के नाम पर पार्टी विचार कर सकती है। दरभंगा सीट जदयू को दी जा सकती है। यहां से नीतीश कुमार अपने करीबी संजय झा को उतार सकते हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि संजय झा के सामने लालू गठबंधन ने कीर्ति झा को उतार दिया तो फिर जदयू के लिए सीट निकालना मुश्किल हो जाएगा। कीर्ति झा को टिकट देने के बाद लालू के लिए अली अशरफ फातमी सिरदर्द बन सकते हैं। ऐसे में उन्हें दरभंगा से मधुबनी भी लालू नहीं भेजना चाहेंगे। क्योंकि लालू की कोशिश अब्दुल बारी सिद्दीकी को बिहार से दूर करने की होगी। लालू चाहेंगे कि सिद्दीकी मधुबनी से लड़कर जीते ताकि तेजस्वी की राह का रोड़ा हमेशा के लिए बिहार की राजनीति से बाहर हो जाये।
मधुबनी से सिद्दीकी और दरभंगा से फातमी के उम्मीदवार बनने पर फिर से ध्रुवीकरण की संभावना बन सकती है जिसका फायदा संजय झा उठा सकते हैं। अगर संजयकीर्ति और फातमी तीनों लड़े तब भी फायदे में संजय झा होंगे। संजय झा अभी जेडीयू के महासचिव हैं पहले बीजेपी में थे लेकिन साथ रहने के दौरान ही संजय को नीतीश अपने साथ ले आये थे।

बेगूसराय में टिकट की बाजी कौन मारेगा ?

चर्चा है कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह अपनी सीट बदल सकते हैं। गिरिराज पिछली बार ही बेगूसराय से लड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें नवादा भेज दिया। इसके लिए तब रोना धोना भी हुआ था। इस बार बेगूसराय का मैदान साफ है और दिल्ली में उनकी हैसियत भी मजबूत हो चुकी है । ऐसे में संभव है कि पार्टी उनकी सीट बदल दे और उन्हें बेगूसराय लड़ने के लिए भेज दिया जाए । इस स्थिति में नवादा सीट से भूमिहार जाति के हिसुआ से विधायक अनिल सिंह की दावेदारी मजबूत हो सकती है । उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा से बागी होकर अपनी अलग रालोसपा बनाने वाले जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार भी नवादा से दावेदार हो सकते हैं । अरुण कुमार इन दिनों अलग पार्टी बनाकर घूम रहे हैं और उनकी मुहिम को बीजेपी का साथ मिल रहा है । ऐसे में उनका बीजेपी में जाना तय लग रहा है और अगर उनकी बात सुनी गई तो वो जहानाबाद की जगह नवादा को चुनना पसंद करेंगे ।
अगर अरुण कुमार जहानाबाद से ही लड़ते हैं तो फिर सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी (एलजेपी) को नवादा भेजा जा सकता है । तब बिहार में मंत्री ललन सिंह मुंगेर से जेडीयू के उम्मीदवार होंगे । अगर इतना सब कुछ संभव नहीं हुआ तो फिर सब कुछ पहले जैसा होगा नवादा से गिरिराज,जहानाबाद से अरुण और मुंगेर से वीणा सिंह । बेगूसराय की सीट जेडीयू के ललन सिंह के लिए छोडी जा सकती है । टीवी पर बराबर दिखने वाले आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा के भी बीजेपी के टिकट पर बेगूसराय से लड़ने की चर्चा राजनीतिक गलियारों में है । ऐसा सुना जा रहा है कि लेफ्ट से टिकट के लिए जेएनयू वाले कन्हैया कुमार भी कोशिश कर रहे हैं ।
पटना साहिब में शत्रुघन सिन्हा की जगह बीजेपी किसी बड़े चेहरे को आउटसोर्स कर सकती है या फिर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी दावेदार हो सकते हैं ।

नीतीश - मोदी की दोस्ती की गाड़ी यहां आकर रुक जाएगी क्या ?

बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं । 2014 के चुनाव के वक्त एनडीए में तीन पार्टियां ही थी । लेकिन आज पांच पार्टियां सीधे तौर पर एनडीए में शामिल है । जबकि छठी पार्टी भी चुनाव के वक्त हिस्सा बन सकती है । ऐसे में टिकट का बंटवारा कैसे होगा ये बड़ा सवाल है ?

