बिहार के नतीजों में नया कुछ नहीं था। नीतीश कुमार भी किसी
मुगालते में नहीं थे। लेकिन उम्मीद कम नहीं हुई थी। 20 सीटों वाला जेडीयू 2 पर
सिमट गया। तय था कि पार्टी में टूटफूट होती। नीतीश ने ही अपने मन से उम्मीदवार
बांटे थे। शरद यादव के कहने पर सिर्फ सीतामढ़ी और खगड़िया में उम्मीदवार दिए गए।
इसलिए यहां कोई सामूहिक जिम्मेदारी की बात भी नहीं थी। लिहाजा सवाल नीतीश की
नेतृत्व क्षमता पर ही उठने थे ।
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अभी तो सीएम की रेस में नंबर वन हैं वशिष्ठ ना. सिंह |
नीतीश ने जो किया उसके पीछे उनका 2015 का पूरा प्लान दिख रहा
है। नीतीश एक तीर से कई शिकार करने की तैयारी में हैं। इस्तीफा देकर सबसे पहले
उन्होंने पार्टी में नेतृत्व को लेकर नेताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया है।
नीतीश अगर नया मुख्यमंत्री बनाते हैं तो फिर उनके पास डेढ़ साल का समय होगा बिहार
में खुद को मजबूत करने का। नीतीश के करीबी सूत्रों से मेरी बात हुई तो उनका कहना
है कि वशिष्ठ नारायण सिंह को नया सीएम बनाया जा सकता है और नीतीश पार्टी के
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे। वशिष्ठ नारायण सिंह राज्यसभा के सांसद हैं और अभी बिहार
के अध्यक्ष। वशिष्ठ बाबू राजपूत जाति के हैं और नीतीश की कोर टीम के सदस्य हैं।
इनके सीएम बनने से नीतीश राजपूत जाति के नरेंद्र सिंह जैसे मुखर विरोधी का मुंह
बंद कर सकते हैं। और सरकार पर पूरा नियंत्रण भी कायम रहेगा। बाहर रहकर नीतीश अपने
विरोधियों को आसानी से ठिकाने भी लगा सकते हैं। नई सरकार के जरिये नीतीश अपने
विरोधियों को कैबिनेट से भी बाहर करेंगे और नए लोगों को मौका देंगे। अगर ऐसा नहीं
होता है और नीतीश ही दोबारा सीएम बनते हैं तो वो और ज्यादा मजबूती से पार्टी में
उभरेंगे । लिहाजा फैसले भी उसी हिसाब से लिये जाएंगे।
एक बात जो सबसे ज्यादा पुष्ट है वो ये कि नीतीश खेमा ने शरद
यादव को साइड करने का फैसला कर लिया है । शरद यादव लालू के जरिये अपने लिए जगह
बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
बिहार के आंकड़े को देखें तो 243 में से 2 सीटें अभी खाली हैं।
241 में से जेडीयू के पास स्पीकर सहित अपने 117 विधायक हैं। बीजेपी के पास 90
विधायक हैं। आरजेडी- 24, कांग्रेस-4, सीपीआई-1, निर्दलीय-5 । इनमें से जेडीयू के 2
विधायक पार्टी से अभी निलंबित हैं। फिर भी जेडीयू के पास अभी बहुमत की कमी नहीं
दिख रही। अभी बहुमत के लिए जरूरी 121 विधायकों में से सरकार के पास 115+
cong 4+ निर्दलीय-5+
cpi 1
= 125 विधायक हैं। इनमें से निर्दलीय विधायकों के भागने की आशंका है।
इसको सेट करने के लिए लालू को साथ लेने की बात हो रही है।
कहा जा रहा है कि लालू ने इसके लिए कुछ शर्तें रखी हैं। राबड़ी
को राज्यसभा, मीसा को मंत्री, अब्दुल बारी सिद्दीकी को उपमुख्यमंत्री जैसी शर्तें
रखी गई हैं। नीतीश को जरूरत है और लालू भी दिल्ली से लेकर पटना तक लुटे-पिटे हुए
हैं। ऐसे में दोनों की जरूरतों के हिसाब से इनमें से ज्यादातर शर्तें मानी जा सकती
हैं ।
लेकिन सवाल ये है कि इसका संदेश क्या जाएगा? तो
एक बात जो सबसे साफ है वो ये कि नीतीश के पास अब गिने चुने वोट रह गये हैं। लालू
और नीतीश के साथ आने से मुस्लिम साथ आएंगे, यादव, कुर्मी और अति पिछड़ों की
एकजुटता होगी। सवर्णों में सेंधमारी के लिए वशिष्ठ सिंह के जरिये 5 फीसदी राजपूत
वोटरों को जोड़ने की कोशिश होगी।
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नीतीश, वशिष्ठ, विजय चौधरी |
राज्यसभा सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह बिहार के बक्सर के रहने
वाले हैं। 1947 में बिहार के बक्सर में किसान परिवार में जन्मे वशिष्ठ नारायण सिंह
ने जनता पार्टी से राजनीति की शुरुआत की। लालू की सरकार में मंत्री रह चुके हैं।
जॉर्ज-नीतीश के साथ समता पार्टी में आए। 1994 में समता पार्टी बनने के बाद नीतीश
बिहार में पहले अध्यक्ष थे । नीतीश जब 1996 में दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हुए
तो इन्हें बिहार का अध्यक्ष बनाया गया। पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे।
2010 के विधानसभा में जीत के बाद जब विजय चौधरी मंत्री बन गये तो नीतीश ने इन्हें
बिहार का अध्यक्ष बनाया। तब से अध्यक्ष हैं।
सीएम की रेस में विजय चौधरी का नाम भी है जो भूमिहार जाति के
हैं और नीतीश की कोर टीम के हैं। विजय सरायरंजन से विधायक भी हैं। लेकिन भूमिहार
होने की वजह से इनकी उम्मीद न के बराबर है। नरेंद्र सिंह, विजेंद्र यादव जैसे नेता जनता दल बैकग्राउंड के हैं और शरद यादव के साथ पार्टी में आए थे लिहाजा इनका
नंबर तो आने से रहा। ये लोग नीतीश की कोर टीम में नहीं हैं ।
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जॉर्ज वाला हाल होगा शरद का? |
नीतीश को लेकर पार्टी में सबसे ज्यादा नाराजगी आरसीपी सिंह की
वजह से हैं। आरसीपी सिंह का कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड नहीं है फिर भी वो नीतीश की
छाया बने हुए हैं। ललन सिंह के बाद आपरसीपी ही नीतीश के नंबर वन करीबी हैं।
ट्रांसफर पोस्टिंग से लेकर टिकट बंटवारे में भी इन्हीं की सुनी जाती है। इन्हीं की
वजह से आरोप लगते हैं कि नीतीश कुर्मी जाति के आरसीपी पर सबसे ज्यादा भरोसा करते
हैं। ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, देवेश चंद ठाकुर जैसे पुराने सहयोगी इसी वजह से
नीतीश से नाराज हैं। देवेश, शिवानंद तो
पार्टी छोड़ चुके हैं। इस नए घटनाक्रम से कई नए समीकरण बनने वाले हैं। नीतीश-लालू से
हाथ मिलाएंगे तो शरद यादव का हाल जॉर्ज वाला होने वाला है। बीजेपी अगर 50 से
ज्यादा विधायकों को नहीं तोड़ेगी तब तक उसके लिए कुछ होने वाला नहीं है। नीतीश अपने दांव से बीजेपी को भी बेनकाब करना चाहते हैं। नी
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