25 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के मुजफ्फरपुर से चुनाव अभियान की शुरुआत करने वाले हैं। उसी मुजफ्फरपुर से जहां उन्होंने लोकसभा चुनाव के वक्त पटना बम ब्लास्ट के बाद बिहार में अपनी पहली सभा की थी। उस रैली से मोदी ने पहली बार पिछड़ों की राजनीति का संदेश दिय था। मंच पर रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और कैप्टन जयनारायण निषाद पहली बार एक साथ आये थे। इसी रैली ने बिहार की राजनीति में बीजेपी को पिछड़ों की राजनीति से जोड़ने का काम किया था। इस बार भी मुजफ्फरपुर में पीएम की पहली सभा के कई मायने हैं।
मुजफ्फरपुर शहर उत्तर बिहार की राजधानी के रूप में जानी जाती है । और ये शहर राजनीतिक रूप से जागरूक भी है। खुदीराम बोस, जुब्बा साहनी, राजेंद्र बाबू, दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, जेबी कृपलानी, रामदयालु बाबू, लंगट सिंह, श्याम नंदन सहाय, जानकी वल्लभ शास्त्री , जॉर्ज फर्नांडिस जैसी शख्सियतों के नाम के लिए ये शहर जाना जाता है ।
इमरजेंसी के बाद यहीं से नीतीश के राजनीतिक गुरु जॉर्ज फर्नांडिस जेल से जीतकर सांसद बने थे। अपना आखिरी लोकसभा चुनाव जॉर्ज यहीं से जीते भी और हारे भी। जॉर्ज के साथ ही लालू को छोड़कर नीतीश ने समता पार्टी का गठन किया था। जॉर्ज ही थे जो नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। जॉर्ज ने जीवन भर जिस कांग्रेस की राजनीति का विरोध किया और जिस विरोध के दम पर नीतीश को यहां तक पहुंचाया उसी कांग्रेस से नीतीश हाथ मिला चुके हैं। मुजफ्फरपुर जाने पर मोदी उन जख्मों को आसानी से कुरेद पाएंगे।
दूसरी बड़ी वजह ये है कि मुजफ्फरपुर जिस तिरहुत प्रमंडल का मुख्यालय है वहीं विधानसभा की सबसे ज्यादा सीटें हैं। 2010 में तिरहुत की कुल 49 सीटों में से 24 पर जेडीयू और 21 पर बीजेपी को जीत मिली थी। लालू को सिर्फ 1 और 3 सीटें निर्दलीय को मिली थी। लोकसभा चुनाव में तो सभी 8 सीटें एनडीए को मिली। इस बार और ज्यादा सीटों की उम्मीद है क्योंकि सहयोगी पासवान और उपेंद्र कुशवाहा भी इसी इलाके से आते हैं।
तीसरी बड़ी वजह जातीय समीकरण है। पार्टी ने मुजफ्फरपुर में पहला कार्यक्रम अगर रखा है तो इसमें जातीय गणित का भी नफा नुकसान जरूर देखा होगा। शहर की सीट पर बीजेपी के सुरेश शर्मा विधायक हैं जो भूमिहार जाति के हैं। भूमिहारों को बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है। लेकिन नीतीश की भी नजर इस वोट बैंक पर है। विजय चौधरी, ललन सिंह, पीके शाही, अवनीश कुमार के जरिये नीतीश इस वोट बैंक को साधना चाहते हैं। मुजफ्फरपुर, वैशाली और मोतिहारी में भूमिहारों की ज्यादा संख्या है। इस इलाके से 19 सवर्ण विधायक हैं जिनमें से 8 भूमिहार हैं। अभी पिछले हफ्ते नीतीश विधान परिषद चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार दिनेश सिंह (राजपूत) के नामांकन में शामिल मुजफ्फरपुर गए थे। बाकी कहीं नामांकन में नहीं गये लेकिन मुजफ्फरपुर गए।
