बिहार चुनाव से ठीक साल भर पहले मोदी सरकार ने बिहार में अपने
जातीय आधार वाले वोट बैंक को साधने की कोशिश तो की है लेकिन ये कोशिश कारगर हो
पाएगी कह पाना मुश्किल है । पहले से चार मंत्री थे । इस बार तीन नए मंत्रियों को
जगह देकर मोदी ने राजपूत, भूमिहार और यादव वोटरों को साधने की
कोशिश की है । इन तीनों को मंत्री मूल रूप से चुनावी फायदे के लिए बनाया गया है ।
लेकिन तीनों को ऐसे विभाग नहीं दिये गये हैं जिसका फायदा चुनाव में वोट के तौर पर
होने की उम्मीद हैं ।
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गिरिराज, रूडी, रामकृपाल यादव |
राजपूत जाति के राजीव प्रताप रूडी वाजपेयी सरकार में स्वतंत्र
प्रभार के राज्यमंत्री हुआ करते थे । दस साल बाद भी रूडी को राज्यमंत्री ही बनाया
गया है । विभाग ऐसा दिया गया है जिसे कम अहमियत वाला कहा जा सकता है । स्किल
डेवलपमेंट मंत्री बनाकर रूडी को मोदी ने अपने मेक इन इंडिया वाले मिशन से जोड़ा तो
जरूर है लेकिन इसका वोट के तौर पर कैसे फायदा उठाया जाएगा इसको लेकर सवाल उठ सकते
हैं । राजपूत जाति के राधामोहन सिंह पहले से कृषि मंत्री के तौर पर कैबिनेट में
हैं । बिहार में राजपूत वोटरों की संख्या करीब 5 फीसदी हैं।
लेकिन दबंग जाति होने की वजह से इस समुदाय के लोग करीब आठ से दस फीसदी वोट पर
प्रभाव रखते हैं । बिहार की राजनीति को जानने वाले जानते हैं कि राजपूत वोट जितना
एनडीए को मिलता है उससे कम लालू को भी नहीं मिलता । ऐसे में मोदी की कोशिश कतनी
कारगर होगी देखने वाली बात होगी ।
भूमिहार जाति के गिरिराज सिंह पहली बार नवादा से सांसद बने हैं
। मोदी के पक्ष में खुलकर बोलने और मुखर होने का उन्हें फायदा तो जरूर मिला है ।
लेकिन लघु उद्योग जैसा मंत्रालय देकर मानो उन्हें सेट कर दिया गया है । गिरिराज
सिंह से बड़े कद के भी भूमिहार नेता बिहार में हैं । लेकिन गिरिराज को आगे करके एक
दबंग छवि पेश करने की कोशिश की गई है । बिहार में
करीब 4 फीसदी भूमिहार वोटर हैं । इस समुदाय के
लोग एनडीए के परंपरागत वोटर रहे हैं । लेकिन पिछले दिनों हुए विधानसभा उपचुनाव में
नीतीश ने इस जाति के उम्मीदवार को टिकट देकर बीजेपी के आधार वोट में सेंध लगा दिया
था । माना जाता है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में पहली बार मोदी ने बिहार के किसी
भूमिहार नेता को मंत्री नहीं बनाया जिसका नुकसान उपचुनाव में हुआ था । उस चुनाव
में पार्टी ने गिरिराज सिंह या फिर बाकी भूमिहार नेताओं का ,सही इस्तेमाल
भी नहीं किया था । अब गिरिराज को मंत्री बनाकर बिहार-झारखंड के भूमिहारों को खुश
करने की कोशिश भले ही की गई हो लेकिन कम महत्व वाले मंत्रालय का अपना साइड इफेक्ट
भी है । इससे पहले वाजपेयी सरकार में भूमिहार कोटे से सीपी ठाकुर मंत्री बनाये गये
थे । उस वक्त भी पहली बार में किसी भूमिहार को मंत्री नहीं बनाने की गलती वाजपेयी
ने की थी जिसका नुकसान उन्हें तब के उपचुनाव में उठाना पड़ा था . बाद में हुए
