Friday, August 9, 2013

भागो-भागो टोपी आया.....

ईद के दिन पटना में नीतीश भी टोपी पहनकर निकले तो भोपाल में बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी। लालू से लेकर अखिलेश यादव तक । हर कोई टोपी पहनकर खुद को अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा रहनुमा बताने में लगा था । लेकिन इस मौके पर भी सुर्खियां बनी मोदी की दो साल पहले वाली वो टोपी जिसे उन्होंने मंच पर ही पहनने से इनकार कर दिया था । सद्भावना उपवास के दौरान 18 सितंबर 2011 को मंच पर जब एक इमाम ने टोपी पहनाने की कोशिश की तो मोदी ने इनकार कर दिया ।  दो साल हो गए लेकिन  टोपी का भूत नरेंद्र मोदी का पीछा नही छोड़ा रहा।

भोपाल का ईदगाह मैदान
        भोपाल में कांग्रेस से जुड़े अभिनेता रजा मुराद जब टोपी प्रकरण पर बोल रहे थे तब  बगल में शिवराज सिंह चौहान भी खडे थे । रजा मुराद ने टोपी को आधार बनाकर शिवराज को मोदी की तुलना में अल्पसंख्यकों का बड़ा हितैषी बताया । सधे शब्दों में खूब खरी खोटी भी सुना दी । ये भी कहा कि दूसरे मुख्यमंत्रियों को शिवराज से सीख लेने की जरूरत है । रजा मुराद ने यहां तक कहा कि देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठना है तो सबको साथ लेकर चलना होगा । भले ही रजा मुराद ने नाम किसी का नहीं लिया लेकिन सब जान गये कि कांग्रेस के जडे कलाकर के निशाने पर नरेंद्र मोदी ही हैं ।  
                         मोदी के विरोधी नीतीश कुमार भी समय समय पर टोपी का मुद्दा छेड़ते ही रहे हैं । नीतीश जब बीजेपी के साथ थे तब उन्होंने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि समय पड़ने पर टोपी भी पहननी पड़ती है और तिलक भी लगाना पड़ता है । हालांकि मोदी पर नीतीश की सलाह का कोई असर नहीं दिखा । 
18 सितंबर 2011
 देश में करीब 15 करोड़ आबादी मुसलमानों की है। मुसलमानों के बीच मोदी की जो छवि है वो किसी से छिपी नहीं है । राजनीति में आज भी खुद को सेक्यूलर बताने वाले नेता और पार्टियां मोदी से दस कदम दूर ही रहना चाहती है। 
 
            टोपी प्रकरण में इसी महीने एक नया विवाद भी जुडा जब twitter पर मोदी के नाम से उर्दू में ट्वीट होने लगा। इस twitter एकाउंट पर मोदी की जो तस्वीर लगी थी उसमें उन्हें टोपी पहने दिखाया गया था । हालांकि बाद में मोदी की ओर से साफ किया गया कि ये एकाउंट ही फर्जी है ।  
                  जब से दिल्ली की राजनीति में मोदी ने दस्तक दी है तब से वो टोपी विवाद से निकलने की कोशिश कर रहे हैं । हालांकि इसके लिए अभी उन्होंने टोपी नहीं पहनी है । लेकिन अपने दायरे में रहकर कोशिश कर रहे हैं । कल ईद के एलान होने का वक्त हो तब या फिर आज ईद के नमाज का वक्त । मोदी ने ट्वीट कर मुसलमान भाइयों को ईद की बधाई देने में देरी नहीं की । वैसे मोदी के टोपी नहीं पहनने के कई कारण हो सकते हैं । हर विश्लेषक अपने अपने तरह से टोपी विवाद का विश्लेषण कर सकता है । कुछ को हिंदूवादी छवि पर असर कारण लग सकता है तो कोई बीजेपी के लिए मजबूरी कह सकता है। इस्लाम के जानकार टोपी की राजनीति को अपमान मानते हैं । वैसे मोदी के समर्थक ये दावा जरूर करते रहे हैं कि टोपी नहीं पहनने से मोदी की लोकप्रियता में कमी नहीं आई है ।

नीतीश को भीम सिंह की जरूरत है !

