पटना के
राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा है कि परवीन अमानुल्लाह बीजेपी के टिकट पर
बेगूसराय से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी। बिहार की राजनीति में परवीन का इस्तीफा
नीतीश कुमार के लिए महज झटका भर नहीं है। बिहार की राजनीति में बदलाव को लेकर जो
फीडबैक नीतीश को मिलना चाहिए वो उन्हें सही तरीके से मिल नहीं रहा है। शायद यही
वजह है कि बिहार की जमीनी हकीकत को नीतीश भांप नहीं पा रहे। तो क्या जेडीयू का
जहाज डूब रहा है?
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परवीन अमानुल्लाह |
परवीन नीतीश
कुमार की सरकार में एक मात्र महिला मुस्लिम मंत्री ही नहीं थीं. बल्कि भ्रष्टाचार
के खिलाफ सरकार में एक स्तंभ के तौर पर स्थापित थीं। जिस मुसलमान वोट के लिए नीतीश
ने अपने राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा और कड़ा फैसला लिया उस मुस्लिम समाज में इस
इस्तीफे की वजह से असर हो सकता है।
नीतीश कुमार
ने बीजेपी से रिश्ता खत्म करते वक्त ये सोचा था कि बिहार के मुसलमान उनको सिर
आंखों पर बिठाएंगे। लेकिन इस फैसले के बाद पार्टी में जिस तरीके से सिर फुटव्वैल
की स्थिति पैदा हुई है उससे यही लग रहा है कि नीतीश बिहार में इस वक्त अस्तित्व
बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
मुस्लिम वोट
के लिए ही नीतीश ने कई ऐसे काम किए जिसकी वजह से उनकी हर ओर किरकिरी हुई। चाहे
सीमा पर शहीद हुए जवानों के परिवार वालों से न मिलने का विवाद हो या फिर संदिग्ध
आतंकी यासीन भटकल की गिरफ्तारी को छिपाने का। मंत्री भीम सिंह ने तो सैनिकों को
लेकर उस वक्त यहां तक कहा था कि सैनिक बनते ही हैं मरने के लिए। कृषि मंत्री
नरेंद्र सिंह ने तो सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की बात को ही गलत बता दिया
था। मुस्लिम वोट के लोभ में नीतीश ने हर उस तरह के विवादित काम किए जिसके लिए
राजनीति में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। खगड़िया में ट्रेन हादसे में मारे गए
हिंदू श्रद्धालुओं को नीतीश देखने तक नहीं गए थे। आतंकी घटनाओं से बिहार अछूता था
लेकिन नीतीश के कार्यकाल में पांच महीने में ही बिहार में दो दो बार सीरियल
ब्लास्ट हुए। आतंकियों को बचाने का आरोप भी नीतीश सरकार पर लगा।
एक तरफ
मुस्लिम वोट के लोभ में नीतीश सब कुछ बारीकी से नजरअंदाज करते रहे तो दूसरी ओर
पार्टी के भीतर एक खेमा ऐसा भी था जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित है।
पार्टी की
बैठक में खुलकर विवाद देखने को मिला। शिवानंद तिवारी ने बगावत की चिंगारी जलाई तो
नीतीश ने उन्हें साइड कर दिया। पार्टी के आधा दर्जन सांसद टिकट के लिए बीजेपी के
संपर्क में हैं। मीना सिंह, सुशील कुमार सिंह, मंगनी लाल मंडल, बैद्यनाथ महतो, कैप्टन निषाद बीजेपी का टिकट चाह रहे हैं । खुद शरद यादव मधेपुरा में हार की आशंका से हिले हुए
हैं।
जहानाबाद के
सांसद जगदीश शर्मा को छोड़कर पार्टी के अभी 19 सांसद हैं। लेकिन स्थिति ये है कि
पार्टी उन लोगों को तलाश रही है जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी या राजद गठबंधन को
टक्कर देने की स्थिति में हो। जेडीयू कई ब्यूरोक्रेट के संपर्क में है। बीजेपी के