विस्तार में सीपी ठाकुर को स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई ।
रामकृपाल यादव को स्वच्छता और पेयजल राज्यमंत्री बनाय़ा गया है
। रामकृपाल वही नेता हैं जो कभी लालू के साथ साये की तरह रहते थे । चार बार सांसद
बने लेकिन लालू ने कभी उन्हें मंत्री नहीं बनने दिया । इस बार बीजेपी ने उन्हें
मंत्री बनाकर लालू के प्रभाव वाले यादव वोटरों को तोड़ने का जिम्मा दिया है ।
हालांकि इन्हें भी वैसा मंत्रालय नहीं दिया गया है जिसे वोटरों के बीच भुनाया जा
सके । रामकृपाल यादव पटना, हाजीपुर और आसपास के यादवों पर अच्छा
प्रभाव रखते हैं । बिहार के 13-14 फीसदी यादव वोटरों में रामकृपाल जितना
सेंध लगा पाएंगे बीजेपी के लिए वो बोनस ही होगा । वाजपेयी सरकार में हुकुमदेव
नारायण यादव राज्यमंत्री और शरद यादव जेडीयू कोटे से कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे ।
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पासवान- रविशंकर |
इन तीन मंत्रियों के अलावा कायस्थ जाति के रविशंकर प्रसाद,
राजपूत
जाति के राधामोहन सिंह, दलित कोटे से सहयोगी लोकजनशक्ति पार्टी
के रामविलास पासवान और पिछड़े कोटे से सहयोगी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के
उपेंद्र कुशवाहा सरकार बनने के समय ही मंत्री बन गये थे । उपेंद्र कुशवाहा को
बिहार में नीतीश का विकल्प बनाने के लिए बीजेपी उन्हें आगे कर रही है । कुशवाहा उस
कोइरी जाति के नेता हैं जिस पर अब तक नीतीश की पकड़ मानी जाती रही है । कहने के
लिए राज्यसभा सांसद धर्मेंद्र प्रधान भी बिहार से ही मंत्री है हालांकि वो हैं
ओडिशा के रहने वाले ।
नीतीश की पार्टी छोड़कर राजनीतिक और स्थानीय कारणों से जो नेता
बीजेपी में नहीं जा सकते वो विधानसभा चुनाव से पहले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में
जा सकते हैं । ऐसे करीब तीन दर्जन विधायक तो अभी ही तैयार बताये जाते हैं । चुनाव
आते आते ये संख्या 50 से ज्यादा भी हो सकती है । कुशवाहा की पार्टी का जन्म उसी
समता पार्टी और जनता दल यू से हुआ है जिसके
संस्थापक जॉर्ज फर्नांडिस रहे हैं ।
वाजपेयी सरकार के वक्त बिहार (झारखंड नहीं) से सीपी ठाकुर (भूमिहार),
शत्रुघन
सिन्हा(कायस्थ) राजीव प्रताप रूडी (राजपूत), रविशंकर
प्रसाद (कायस्थ ), शाहनवाज हुसैन, हुकुमदेव नारायण यादव, मुनिलाल
(दलित )जेडीयू-समता कोटे से जॉर्ज फर्नांडीस, नीतीश कुमार(कुर्मी
), शरद
यादव, रामविलास पासवान (बाद में अलग हुए ), दिग्विजय
सिंह (राजपूत)मंत्री हुआ करते थे । 2004
में
जब सरकार चली गई तो ये तमाम नेता बिहार में जाकर टिक गये । नतीजा हुआ कि 2005
में
पार्टी विधानसभा का चुनाव जीत गई और सरकार भी बनी । अब एक बार फिर बीजेपी ने जातीय
दांव चला है ये दांव कितना कारगर हो पाता है वो तो आने वाला वक्त बताएगा ।
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