तय समय पर चुनाव हुआ तो यूपी में
वोटिंग अगले साल ही होगी। लेकिन तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने अपने सेनापति और
सिपाहियों को फिट करने में जुटे हैं। मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार इसी कड़ी का एक
हिस्सा है। यूपी से जिन तीन मंत्रियों को शामिल किया गया है उनमें से एक सवर्ण हैं
दूसरे पिछड़ी जाति से हैं और तीसरी दलित हैं। जिन जातियों को बीजेपी ने मंत्रिमंडल
में जगह दी है उन जातियों के वोट बैंक पर बीजेपी की नजर है। लोकसभा चुनाव में इन
जातियों ने बीजेपी को झोली भर भरकर वोट किया था।
चंदौली के सांसद महेंद्र नाथ पांडे
पूर्वांचल में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर निखरकर अभी
ही सामने आए हैं। माना जा रहा था कि पांडे को मंत्री बनाकर कलराज मिश्र को कल्टी
कराया जाएगा। लेकिन कलराज भी 70 का बैरियर पास करने के बाद बने हुए हैं। कलराज जी
का क्षेत्र और पांडे जी का इलाका ज्यादा दूर नहीं है। लेकिन मंत्री बनाने के पीछे
ब्राह्मण वोट का हिसाब किताब ही है। 2002 के चुनाव में बीजेपी को 50 फीसदी
ब्राह्मणों का वोट मिला था लेकिन 2012 में घटकर 38 फीसदी रह गया। जबकि 2007 में
ब्राह्मणों ने हाथी की सवारी की थी । 2007
में मायावती ने 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था। लोकसभा चुनाव से पहले तक ब्राह्मण
समाज का बड़ा हिस्सा बीएसपी के साथ था। लेकिन अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग के
कमाल का नतीजा था कि लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण बनिये के साथ गैर यादव-मुस्लिम वोट
बैंक का बड़ा चंक जुड़ गया। अपने आप में ये समीकरण यूपी के लिए चौंकाने वाला था। लेकिन
हिस्सा मिल गया और 80 में से 73 सीट झोली में आ गई।
बीजेपी के सामने इस परिणाम को
विधानसभा में दोहराने की चुनौती है। लेकिन न तो मोदी जैसा चेहरा है और ना ही यूपी
चुनाव में कोई बड़ा मु्द्दा। लिहाजा जातिय गणित को ही जोड़ने तोड़ने का काम जारी
है। 10 से 12 फीसदी आबादी वाला ब्राह्मण जो कि सवर्णों में सबसे बड़ा वर्ग है वो
अगर साथ बना रहा तो बीजेपी को 25 से 50 सीट इसी के दम पर निकालने में दिक्कत नहीं
होगी। लेकिन कांग्रेस भी ब्राह्मण के भरोसे ही है। कभी शीला दीक्षित का नाम सीएम
के लिए तो कभी जितिन प्रसाद का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए पेश किया जा रहा है। बीएसपी
में मायावती को भी सतीशचंद्र मिश्र के सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला दोहराने का
इंतजार है। हालांकि बीएसपी से ब्राह्मणों की दूरी इसलिए बढ़ती जा रही है क्योंकि
हाल ही में देवरिया के एक बीएसपी नेता ने सोशल मीडिया पर ब्राह्मणों के बारे में
विवादित टिप्पणी कर दी थी। हाल ही में कैराना कांड के बाद समाजवादी पार्टी की
सरकार ने ब्राह्मण जाति के साधु संतों की टीम को कैराना भेजकर संदेश देने की कोशिश
की है।
शायद यही वजह है कि पूर्वांचल से दो
दो ब्राह्मणों को मंत्रिमंडल में मौका दिया गया है। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर कलराज मिश्र की
छुट्टी हो जाती। पश्चिम में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर नोएडा के सांसद महेश शर्मा
