मुजफ्फरपुर की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के डीएनए को लेकर जो टिप्पणी की थी उसका विवाद थमता नहीं दिख रहा है। नीतीश और लालू मोदी के डीएनए वाले बयान को चुनावी मुद्दा बनाने पर तुले हैं । नीतीश ने तो पहले दिन ही इसे बिहार के अपमान से जोड़ दिया था । लालू ने भी नीतीश के सुर में सुर मिलाया । और अब पीएम से बयान वापस लेने की मांग को लेकर नीतीश ने खुली चिट्ठी लिख दी है । असल में बिहार चुनाव को लेकर इन दिनों नेताओं की जुबान पर कोई लगाम नहीं है। हर नेता उटपटांग और बे मतलब की बयानबाजी में जुटा है ।
पीएम मोदी का दर्द समझ में तो आता है । लेकिन जिस अंदाज में उन्होंने नीतीश के डीएनए पर सवाल उठाए उससे इस विवाद के तूल पकड़ने का खतरा पहले दिन की लग गया था । 25 जुलाई की रात को ही शत्रुघन सिन्हा ने नीतीश पर हमले को गलत ठहरा कर पार्टी को बैकफुट पर ला दिया था । पीएम के बयान का पोस्टमार्टम करे तो समझ में आता है कि उनका बयान भी राजनीतिक फायदे के लिए ही दिया गया था । पहले खाने की थाली वापस लेने की बात कहना फिर महादलित कहकर मांझी को सीएम की कुर्सी से हटाने का जिक्र करते हुए डीएनए को दोष देना ।पीएम ने पूरा सोच समझकर बयान दिया था । शायद उनको एहसास भी रहा होगा कि देर सवेर इसका मुद्दा बनना तय है । लेकिन जिस तरीके नीतीश कुमार इसे बिहार की जन भावना से जोड़ रहे हैं वैसा नहीं सोचा रहा होगा । लेकिन अब बात दूसरी ओर जाने लगी है । जिससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है । बेहतर है कि डैमेज कंट्रोल के लिए कोई तोड़ निकालकर इसस विवाद को पार्टी यही खत्म कर ले ।
पार्टी के नेता वैसे राजनीतिक डीएनए की बात कहकर इसे रफा दफा करना चाहते हैं । लेकिन जब तक पीएम या किसी बहुत बड़े नेता इस पर रुख साफ नहीं करते विवाद बना रहेगा । जेडीयू के सूत्र बता रहे हैं कि जल्द इसपर पीएम की तरफ से सफाई नहीं आती तो फिर चुनाव तक इस मुद्दे को ले जाया जाएगा और इसे अपने नेता और उनके परिवार की बेइज्जती बताकर पेश किया जाएगा ।
जैसा बीजेपी के नेता कह रहे हैं कि डीएनए पर सवाल उठाने के पीछे पीएम मोदी की मंशा नीतीश की राजनीतिक दगाबाजी से थी । कैसे 2009 के चुनाव में पोस्टर छपने पर बवाल हुआ था । पटना में नीतीश ने अपने घऱ पर राजनीतिक भोज रद्द कर दिया था । बिहार आने से रोक दिया था । फिर जार्ज फर्नांडस से लेकर जीतन राम मांझी तक से धोखे का जिक्र किया । हो सकता है कि पीएम की मंशा राजनीतिक दगाबाजी ही बताने की रही होगी । लेकिन जिस तरीके से मुद्दा बनाया जा रहा है उससे पीएम की 'असली बात' पीछे रह गई है ।
यहां बीजेपी को ये बिल्कुल ही नहीं भूलना चाहिए कि लोकसभा चुनाव के वक्त गिरिराज सिंह का झाऱखंड की सभा में दिया गया एक बयान पार्टी को भारी पड़ गया था। गिरिराज सिंह ने तब मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने की सलाह दी थी । नतीजा ये हुआ कि इस बयान के ठीक बाद बिहार में मुस्लिम वोटों का एकतरफा ध्रुवीकरण हुआ और बीजेपी पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, बांका जैसी जीतने वाली सीट हार गई । उसी चुनाव में तब जेडीयू के नेता रहे शकुनी चौधरी ने नरेंद्र मोदी को जमीन में गाड़ देने की बात कही थी । नतीजा हुआ कि जेडीयू का लोकसभा चुनाव में सफाया ही हो गया ।
बीजेपी को ये समझना चाहिए कि नीतीश कुमार ही वो नेता हैं जिन्होंने बिहारी भावना को उभारा है । नीतीश के कार्यकाल से पहले बिहारी कहा जाना गाली के समान था । लेकिन नीतीश के सत्ता में आने के बाद से बिहारी होने की परिभाषा बदल चुकी है । और नीतीश कुमार पीएम के इस डीएनए वाले बयान के जरिये इसी बिहारी सेंटीमेंट को उभारने में जुटे हैं ।
अभी चुनाव में भले ही वक्त है । लेकिन मुद्दा बना रहा तो फिर बीजेपी को लेने के देने पड़ सकते हैं । ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि नीतीश अगर चुनावी सभाओं में जाकर इस बात को अपने परिवार से जोड़कर पेश करते हैं तो फिर लोगों की सहानुभूति उनके पक्ष में जा सकती है । खासकर महिला वोटरों की । पिछले विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों ने नीतीश का बढ चढकर साथ दिया है । नीतीश वैसे भी हल्की बयानबाजी नहीं करते हैं । लिहाजा बीजेपी को संभलकर चलने की जरूरत है ।
चूंकि बात पीएम की जुबान से निकली थी इसलिए बड़ी हो जाती है । नहीं तो चिरकुट से लेकर, रावण, पुतना और राक्षस जैसे कितने बयान सामने आ चुके हैं । लालू ने हाल ही में मांझी और पप्पू यादव को मिली सुरक्षा पर सवाल उठाते हुए चिरकुट कह दिया था । चिरकुट यानी तुच्छ टाइप । इससे पहले अश्विनी चौबे सोनिया गांधी को पुतना कह चुके हैं । सुशील मोदी, रामकृपाल, चौबे, मांझी जैसे नेता नीतीश को रावण बता चुके हैं । नीतीश ने मांझी को जब विभीषण कहा था तब जाकर बीजेपी और मांझी की ओर से ऐसी प्रतिक्रिया सामने आई थी ।
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