Saturday, July 9, 2016

सम्राट सुहेलदेव पार कराएंगे पूर्वांचल में बीजेपी की नाव ?


राजा सुहेलदेव की प्रतिकात्म तस्वीर
वैसे देश की राजनीति में इस पार्टी का न तो नाम चर्चा में रहा है औ ना ही इस पार्टी के किसी नेता को ज्यादा लोग जानते हैं। सीमित दायरे में रहकर राजनीति करने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की स्थापना साल 2002 में हुई थी। मायावती का साथ छोड़कर ओम प्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी बनाई । मकसद था राजभर जाति को सत्ता में भागीदार बनाना।
12 साल बाद राजभर जाति की राजनीति करने वाली इस पार्टी की अहमियत को उभार देने का आइ़डिया बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को आया है। पूर्वांचल के मऊ में आयोजित रैली में ये तय हो गया है कि बीजेपी पूर्वांचल में राजभर की पार्टी के साथ तालमेल करके चुनाव लड़ेगी। वैसे इतिहास के पन्नों को पलटे तो ओम प्रकाश राजभर की पार्टी बीते दो विधानसभा चुनावों में कोई गुल नहीं खिला सकी है। पार्टी का प्रदर्शन बेहद ही सीमित रहा है। 2012 के चुनाव में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के साथ तालमेल करके भी ओम प्रकाश राजभर विधानसभा नहीं पहुंच पाए थे।
राजभर को एक ऐसे साथी की तलाश थी जो उनकी इच्छाओं को पंख लगा सके। लखनऊ की लड़ाई जीतने के लिए बीजेपी को भी दलित और पिछड़े वोट बैंक में सेंध लगाने वाले नेताओं की जरूरत है। लोकसभा चुनाव के वक्त इसकी जरूरत महसूस नहीं हुई थी लेकिन विधानसभा चुनाव में हजार पांच सौ वोटों से हार जीत की कहानी लिखी जाती है। लिहाजा बीजेपी पूर्वांचल की कम से कम पचास सीटों पर हजार पांच सौ वोटों से हार नहीं चाहती। यही वजह है कि यूपी की राजनीति में हाशिये पर खड़ी एक पार्टी को बीजेपी ने 20 से 22 सीटें देने का फैसला किया है। बीजेपी राजभर की पार्टी को उन सीटों पर चुनाव लड़ाएगी जहां मुख्तार अंसारी की पार्टी का दबदबा है। 
राजभर की राजनीति 
बहराइच, मऊ, गाजीपुर, श्रावस्ती के इलाकों में ओम प्रकाश राजभर के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। राजभर वोटों की संख्या राज्यभर में तो 3 फीसदी के आसपास ही है लेकिन इन इलाकों में 8 फीसदी के आसपास। पार्टी के दावे को माने तो करीब सौ सीटों पर 20 हजार से लेकर 1 लाख तक वोट हैं।
2007 के विधानसभा चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 97 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से 94 पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई । कुल वोट 4 लाख 91 हजार मिले। यानी कुल वोटों का एक फीसदी से भी कम। 2012 में राजभर नें 52 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। 48 की जमानत जब्त हुई। कुल वोट मिले 4 लाख 77 हजार 330। 
गाजीपुर की जहूराबाद सीट से लड़ने वाले ओम प्रकाश राजभर 2012 के चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे थे। जीतने वाले को 67 हजार, दूसरे नंबर पर बीएसपी को 56 हजार और राजभर को 48 हजार वोट मिले थे। यहां बीजेपी के उम्मीदवार को 5600 वोट मिले थे
हिंदू राजा के नाम पर राजनीति 
राजभर की पार्टी से नाता जोड़ने के पीछे बीजेपी का मकसद सिर्फ इस वर्ग के वोट पाना नहीं नहीं है। बल्कि राजा सुहेलदेव के जरिये बीजेपी हिंदू वोटों की गोलबंदी की राजनीति भी करना चाहती है। श्रावस्ती सम्राट राजा सुहेलदेव को हिंदुओं का राजा कहा जाता है। महज 18 साल में ही सुहेलदेव राजा बने थे। 17 बार भारत को लूटने के बाद महमूद गजनवी का भांजा सालार मसूद गाजी 1034 में भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की नीयत से हमला करते हुए आगे बढ़ रहा था। हजारों हिंदुओं की हत्या के बाद बहराइच की सीमा में उसका सामना सुहेलदेव से हुआ। सुहेलदेव की सेना इस स्थिति में नहीं थी कि अकेले गाजी का मुकाबला किया जा सके। इसलिए राजा सुहेलदेव नें 21 हिंदू राजाओं को अपने साथ मिलाया और उनका नेतृत्व करते हुए गाजी पर टूट पड़े।
कहा जाता है कि गाजी बहुत की शातिर था । सुहेलदेव को मात देने के लिए वो अपनी सेना के आगे गायों को बांध कर खड़ा कर देता था। क्योंकि सुहेलदेव गायों पर आक्रमण नहीं करते। पहली बार में ही सुहेलदेव को इसकी भनक लगी और रात को ही उन्होंने गायों की रस्सियां कटवा दी। बाद में लड़ाई में सुहेलदेव के हाथों गाजी मारा गया। और उसकी मंशा पूरी नहीं हुई। 

उन्ही राजा सुहेलदेव के नाम पर ओमप्रकाश राजभर नें अपनी पार्टी बनाई है। वैसे इतिहास में राजा की जाति को लेकर स्पष्ट मत नहीं मिलने की बात कही जाति है। लेकिन राजभर समाज सुहेलदेव को अपनी जाति का मानते हैं। सुहेलदेव के बहाने राजभर वोटों को साधने के लिए ही फरवरी महीने में गाजीपुर से दिल्ली के बीच सुहेलदेव एक्सप्रेस ट्रेन शुरू की गई। राजा सुहेलदेव की आज की सेना ने बीजेपी का साथ दिया तो पूर्वांचल के आधा दर्जन जिलों का राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकता है। क्योंकि इस जाति के वोटरों को अभी तक कोई स्पष्ट भविष्य नहीं दिख रहा था। राजभर के मायावती का साथ छोड़ने के बाद समाज बिखर सा गया था। लेकिन गठबंधन दोनों के लिए संजीवनी का काम कर सकता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि तमाम राजभर समाज इन्हीं के साथ है। राजभर की अहमियत को समझते हुए ही मायावती ने अपनी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर को बना रखा है। 

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