भी कुछ बागी विधायकों को भी तोड़कर जेडीयू के टिकट पर लड़ने की तैयारी है। बाहुबली
शहाबुद्दीन की पत्नी को सीवान से लड़ाने की तैयारी है।
लालू के जेल
से बाहर आने के बाद से परिस्थितियां बदली हुई है। मुस्लिम-यादव समीकरण एक बार फिर
से लालू के पक्ष में होने की स्थिति बन रही है। ऐसे में नीतीश के लिए परवीन
अमानुल्लाह का इस्तीफा बड़े सियासी भूचाल ही आहट से कम नहीं है।
अब सवाल
परवीन अमानुल्लाह को लेकर है। परवीन के सामने ऐसी क्या सियासी मजबूरी आ गई कि
उन्होंने मंत्री पद के साथ पार्टी की सदस्यता तक छोड़ दी। परवीन फिलहाल बेगूसराय
जिले की साहेबपुर कमाल सीट से विधायक है। 2010 में पहली बार ये सीट बनी। आरटीआई
कार्यकर्ता और बिहार के पूर्व मुख्य सचिव की पत्नी के साथ ही परवीन बाबरी मस्जिद
एक्शन कमेटी के सैयद शहाबुद्दीन की बेटी भी हैं। मतलब मुस्लिम समाज में बड़ा नाम
और पहचान वाले परिवार से रिश्ता रखती हैं। नीतीश ने 2010 में इसी को भुनाया । टिकट
दिया, जीत गई और उन्हें समाज कल्याण मंत्री बना दिया।
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इसी तस्वीर ने बिहार में मचाई सनसनी |
माना जा रहा
है कि रविवार को बाहुबली विधायक अनंत सिंह(भूमिहार) के सामने नीतीश जिस अंदाज में
हाथ जोड़े दिखे उसने परवीन को नाराज कर दिया। परवीन और अनंत सिंह के बीच पटना में
एक जमीन को लेकर विवाद चल रहा है।
अब परवीन
क्या करेंगी? बीजेपी से टिकट लेकर लोकसभा चुनाव लड़ती हैं तो लड़ाई दिलचस्प
होगी । लेकिन सवाल ये कि क्या मुस्लिम समाज स्वीकार कर पाएगा? वैसे भी विधायक तो बीजेपी के समर्थन से जीतकर ही
बनी हैं। परवीन के बीजेपी में जाने से जितना फायदा परवीन को होगा उससे कहीं ज्यादा
बीजेपी को। पार्टी में बड़े चेहरे के तौर पर परवीन जगह बना सकती हैं। हो न हो
सरकार बनने पर केंद्र में मंत्री भी। लेकिन परिवार का बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी से
रिश्ता क्या कोई रुकावट नहीं बनेगा....सामने सवाल कई हैं...और सबसे बड़ा सवाल
परवीन के अगले कदम का.. जिसके बाद कई तरह की तस्वीर साफ होगी।
परवीन से
पहले बेगसूराय जिले में ही जमशेद अशरफ नाम के एक मुस्लिम नेता हुआ करते थे... अब
भी हैं । नीतीश की पहली सरकार में शराब
मंत्री थे.. लेकिन 2010 में विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश ने उन्हें सेट कर दिया
था। अब बदले राजनीतिक हालात में भरपाई के लिए उनकी वापसी हो सकती है। हालांकि क्या
होगा अभी कहा नहीं जा सकता। बिहार में 15-20 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। लालू से लेकर
नीतीश तक इस वोट बैंक की ताक में हैं।
बिहार में
परवीन तो झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष राजा पीटर ने इस्तीफा दे दिया है। राजा पीटर
ने ही मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़ने वाले शिबू सोरेन को हराकर राजनीति में सनसनी
मचा दी थी। तब पीटर निर्दलीय ही जीते थे। बाद में वो जेडीयू में गए और प्रदेश
अध्यक्ष बने। लेकिन दूसरे नेताओं की दखलंदाजी ने उन्हें नाराज कर दिया था। अब उनके
बीजेपी में जाने की अटकलें हैं।
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