Tuesday, May 10, 2016

देवभूमि का दाग कहीं भारी न पड़ जाए सरकार ?


उत्तराखंड का फैसला मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका है। सुबह तक पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय दावा कर रहे थे कि कई कांग्रेसी विधायक उनका साथ देंगे । लेकिन ऐसा हो नहीं पाया । कांग्रेस की एक मात्र रेखा आर्या बागी हुईं और बीजेपी के खेमे में चली गईं । लेकिन बीजेपी को इससे कोई फायदा नहीं हुआ ।
अब जो खबरें छन कर आ रही हैं और दावे किये जा रहे हैं उसके मुताबिक बीजेपी को महज 28 वोट मिले जबकि कांग्रेस को उम्मीद के मुताबिक 33 वोट मिले । यानी बहुमत के आंकड़े को हरीश रावत आसानी से पार गये ।
उत्तराखंड में विधानसभा की कुल 70 सीटें हैं । जबकि 1 मनोनीत विधायक है। यानी सदस्यों की कुल संख्या 71 है । यहां मनोनीत विधायक भी वोट देते हैं । कांग्रेस के 9 विधायकों के बागी हो जाने की वजह से सदन की संख्या 62 हो गई थी । इसमें से स्पीकर ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया फिर भी कांग्रेस के पक्ष में बहुमत की बात सामने आ रही है ।
कांग्रेस की रेखा आर्य के बागी होने की वजह से बीजेपी के पास संख्या 27 से बढकर 28 हो गई थी । बाकी किसी ने भी बीजेपी का साथ नहीं दिया । जबकि कांग्रेस के 26 (स्पीकर को छोडकर) बीएसपी के 2, निर्दलीय 3 और यूकेडी के 1 विधायक ने कांग्रेस का साथ दिया । बीजेपी के एक बागी जिसे पार्टी पहले ही निलंबित कर चुकी थी उस भीमलाल आर्य ने भी कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग की और इस तरह से आंकड़ा बढ़कर 33 हो गया । स्पीकर को वोट देने की नौबत ही नहीं आई ।
कांग्रेस के पक्ष में 33, बीजेपी के पक्ष में 28 वोट मिले। ऐसा बताया जा रहा है । जबकि स्पीकर ने हिस्सा नहीं लिया । यानी सदन में इस वक्त कांग्रेस के पास 34 विधायक हैं । अब रेखा आर्य जो कि बीजेपी के खेमे में गई थी उन पर कांग्रेस कार्रवाई कर सकती है । लेकिन पहले कल कोर्ट के नतीजों का इंतजार करना होगा ।

बीजेपी की रणनीति इस तरीके से फेल हो गई कि हरिद्वार में बीएसपी के साथ देने का भी फायदा उसे नहीं मिला । बीएसपी के दो विधायक हैं। मायावती ने सुबह ही एलान कर दिया कि उनका वोट कांग्रेस के साथ जाएगा । बीएसपी विधायकों ने कांग्रेस का साथ दिया भी । निर्दलीय 3 विधायक और यूकेडी का एक विधायक भी हरीश रावत के साथ चट्टान की तरह जुड़ा रहा ।  बीजेपी ने बीएसपी को अपने पक्ष में करने के लिए हरिद्वार जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए समर्थन देने का फैसला भी किया था । लेकिन मायावती ने दूर की खेलकर हरिद्वार पर हामी नहीं भरी। अब तो वहां बीएसपी ने कांग्रेस को समर्थन दे दिया है।

असल में उत्तराखंड की ये हार बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की हार है। बगावत को कांग्रेस का अंदरुनी मामला बताकर बीजेपी ने खुद को भले ही अलग करने की कोशिश हो लेकिन पूरे खेल में बीजेपी बड़ा खिलाड़ी बनना चाहती थी। कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता डेरा जमाकर देहरादून में जमे थे। राष्ट्रपति शासन और स्टिंग का खेल भी इसी मकसद से हुआ था। लेकिन सब बेकार हो गया।
उत्तराखंड में खेल का खराब होना बीजेपी को उत्तर प्रदेश में भारी पड़ सकता है। अगले साल यूपी में चुनाव होने हैं। इस खेल से केंद्र और बीजेपी दोनों की छवि खराब हुई है।
बीजेपी को बाहर से बैठकर तमाशा देखना चाहिए था लेकिन बीजेपी पहले दिन से ही पार्टी बन गई। बागियों को हवाई जहाज में घूमाने से लेकर गुड़गांव में ठहराने तक के पीछे बीजेपी का ही दिमाग था।
मार्च महीने में वित्त विधेयक पर वोटिंग के दौरान 9 विधायक कांग्रेस के बागी हुए थे। 28 को हरीश रावत को बहुमत साबित करना था लेकिन 27 मार्च को केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। तर्क दिया गया संवैधानिक संकट, वित्त विधेयक में हार और खरीद फरोख्त के स्टिंग को। लेकिन 21 अप्रैल को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश देकर केंद्र सरकार को करारा झटका दिया। वैसे अगले दिन ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक भी लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बहुमत परीक्षण हुआ और कल सुप्रीम कोर्ट में फैसला हो जाएगा। दो महीने तक चले इस ड्रामे में देवभूमि के कई राजनीतिक रंग देखने को मिले।
विधायक की खरीद फरोख्त करते मुख्यमंत्री का स्टिंग भी सामने आया तो कैमरे में विधायकों को 25-25 लाख देने की बात कहते विधायक का स्टिंग भी बाहर आ गया। कलेक्टर खनन पट्टे के लिए लाख लाख रुपये लेते हैं इस स्टिंग में इसका भी जिक्र हुआ।

कुल मिलाकर दो महीने में देवभूमि की राजनीति की काफी किरकिरी दुनिया भर में हुई। अब सवाल ये है कि कांग्रेस सिम्पैथी के लिए चुनाव में जाने की तैयारी करेगी या फिर हरीश रावत को हटाकर किसी और को सूबे की कमान सौंपेगी या फिर दोनों में से कोई नहीं ? साल भर चलती रहेगी ऐसे ही सूबे की सियासत।  

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