Tuesday, August 7, 2018

उस दिन राजमहल में मातम पसरा था......

'अवंतिकापुर' में सब लोग शांति से जी रहे थे । जंगल के राजा को चिंता रहती थी लेकिन प्रजा खुश थी । प्रजा को अपने राजा पर पूरा भरोसा था और राजा भी प्रजा पर उतनी ही शिद्दत से यकीन रखता था ।
लेकिन राजा ठहरा राजा । पड़ोसी राजाओं को देखकर इनका भी मन राज्य के विस्तार को मचलता रहता था । और बड़े राजा भी चाहते थे कि पड़ोसियों की तरह हमारा भी राज्य विस्तार हो । हम भी दुनिया के नंबर दो, नंबर तीन मुल्कों की श्रेणी में गिने जाएं ।

समय बीत रहा था । राजा हर मुमकिन कोशिश कर रहा था । मंत्री, साथी सलाहकारों के साथ बैठक करता । चर्चा में जो राय बनती उस पर अमल करता और करवाता । लेकिन कोई नतीजा उस तरीके का नहीं आ रहा था जैसी उम्मीद की जा रही थी । एक दिन राजा को किसी ने सलाह दी कि पड़ोसी राज्य का एक सेनापति इन दिनों बागी हो चला है । उसे साथ लिया जाए तो शायद साम्राज्य के विस्तार पर कुछ मदद मिल सकती है ।

राजा ने उस सेनापति से संपर्क साधा और उसे साथ कर लिया । सेनापति ने राजा को ही नहीं प्रजा को भी भरोसा दिया कि वो आ गये हैं तो सब ठीक कर देंगे । राजा भी खुश, प्रजा भी खुश । लेकिन प्रजा के मन में संशय था । संशय इस बात का कि कहीं ये बाहरी सेनापति राजा के साथ ही राजनीति न कर दे ।

हुआ भी यही । सेनापति खुद को राजा समझने लगा । आया था राज्य के विस्तार के लिए लेकिन उसने राज्य को ही तहस नहस करना शुरू कर दिया । प्रजा परेशान थी । लेकिन राजा पर भरोसा था लिहाजा प्रजा ने कभी मुंह नहीं खोला । और यही पर प्रजा से गलती हो गई ।
राजा को भी लगा कि सब ठीक हो जाएगा । लेकिन हुआ नहीं । और फिर अमावस की उस काली रात को राजा ने राज पाट छोड़कर संन्यास लेने का फैसला कर लिया ।
प्रजा में हाहाकार मच गया । जंगल में आग की तरह खबर फैल गई कि राजा तो जा रहा है । सब कुछ छोड़कर । प्रजा को छोड़कर । राज पाट छोड़कर ।
अमावस के अगले दिन राजमहल में मातम का माहौल था । मंत्री से लेकर संत्री तक सब परेशान थे । प्रजा में रूदन क्रंदन का माहौल था । महल में सब इस बात का इंतजार कर रहे थे कि राजा तो जा रहा है अब राजपाट कौन संभालेगा  ?
तरह तरह की आशंकाओं के बाद अवंतिकापुर पर छा चुका था । अवंतिकापुर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था । सभासदों की बैठक में नए राजा पर फैसला हो गया । दिन ढल रहा था । पुराने राजा से मिलने के लिए लोग लाइन में लगे थे । कोई रो रहा था, कोई परेशान हो रहा था.. सब उस सेनापति को लेकर गुस्से में थे जिसे राजा राज्य के विस्तार के लिए लाया था ।  गुस्से में दुकानें बंद होने लगी थी, बाजार बंद हो रहे थे.... देखते देखते समय बीत रहा था.... शाम ढली और अवंतिकापुर का चक्रवर्ती सम्राट अपने राज पाट को छोड़कर संन्यास की राह पर निकल पड़ा.....

लेकिन कोई समझ नहीं पाया कि राजा ने ऐसा क्यों किया ? क्या राजा पर कोई दबाव था ? और राजा उस दबाव को झेल नहीं पाया ?
सवाल का सही जवाब प्रजा आज भी तलाश रही है.... राजा के बिना राज्य चल रहा है....

क्रमश....

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