चौथी बड़ी वजह है इलाके का पिछड़ापन। बारिश हो या न हो लेकिन बाढ इस इलाके में जरूर हर साल आती है। और पांच-सात साल पर तो भयानक वाली बाढ़। रोड का नेटवर्क ठीक नहीं है। बगल में नेपाल है लेकिन ढंग का रास्ता नहीं है। फैक्ट्रियां जो हैं वो बंद हैं। यहां का कपड़ा, लीची का उद्योग ठीक हालत में नहीं है। लिहाजा नीतीश पर अटैक करने का हथियार हाथ में होगा। पीएम आएंगे तो कांटी थर्मल पावर और शहर को स्मार्ट सिटी का हिस्सा बनाने का जिक्र करके क्रेडिट जरूर लेने की कोशिश करेंगे। सब कुछ होने के बाद भी वैशाली को टूरिस्ट प्लेस के तौर पर स्थापित नहीं करने का ठिकरा मोदी जरूर लालू-नीतीश पर फोड़ना चाहेंगे। हो सकता है वैशाली, केसरिया, जानकी जन्म स्थली सीतामढ़ी के लिए कुछ खास एलान भी करें।
मुजफ्फरपुर के मौजूदा बीजेपी सांसद अजय निषाद के पिता और पूर्व सांसद कैप्टन जयनारायण निषाद का बीजेपी से मोहभंग हो गया है। लोकसभा चुनाव में साथ आने पर बेटे को टिकट और सरकार बनने पर राज्यपाल का सपना दिखाया गया था। बेटे को टिकट मिला और वो सांसद भी बन गये लेकिन निषाद के राज्यपाल बनने का सपना पूरा नहीं हो पाया। माना जा रहा है कि निषाद इसी वजह से बागी हो गये हैं। निषाद का इस इलाके में अच्छा खासा प्रभाव है। मुजफ्फरपुर और वैशाली लोकसभा सीट पर मल्लाह वोट अच्छी संख्या में हैं। हालांकि विधानसभा में इस समाज के वोट का ज्यादा असर नहीं दिखता। और पूर्व सांसद के मौजूदा सांसद बेटे अभी पार्टी लाइन से अलग नहीं हैं। इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं है।
मुजफ्फरपुर जिले में विधानसभा की कुल 11 सीटें हैं। जेडीयू के पास 6, बीजेपी के पास 4 और एक सीट आरजेडी के पास। लेकिन नीतीश के सबसे ज्यादा बागी इसी मुजफ्फरपुर जिले से हैं। 6 में से 4 विधायक नीतीश के खिलाफ हैं। रमई राम और मनोज कुशवाहा मंत्री हैं इसलिए अभी तक नीतीश के साथ हैं। बाकी के चार पूर्व मंत्री अजीत कुमार, दिनेश प्रसाद, राजू सिंह और सुरेश चंचल एनडीए के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं । माना जा रहा है कि 25 जुलाई को नीतीश के ये तमाम बागी विधायक बीजेपी में शामिल होने का एलान कर सकते हैं। रमई राम भी कब तक नीतीश के पाले में हैं कह नहीं सकते।
वैसे एक सच ये भी है कि रामविलास पासवान नहीं चाहते कि कांटी के विधायक अजीत कुमार को किसी भी हाल में एनडीए के किसी घटक का टिकट मिले। ऐसे में अजीत कुमार के लिए सबसे मुफीद यही है कि वो 25 को पीएम के सामने शामिल होने का एलान कर दें। ताकि टिकट के पेंच में ज्यादा परेशानी न हो।
ये तो रहा नीतीश के खिलाफ बीजेपी का प्लान है। नीतीश ने भी मुजफ्फरपुर के लिए लालू के साथ मिलकर अपना प्लान बना रखा है। लालू का अभी तक प्लान ये है कि मुजफ्फरपुर शहरी सीट या तो कांग्रेस को दे दें या फिर आरजेडी से डॉ़क्टर हरेंद्र कुमार को लड़ाया जाए। वैसे हरेंद्र जी के नाम पर नीतीश मानेंगे इस पर सस्पेंस हैं। विजेंद्र चौधरी को टिकट देना मतलब कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। हरेंद्र जी अपने गृह क्षेत्र हरलाखी से भी टिकट की कोशिश में लगे हैं। फिलहाल जो हाल है उसके हिसाब से लगता यही है कि नीतीश इस जिले में ज्यादा सीट लालू की पार्टी को देना चाहेंगे। ताकि बैकवार्ड वर्सेस फॉरवार्ड कराकर सीट निकाला जा सके।
किसका प्लान सफल होता है ये बहुत हद तक टिकट बंटवारे पर निर्भर करता है। फिलहाल नीतीश प्रचार में बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं। और बीजेपी मोदी की पहली रैली के जरिये मजबूत एंट्री मारने की तैयारी में जुटी है।
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