1996 की बात है मैं राधवेंद्र सिंह के साथ भीम सिंह की जीप में बैठकर शिवहर से मुजफ्फरपुर तक आया था । तब भीम सिंह बिहार में युवा समता के अध्यक्ष थे और राघवेंद्र सिंह छात्र समता के। उस दिन भीम सिंह शिवहर में युवा समता के जिलाध्यक्ष के चुनाव में हिस्सा लेने गए थे। संजय पांडे (अब इस दुनिया में नहीं) और दिनेश सिंह दो दावेदार थे। संजय पांडे से मेरी नजदीकी थी इसलिए मैं जीप में लौटते वक्त संजय पांडे की पैरवी कर रहा था। बाद में संजय पांडे अध्यक्ष बने तो आनंद मोहन (तब यूथ के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे) ने पूरी बिहार यूनिट ही भंग कर दी थी।
                    कल सुबह जब प्रकाश कुमार की रिपोर्ट में भीम सिंह के घर के बाहर खड़ी महंगी करीब दर्जन भर गाड़ियां देखी तो दंग रह गया। एक वो वक्त था जब भीम सिंह विपक्ष की राजनीति करते थे। समता पार्टी की युवा इकाई के अध्यक्ष होने के बाद पुराने जमाने की एक जीप में बिहार भर में घूमा करते थे। एक ये वक्त है जब उनकी पार्किंग में दर्जन भर गाड़ियां खड़ी हैं।

