Friday, May 16, 2014

लालू गए 'तेल' लेने, नीतीश का होगा 'खेल'

गूगल पर सर्च करके न्यूज चैनलों पर ज्ञान देने वाले तथाकथित ज्ञानियों के ज्ञान की सच्चाई सामने आ गई है। अब भी ऐसे बात कर रहे हैं जैसे जीतने वाला जीतकर कोई पाप कर रहा है। इन ज्ञानियों ने दो हफ्ते तक देश में कनफ्यूजन फैलाए रखा कि बिहार में लालू की हवा लौट आई है। नतीजों ने साफ कर दिया है कि लालू की हवा सिर्फ गूगल का ज्ञान लेकर बांटने वाले लोगों ने फैला रखा था। लालू का परफॉर्मेंस तो पिछला बार से भी बुरा रहा। गठबंधन के बाद भी लालू को सिर्फ 4 सीटें मिली हैं। कांग्रेस को 2 और एनसीपी 1 सीट पर जीती है। बीजेपी गठबंधन को 31 सीटें मिली है। दो सीटें जेडीयू के खाते में गया है। 

बीजेपी गठबंधन को करीब 39 फीसदी वोट मिले जबकि लालू गठबंधन को 29 फीसदी। नीतीश को 16 फीसदी वोट मिले हैं। नीतीश की हालत ऐसी है कि पार्टी 2 सीटें जीती और सिर्फ 4 जगहों पर दूसरे नंबर पर रही। बाकी जगहों पर आरजेडी और कांग्रेस के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे।
लालू की पार्टी को पिछली बार सारण, वैशाली, महाराजगंज और बक्सर की सीट मिली थी। इस बार चारों एनडीए को मिली हैं। लालू गठबंधन को सीटें सिर्फ सींमांचल और इसके आसपास के इलाकों से मिली है। आरजेडी के तस्लीमुद्दीन अररिया से, पप्पू यादव मधेपुरा से, भागलपुर से बुलो मंडल, बांका से जय प्रकाश यादव को जीते हैं। कांग्रेस की रंजीता रंजन सुपौल और असरारुल हक किशनगंज से जीते हैं। एनसीपी के तारिक अनवर कटिहार से जीते हैं। इसी सीमांचल के इलाके में से पूर्णिया की सीट जेडीयू को मिली है। सीमांचल को छोड़ दें तो पूरा बिहार एनडीए के रंग में रंगा है। सीमांचल के इलाके में ही मुस्लिम वोटरों की संख्या ज्यादा है। यादव भी अच्छी संख्या में हैं। यही वजह रही कि एनडीए के उम्मीदवार कम अंतर से ही सही यहां हार गए।
लालू ने नतीजों के बाद मोदी को बधाई देने से इनकार कर दिया। लालू का दर्द भी लाजिमी हैं। दर्द इसी से समझा जा सकता है कि बेटी मीसा भारती पाटलिपुत्र सीट से करीब 40 हजार और पत्नी राबड़ी देवी भी सारण से 40 हजार के आसपास वोटों से हारीं हैं। दिग्गज कहे जाने वाले आरजेडी के रघुवंश सिंह जो कि 1996 से लगातार जीत रहे थे उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। प्रभुनाथ सिंह महाराजगंज से हार गए, जगदानंद की बक्सर में दुर्गती हो गई। मंत्री रहे रघुनाथ झा तीसरे नंबर पर चले गए।
जिस MY समीकरण के लहर की बात लालू के पक्ष में कही जा रही थी  उस यादव जाति के 4 उम्मीदवार बीजेपी से जीते हैं। राजपूत जाति के 6 उम्मीदवार बीजेपी से जीते हैं और एक एलजेपी से। 3 ब्राह्मण और 4 भूमिहार जाति के उम्मीदवार जीते हैं। कायस्थ जाति के 1 उम्मीदवार की जीत हुई है।  
लेकिन जिस तरीके के नतीजे लोकसभा के आए हैं उससे तो यही लगता है कि हो न हो जेडीयू के सांसद बीजेपी में विलय कर जाए। आरजेडी भी टूट जाए। क्योंकि इनके पास अब झक मारने के अलावा कोई काम नहीं रहने वाला। जेडीयू से जीते पूर्णिया के सांसद संतोष कुशवाहा बीजेपी के विधायक थे और चुनाव से पहले ही जेडीयू में गए थे। आरजेडी के जय प्रकाश यादव रामकृपाल के करीबी हैं।
बिहार में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। फिलहाल बिहार की सरकार अल्पमत की सरकार है। हो न हो चुनाव से पहले ही बिहार में जेडीयू टूट जाए और टूटा धड़ा बीजेपी के साथ तालमेल कर विधानसभा का चुनाव लड़े। जेडीयू में दो दर्जन से ज्यादा असंतुष्ट विधायक पहले से थे। लोकसभा के नतीजों के बाद कुछ और होंगे जिनको अपना भविष्य दिख रहा होगा। शरद यादव जैसे दिग्गज नेता जो कि उनकी पार्टी के अध्यक्ष थे वही हार गए तो भला किसका क्या भविष्य होगा सोचने वाली बात है।
नीतीश मुस्लिम वोट के लिए छोड़कर गये थे लेकिन न तो मुस्लिमों का पूरा वोट ले पाए और ना ही अति पिछड़ों का। सवर्ण वोटर दूर जा चुके हैं। ऐसे में नीतीश के विधायक जरूर सोचने की स्थिति में होंगे। नरेंद्र सिंह, वृषण पटेल जैसे बड़े नेता तो टिकट बंटवारे को लेकर नीतीश के फैसले पर सवाल पहले ही उठा चुके हैं। दो चार दिन में बिहार की तस्वीर कुछ और साफ होगी तब तक इंतजार कीजिए। 

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