Friday, August 9, 2013

नीतीश को भीम सिंह की जरूरत है !

1996 की बात है मैं राधवेंद्र सिंह के साथ भीम सिंह की जीप में बैठकर शिवहर से मुजफ्फरपुर तक आया था । तब भीम सिंह बिहार में युवा समता के अध्यक्ष थे और राघवेंद्र सिंह छात्र समता के। उस दिन भीम सिंह शिवहर में युवा समता के जिलाध्यक्ष के चुनाव में हिस्सा लेने गए थे। संजय पांडे (अब इस दुनिया में नहीं) और दिनेश सिंह दो दावेदार थे। संजय पांडे से मेरी नजदीकी थी इसलिए मैं जीप में लौटते वक्त संजय पांडे की पैरवी कर रहा था। बाद में संजय पांडे अध्यक्ष बने तो आनंद मोहन (तब यूथ के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे) ने पूरी बिहार यूनिट ही भंग कर दी थी।
                    कल सुबह जब प्रकाश कुमार की रिपोर्ट में भीम सिंह के घर के बाहर खड़ी महंगी करीब दर्जन भर गाड़ियां देखी तो दंग रह गया। एक वो वक्त था जब भीम सिंह विपक्ष की राजनीति करते थे। समता पार्टी की युवा इकाई के अध्यक्ष होने के बाद पुराने जमाने की एक जीप में बिहार भर में घूमा करते थे। एक ये वक्त है जब उनकी पार्किंग में दर्जन भर गाड़ियां खड़ी हैं।

                  गया के रहने वाले भीम सिंह कहार जाति के हैं। भीम सिंह ने राजनीति की शुरुआत लालू, पासवान और नीतीश के साथ पटना यूनिवर्सिटी से की थी । नीतीश के साथ शुरुआत से जुड़े रहे। नीतीश ने करीबी होने की वजह से ख्याल भी रखा। 1994 में जब नीतीश ने समता पार्टी बनाई तब भीम सिंह युवा के बिहार के अध्यक्ष बने। बिहार में भीम सिंह ने समता पार्टी की युवा इकाई को पार्टी के संगठन से ज्यादा मजबूत बनाया।
                  भीम सिंह नीतीश मंत्रिमंडल में पढ़े लिखे नेताओं में से एक हैं । मैट्रिक, इंटर, बीएससी फर्स्ट क्लास से पास हैं। दो विषयों में एम हैं। पीएचडी और लॉ भी कर चुके हैं। प्रोफेसर भी रह चुके हैं । लेकिन आज उन्होंने जिस तरीके से महुआ चैनल के रिपोर्टर से बात की उससे न सिर्फ उनकी साख को बट्टा लगा बल्कि पूरे देश में बिहार और बिहार सरकार की थू-थू होने लगी।
भीम सिंह परसों रात विभागीय बैठक करके सरकारी निवास पर लौटे थे। रात को 8 बजे ही सो गए। भीम सिंह ही नहीं। विजय चौधरी, विजेंद्र यादव, पी के शाही, गौतम सिंह सब के सब सोते रहे । कल सुबह चैनल पर जब खबर चली तो मानो हड़कंप मच गया । नीतीश दिल्ली में थे । मंत्रियों को शहीदों के घर जाने का आदेश सुनाया। श्याम रजक समय से आरा पहुंच गये। रेणु कुमारी बिहटा पहुंचीं। लेकिन छपरा जाने वाले नरेंद्र सिंह और अवधेश कुशवाहा टाइम से नहीं पहुंचे। डैमज कंट्रोल की नीतीश की कोशिश पर पानी फेरा भीम सिंह ने।
                     “सेना की नौकरी सैनिक शहीद होनो के लिए ही करते हैं ।“  पत्रकार को तो भीम सिंह इससे आगे जाकर बहुत कुछ सुना गए । पटना से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मच गया। दिल्ली से फोन करके नीतीश ने भीम सिंह को हड़काया। तुरंत भीम सिंह ने माफी मांगी।
वैसे भीम सिंह को जो लोग जानते हैं वो इतना जानते हैं कि उनकी गिनती बिहार के चंद अच्छे नेताओं में से होती है। बोल चाल से लेकर बात व्यवहार तक। हालांकि छात्र राजनीति की उपज होने की वजह से तेवर तो उग्र हैं लेकिन किसी का कभी नुकसान नहीं किया।
     नीतीश कुमार से एक बार अनबन हो गई तो लालू के साथ चले गए। 2005 में जब नीतीश मुख्यमंत्री बने तो लालू ने भीम सिंह को बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाया था। कार्यकाल खत्म होने के बाद नीतीश ने भीम सिंह को अपने पास बुला लिया और दोस्ती का तोहफा देते हुए मंत्री की कुर्सी दे दी । पार्टी की राजनीति में भीम सिंह को पिछड़ों में नीतीश के बाद नंबर दो माना जाता है। माना जा रहा है कि नीतीश अगर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय होते हैं तो बिहार में भीम सिंह ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। लेकिन जिस तरीके से भीम सिंह ने कल बयान दिया उससे नीतीश को सदमा जरूर लगा होगा। वैसे राजनीति में कुछ कह नहीं सकते।
                भीम सिंह ने बिहार के पंचायती राज व्यवस्था में कई बदलाव किए। भीम सिंह ने जब से इस विभाग का कार्यभार संभाला तब से बिहार के पंचायत दफ्तरों की तस्वीर बदल गई। भीम सिंह ने ही बिहार में महिला मुखिया और महिला पंचायत समिति सदस्यों की जगह उनके पतियों के सरकारी बैठक में शामिल होने पर रोक लगा दी । इस फैसले ने बिहार जैसे पिछड़े राज्य में क्रांति का काम किया । पहले जहां बिहार में सरकारी फोन कॉल्स मुखिया के पति रिसीव करते थे अब खुद मुखिया या पंचायत समिति की महिला सदस्य ही सरकारी फोन रिसीव करती हैं । हालत ये है कि इस फैसले के बाद महिला प्रतिनिधि अब पढ़ाई-लिखाई भी करने लगी हैं। बिहार में पचास फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित है। नीतीश और बिहार की मजबूती में भीम सिंह के ये योगदान तो मानना पड़ेगा।
           भीम सिंह का कद बढ़ाने के लिए नीतीश ने उपेंद्र कुशवाहा से लेकर भगवान सिंह कुशवाहा तक का कद कम कर दिया। 

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