मंत्री हैं। यानी लोकसभा के हिसाब से देखें तो 10 फीसदी वोट वाले ब्राह्मण जाति के
3 सांसद मंत्री हो गये हैं। जबकि ब्राह्मण जाति के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी
यूपी से ही राज्यसभा सांसद हैं। इनको जोड़ लेंगे तो 4 ब्राह्मण मंत्री हो जाएंगे।
अभी इसमें मेनका गांधी को शामिल नहीं कर रहा हूं।
लक्ष्मीकांत वाजपेयी बीजेपी के यूपी
अध्यक्ष थे। उनको हटाकर केशव मौर्य को अध्यक्ष बनाया। वाजपेयी को हटाने से
ब्राह्मणों में संदेश गलत गया था। इसी संदेश को सुधारने के लिए पहले ब्राह्मण जाति
के शिव प्रताप शुक्ल को राज्यसभा भेजा फिर पांडे जी को मंत्री बनाया गया और मिश्रा
जी को बरकरार रखा गया।
अब बात करते हैं कुर्मी वोट की।
अनुप्रिया पटेल जो कि अपना दल से जीती हुई हैं उनको इसलिए जगह दी गई है ताकि
पिछड़ों में यादवों के बाद जो सबसे बड़ा वोट बैंक है उसको अपने साथ रखा जाए।
अनुप्रिया भी पूर्वांचल की मिर्जापुर सीट से सांसद हैं। कुर्मियों के बड़े नेता
रहे सोनेलाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल पहली बार सांसद बनीं हैं। उनको मंत्री
बनाकर पूर्वांचल में बेनी प्रसाद वर्मा के कद को कम करने की कोशिश है। बेनी प्रसाद
वर्मा भी पूर्वांचल के इसी इलाके में कुर्मियों के नेता माने जाते हैं। बेनी
प्रसाद वर्मा कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल होकर राज्यसभा पहुंच चुके
हैं। कुर्मी वोट पर नीतीश कुमार की भी नजर है। कांग्रेस के कुर्मी नेता आरपीएन
सिंह पूर्वांचल से ही आते हैं।
लेकिन असल लड़ाई अनुप्रिया पटेल के घर
में ही है। अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल बेटी के मंत्री बनने से खुश नहीं हैं।
कृष्णा ही अभी पार्टी की अध्यक्ष हैं। कहा जाता है कि दोनों मां-बेटी में पार्टी
पर कब्जे के लिए संघर्ष चल रहा है। मां बड़ी बेटी पल्लवी का कद बढ़ाना चाहती हैं
लेकिन अनुप्रिया को शायद इससे खतरा महसूस होता है। पल्लवी को पार्टी का महासचिव
बनाने के बाद से ही अनुप्रिया की बात बिगड़ी थी। अब अगर इस घर के झगड़े को शांत
नहीं किया गया तो थोड़ा बहुत असर कुर्मी वोटर पर जरूर पडेगा। वैसे भी कुर्मी बहुल
जिस रोहनिया सीट पर सोनेलाल पटेल के परिवार का कब्जा होता था उस सीट पर पिछले साल
अनुप्रिया की मां हार गईं थीं। जबकि बीजेपी का समर्थन था उनको। ऐसे में घर के
झगड़े का असर 8 फीसदी वोट वाले कुर्मी वोटर पर दिख जाए तो आश्चर्य नहीं होना
चाहिए। अभी कुर्मी समाज से आने वाले संतोष
गंगवार ही यूपी से एकमात्र मंत्री हैं जो मध्य यूपी से आते हैं।
मंत्रिमंडल का तीसरा चेहरा है कृष्णा
राज का। पासी समाज से आने वाली कृष्णा राज दो बार की विधायक हैं और शाहजहांपुर से
पहली बार सांसद बनी हैं। पहली बार में ही मंत्री बनाने के पीछे मकसद है पासी वोट
को अपने पाले में लाना। पासी वोट बैंक करीब 3 से 4 फीसदी है। जाटव जाति के बाद
पासी ही दलित में आबादी और दबदवे वाली जाति है। पिछले दिनों इसी जाति के आरके
चौधरी ने मायावती का साथ छोडा था। बीजेपी जान रही है कि जाटव को उनके पास आने से
रहा थोड़ा बहुत पासी को तोड़ लें तो बहन जी को ज्यादा नुकसान हो जाएगा। इसी को
लेकर कृष्णा राज को पासी समाज का चेहरा पेश किया गया है।
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