                  गया के रहने वाले भीम सिंह कहार जाति के हैं। भीम सिंह ने राजनीति की शुरुआत लालू, पासवान और नीतीश के साथ पटना यूनिवर्सिटी से की थी । नीतीश के साथ शुरुआत से जुड़े रहे। नीतीश ने करीबी होने की वजह से ख्याल भी रखा। 1994 में जब नीतीश ने समता पार्टी बनाई तब भीम सिंह युवा के बिहार के अध्यक्ष बने। बिहार में भीम सिंह ने समता पार्टी की युवा इकाई को पार्टी के संगठन से ज्यादा मजबूत बनाया।
                  भीम सिंह नीतीश मंत्रिमंडल में पढ़े लिखे नेताओं में से एक हैं । मैट्रिक, इंटर, बीएससी फर्स्ट क्लास से पास हैं। दो विषयों में एम हैं। पीएचडी और लॉ भी कर चुके हैं। प्रोफेसर भी रह चुके हैं । लेकिन आज उन्होंने जिस तरीके से महुआ चैनल के रिपोर्टर से बात की उससे न सिर्फ उनकी साख को बट्टा लगा बल्कि पूरे देश में बिहार और बिहार सरकार की थू-थू होने लगी।
भीम सिंह परसों रात विभागीय बैठक करके सरकारी निवास पर लौटे थे। रात को 8 बजे ही सो गए। भीम सिंह ही नहीं। विजय चौधरी, विजेंद्र यादव, पी के शाही, गौतम सिंह सब के सब सोते रहे । कल सुबह चैनल पर जब खबर चली तो मानो हड़कंप मच गया । नीतीश दिल्ली में थे । मंत्रियों को शहीदों के घर जाने का आदेश सुनाया। श्याम रजक समय से आरा पहुंच गये। रेणु कुमारी बिहटा पहुंचीं। लेकिन छपरा जाने वाले नरेंद्र सिंह और अवधेश कुशवाहा टाइम से नहीं पहुंचे। डैमज कंट्रोल की नीतीश की कोशिश पर पानी फेरा भीम सिंह ने।
                     “सेना की नौकरी सैनिक शहीद होनो के लिए ही करते हैं ।“  पत्रकार को तो भीम सिंह इससे आगे जाकर बहुत कुछ सुना गए । पटना से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मच गया। दिल्ली से फोन करके नीतीश ने भीम सिंह को हड़काया। तुरंत भीम सिंह ने माफी मांगी।
वैसे भीम सिंह को जो लोग जानते हैं वो इतना जानते हैं कि उनकी गिनती बिहार के चंद अच्छे नेताओं में से होती है। बोल चाल से लेकर बात व्यवहार तक। हालांकि छात्र राजनीति की उपज होने की वजह से तेवर तो उग्र हैं लेकिन किसी का कभी नुकसान नहीं किया।
     नीतीश कुमार से एक बार अनबन हो गई तो लालू के साथ चले गए। 2005 में जब नीतीश मुख्यमंत्री बने तो लालू ने भीम सिंह को बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाया था। कार्यकाल खत्म होने के बाद नीतीश ने भीम सिंह को अपने पास बुला लिया और दोस्ती का तोहफा देते हुए मंत्री की कुर्सी दे दी । पार्टी की राजनीति में भीम सिंह को पिछड़ों में नीतीश के बाद नंबर दो माना जाता है। माना जा रहा है कि नीतीश अगर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय होते हैं तो बिहार में भीम सिंह ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। लेकिन जिस तरीके से भीम सिंह ने कल बयान दिया उससे नीतीश को सदमा जरूर लगा होगा। वैसे राजनीति में कुछ कह नहीं सकते।
                भीम सिंह ने बिहार के पंचायती राज व्यवस्था में कई बदलाव किए। भीम सिंह ने जब से इस विभाग का कार्यभार संभाला तब से बिहार के पंचायत दफ्तरों की तस्वीर बदल गई। भीम सिंह ने ही बिहार में महिला मुखिया और महिला पंचायत समिति सदस्यों की जगह उनके पतियों के सरकारी बैठक में शामिल होने पर रोक लगा दी । इस फैसले ने बिहार जैसे पिछड़े राज्य में क्रांति का काम किया । पहले जहां बिहार में सरकारी फोन कॉल्स मुखिया के पति रिसीव करते थे अब खुद मुखिया या पंचायत समिति की महिला सदस्य ही सरकारी फोन रिसीव करती हैं । हालत ये है कि इस फैसले के बाद महिला प्रतिनिधि अब पढ़ाई-लिखाई भी करने लगी हैं। बिहार में पचास फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित है। नीतीश और बिहार की मजबूती में भीम सिंह के ये योगदान तो मानना पड़ेगा।
           भीम सिंह का कद बढ़ाने के लिए नीतीश ने उपेंद्र कुशवाहा से लेकर भगवान सिंह कुशवाहा तक का कद कम कर दिया। 

Monday, August 5, 2013

ड्राइवर से डॉन बने सलेम को फांसी नहीं होगी

   देश की सबसे बड़ी अदालत ने साफ कर दिया है कि 1993 के मुंबई धमाकों के आरोपी अबु सलेम पर दोष साबित भी होता है तो उसे फांसी की सजा नहीं हो सकती । सलेम ने कोर्ट में अर्जी केस खत्म करने की दी थी। अदालत ने सलेम की बात तो नहीं सुनी लेकिन उसे एक तरह से जीवन दान जरूर दे दिया। सलेम को जब साल 2005 में पुर्तगाल से भारत लाया गया था तभी पुर्तगाल से ये करार हुआ था कि सलेम को 25 साल से ज्यादा या फिर फांसी की सजा नहीं मिलेगी। कोर्ट से इस करार को सही करार दिया है।
                         80 से दशक में सलेम ने अपराध की दुनिया में एंट्री ली थी । तब वह आजमगढ़ के अपने गांव सराय मीर से दिल्ली कमाने के लिए आया था। दिल्ली में कुछ दिन टैक्सी ड्राइवर का काम किया लेकिन किस्मत को उसे अपराध के दलदल में धकेलना था सो 1980 के बीच में वो मुंबई आ गया। मुंबई में सलेम ने रेडिमेड कपड़ों का कारोबार शुरू किया। मन नहीं लगा तो कुछ दिन टेलीफोन बूथ के धंधे से जुड़ा। इसी दौरान उसकी मुलाकात डॉन के खासमखास छोटा शकील से हुई।