2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो 40 सीटों में से 22 बीजेपी को,  6एलजेपी को और 3 सीटें आरएलएसपी को मिली थी । यानी 40 में से कुल 31 सीटें । तब बीजेपी 30, एलजेपी  7 और आरएलएसपी 3 सीटों पर लड़ी थी । उस वक्त जेडीयू ने अलग चुनाव लड़ा था और पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली थी । यूपीए में शामिल आरजेडी को 4, कांग्रेस को 2, एनसीपी को 1 सीट मिली थी ।
अब जेडीयू और मांझी की पार्टी हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा )एनडीए का हिस्सा है । दोनों साथ रहे तो इनको भी इन्हीं सीटों में से हिस्सा देना होगा । जेडीयू का साथ रहना तो पक्का है मांझी को लेकर अभी कुछ पक्का कहा नहीं जा सकता । वैसे आरएलएसपी के लक्षण भी एनडीए के साथ बने रहने के दिख नहीं रहे हैं ।

आरएलएसपी को हटा दें तो बीजेपी के 22 सांसद और एलजेपी के 6 सांसद मिलाकर 28 होते हैं । यानी जेडीयू के लिए अधिकतम 12 की गुंजाइश बनती है ।
अब ऐसा भी नहीं कि सभी बारह सीटें जेडीयू को ही दी जाएगी क्योंकि बीजेपी के जो उम्मीदवार कम मतों से हारे हैं वो आसानी से दावा नहीं छोड़ेंगे । हारने वालों में शाहनवाज जैसे दिग्गज भी हैं । )

मांझी अगर राज्यपाल नहीं बने और राज्यसभा भी नहीं गये इस स्थिति में साथ रखने के लिए उनको भी खुद के लिए एक और प्रदेश अध्यक्ष वृषण पटेल के लिए एक यानी दो सीटें देनी होगी । इस लिहाज से अधिकतम 10 सीटें ही जेडीयू के लिए दिख रही है । इसमें भी पप्पू यादव साथ आ गए तो एक सीट उनके खाते में जाएगी । यानी नौ ही बचती है जिस पर जेडीयू दावा कर पाएगा या बीजेपी थोड़ा बहुत सोचेगी भी ।
(इतना भी तब जब उपेंद्र कुशवाहा अलग हो जाएंगे)

य़ानी सीट का बंटवारा सिरदर्दी ही साबित होने वाला है । जमीन पर हैसियत टटोलने और अपना संगठन मजबूत करने के लिए कार्यकर्ता सम्मेलन शुरू कर दिया है । थोड़ी देर के लिए अगर इसी को फॉर्मूला मान लें तो अब सवाल ये है कि क्या जेडीयू सिर्फ 10 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगा । मुझे तो ऐसा नहीं लग रहा । लेकिन और रास्ता क्या है एक फॉर्मूला ये बन सकता है कि जेडीयू लोकसभा में कम सीटों पर लड़े और विधानसभा में उसे ज्यादा सीट मिले । लेकिन इसकी गुंजाइश इसलिए कम है क्योंकि बाकी पार्टनर भी हैं । उनका क्या होगा ?

नीतीश पैर पीछे करेंगे ?

2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के पास 115 विधायक थे । लेकिन लालू और कांग्रेस से समझौता कर अपनी जमीन बचाने के लिए नीतीश ने 14 सीटों की कुर्बानी दे दी और 101 सीटों पर उम्मीदवार लड़ाया । यानी नीतीश का पैर पीछे खींचने का रिकॉर्ड पुराना है । इसलिए संभव है कि मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए नीतीश अपने पैर पीछे खींच लें और लोकसभा के लिए दस बारह सीट पर समझौता करके मान जाएं ।
2014 के पहले तक के लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन हुआ करता था । तब जेडीयू 25 और बीजेपी 15 सीटों पर चुनाव लड़ती थी । लेकिन2014 से समीकरण उल्टा हो गया है ।

2014 का रिजल्ट दोहराया तो ?

2014 में बिहार में कुल 6 करोड़ 38 लाख वोटर थे । इनमें से 3 करोड़ 53 लाख 4हजार वोट पड़े थे । 22 सीटें जीतने वाली बीजेपी को 1 करोड़ 5 लाख 43 हजार वोट मिले थे । प्रतिशत में कहें तो 29.86 फीसदी । बीजेपी की सहयोगी एलजेपी को22 लाख 95 हजार यानी 6.5 फीसदी । जेडीयू को 56 लाख 62 हजार वोट मिले यानी 16.04 फीसदी । आरजेडी को 72 लाख 24 हजार वोट यानी 20.46 फीसदी । कांग्रेस को 30 लाख 21 हजार यानी 8.56 फीसदी वोट मिले । एनडीए में बीजेपी+एलजेपी+जेडीयू के वोट जोड़ दें तो कुल 52 फीसदी होता है । यानी आधे से भी ज्यादा । यही समीकरण बना रहा तो फिर लालू और कांग्रेस कहीं टक्कर में नहीं दिखेगी ।

अभी अररिया में लोकसभा उपचुनाव होना है । 2014 में यहां आरजेडी के तस्लीमुद्दीन जीते थे । तस्लीमुद्दीन को उस चुनाव में लाख वोट मिले थे । दूसरे नंबर पर बीजेपी थी जिसे लाख 61 हजार वोट और तीसरे नंबर रहे जेडीयू को लाख21 हजार वोट मिले थे । इस लिहाज से सीट पर दावा तो बीजेपी का ज्यादा बनता है । अब देखना होगा कि किशनगंज की सीट के बदले दोनों दलों में सौदा क्या होता है ।