Tuesday, December 5, 2017

नीतीश - मोदी की दोस्ती की गाड़ी यहां आकर रुक जाएगी क्या ?

बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं । 2014 के चुनाव के वक्त एनडीए में तीन पार्टियां ही थी । लेकिन आज पांच पार्टियां सीधे तौर पर एनडीए में शामिल है । जबकि छठी पार्टी भी चुनाव के वक्त हिस्सा बन सकती है । ऐसे में टिकट का बंटवारा कैसे होगा ये बड़ा सवाल है ?

2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो 40 सीटों में से 22 बीजेपी को,  6एलजेपी को और 3 सीटें आरएलएसपी को मिली थी । यानी 40 में से कुल 31 सीटें । तब बीजेपी 30, एलजेपी  7 और आरएलएसपी 3 सीटों पर लड़ी थी । उस वक्त जेडीयू ने अलग चुनाव लड़ा था और पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली थी । यूपीए में शामिल आरजेडी को 4, कांग्रेस को 2, एनसीपी को 1 सीट मिली थी ।
अब जेडीयू और मांझी की पार्टी हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा )एनडीए का हिस्सा है । दोनों साथ रहे तो इनको भी इन्हीं सीटों में से हिस्सा देना होगा । जेडीयू का साथ रहना तो पक्का है मांझी को लेकर अभी कुछ पक्का कहा नहीं जा सकता । वैसे आरएलएसपी के लक्षण भी एनडीए के साथ बने रहने के दिख नहीं रहे हैं ।

आरएलएसपी को हटा दें तो बीजेपी के 22 सांसद और एलजेपी के 6 सांसद मिलाकर 28 होते हैं । यानी जेडीयू के लिए अधिकतम 12 की गुंजाइश बनती है ।
अब ऐसा भी नहीं कि सभी बारह सीटें जेडीयू को ही दी जाएगी क्योंकि बीजेपी के जो उम्मीदवार कम मतों से हारे हैं वो आसानी से दावा नहीं छोड़ेंगे । हारने वालों में शाहनवाज जैसे दिग्गज भी हैं । )

मांझी अगर राज्यपाल नहीं बने और राज्यसभा भी नहीं गये इस स्थिति में साथ रखने के लिए उनको भी खुद के लिए एक और प्रदेश अध्यक्ष वृषण पटेल के लिए एक यानी दो सीटें देनी होगी । इस लिहाज से अधिकतम 10 सीटें ही जेडीयू के लिए दिख रही है । इसमें भी पप्पू यादव साथ आ गए तो एक सीट उनके खाते में जाएगी । यानी नौ ही बचती है जिस पर जेडीयू दावा कर पाएगा या बीजेपी थोड़ा बहुत सोचेगी भी ।
(इतना भी तब जब उपेंद्र कुशवाहा अलग हो जाएंगे)

य़ानी सीट का बंटवारा सिरदर्दी ही साबित होने वाला है । जमीन पर हैसियत टटोलने और अपना संगठन मजबूत करने के लिए कार्यकर्ता सम्मेलन शुरू कर दिया है । थोड़ी देर के लिए अगर इसी को फॉर्मूला मान लें तो अब सवाल ये है कि क्या जेडीयू सिर्फ 10 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगा । मुझे तो ऐसा नहीं लग रहा । लेकिन और रास्ता क्या है एक फॉर्मूला ये बन सकता है कि जेडीयू लोकसभा में कम सीटों पर लड़े और विधानसभा में उसे ज्यादा सीट मिले । लेकिन इसकी गुंजाइश इसलिए कम है क्योंकि बाकी पार्टनर भी हैं । उनका क्या होगा ?

नीतीश पैर पीछे करेंगे ?

2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के पास 115 विधायक थे । लेकिन लालू और कांग्रेस से समझौता कर अपनी जमीन बचाने के लिए नीतीश ने 14 सीटों की कुर्बानी दे दी और 101 सीटों पर उम्मीदवार लड़ाया । यानी नीतीश का पैर पीछे खींचने का रिकॉर्ड पुराना है । इसलिए संभव है कि मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए नीतीश अपने पैर पीछे खींच लें और लोकसभा के लिए दस बारह सीट पर समझौता करके मान जाएं ।
2014 के पहले तक के लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन हुआ करता था । तब जेडीयू 25 और बीजेपी 15 सीटों पर चुनाव लड़ती थी । लेकिन2014 से समीकरण उल्टा हो गया है ।

2014 का रिजल्ट दोहराया तो ?

2014 में बिहार में कुल 6 करोड़ 38 लाख वोटर थे । इनमें से 3 करोड़ 53 लाख 4हजार वोट पड़े थे । 22 सीटें जीतने वाली बीजेपी को 1 करोड़ 5 लाख 43 हजार वोट मिले थे । प्रतिशत में कहें तो 29.86 फीसदी । बीजेपी की सहयोगी एलजेपी को22 लाख 95 हजार यानी 6.5 फीसदी । जेडीयू को 56 लाख 62 हजार वोट मिले यानी 16.04 फीसदी । आरजेडी को 72 लाख 24 हजार वोट यानी 20.46 फीसदी । कांग्रेस को 30 लाख 21 हजार यानी 8.56 फीसदी वोट मिले । एनडीए में बीजेपी+एलजेपी+जेडीयू के वोट जोड़ दें तो कुल 52 फीसदी होता है । यानी आधे से भी ज्यादा । यही समीकरण बना रहा तो फिर लालू और कांग्रेस कहीं टक्कर में नहीं दिखेगी ।

अभी अररिया में लोकसभा उपचुनाव होना है । 2014 में यहां आरजेडी के तस्लीमुद्दीन जीते थे । तस्लीमुद्दीन को उस चुनाव में लाख वोट मिले थे । दूसरे नंबर पर बीजेपी थी जिसे लाख 61 हजार वोट और तीसरे नंबर रहे जेडीयू को लाख21 हजार वोट मिले थे । इस लिहाज से सीट पर दावा तो बीजेपी का ज्यादा बनता है । अब देखना होगा कि किशनगंज की सीट के बदले दोनों दलों में सौदा क्या होता है ।

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