            डी कंपनी में सलेम ने छोटा शकील के ड्राइवर के तौर पर एंट्री ली थी । शुरुआत में सलेम को शूटरों तक हथियार पहुंचाने का काम दिया गया। अंडरवर्ल्ड को करीब से जानने वाले बताते हैं कि सलेम को इस वजह से कंपनी में अबु सामान भी कहा जाने लगा था। सलेम ने ही 1993 में संजय दत्त तक एके-56 पहुंचाए थे।
             सलेम ने दाऊद गैंग में अपनी ऐसी जगह बनाई कि उसकी गिनती कंपनी में छोटा शकील के बाद होने लगी थी। इस दौर में डी कंपनी में सलेम छोटा शकील के बाद दाऊद का सबसे भरोसेमंद हो गया था। 1997 में निर्माता मुकेश दुग्गल की हत्या के बाद सलेम और मोनिका बेदी एक दूसरे के करीब आए। मुकेश दुग्गल की हत्या में सलेम का हाथ ही बताया जाता है। बताया जाता है कि सलेम से पहले मोनिका मुकेश दुग्गल की ही प्रेमिका थी। जून में दुग्गल की हत्या हुई इसके बाद 12 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार की भी हत्या हो गई।
 कहा जाता है कि सलेम ने कैसेट किंग गुलशन कुमार की हत्या से पहले दाऊद की इजाजत नहीं ली थी। दाऊद इतना नाराज हुआ कि सबके सामने उसने सलेम को थप्पड़ जड़ दिया। इसी के बाद सलेम ने दाऊद गैंग से नाता तोड़ लिया।

                मोनिका बेदी से सलेम ने दूसरी शादी कर ली थी। सलेम की पहली पत्नी समीरा अमेरिका में रहती है। मुंबई धमाकों के बाद सलेम भारत से भागा भागा फिर रहा था।
 2 सितंबर को जब सलेम को पुर्तगाल के लिस्बन से गिरफ्तार किया गया तब मोनिका भी उसके साथ थी। करीब तीन साल की कोशिश के बाद पुर्तगाल ने सलेम को साल 2005 में भारत के हवाले किया।
              पुर्तगाल से हुए करार के मुताबिक सलेम को भारत में फांसी या फिर 25 साल की सजा नहीं दी जा सकती थी। सलेम पर भारत में 50 के आसपास मुकदमे हैं। मुंबई धमाकों के साथ ही गुलशन कुमार हत्याकांड, मुकेश दुग्गल हत्याकांड, अजीत देवानी हत्याकांड और कई बिल्डरों, फिल्म निर्माता-निर्देशकों को धमकाने का आरोप है। फर्जी पासपोर्ट के जरिये देश छोड़ने का आरोप भी सलेम पर है। नारको टेस्ट में सलेम कई आरोपों में अपना गुनाह कबूल भी चुका है।
            सलेम ने 2007 में यूपी से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी भी की थी। आजमगढ़ और मुबारकपुर में पोस्टर भी लग गए थे लेकिन कोर्ट ने सलेम को सियासत के अखाड़े में उतरने की इजाजत नहीं दी। मुंबई की जेल में सलेम पर दो बार हमले भी हो चुके हैं ।

   27 जून को नवी मुंबई की तलोजा जेल में दाऊद के आदमी ने सलेम पर हमला किया था। इससे पहले जुलाई 2010 में भी आर्थर रोड जेल में सलेम पर हमला हुआ था। कहा जाता है कि सलेम को गिरफ्तार कराने में भी दाऊद का ही रोल था। अदालत के फैसले से सलेम को कम से कम इस बात का सकून होगा कि उसे फांसी की सजा तो नहीं मिलेगी।