Tuesday, January 4, 2011

कार और पहाड़ में नया साल 2011


ए साल में शिमला की यात्रा। पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के बाद कहीं की यात्रा का ये मेरा पहला अनुभव था। करीब एक महीने से तैयारी चल रही थी। जाने को सब तैयार थे लेकिन कहां जाना है इसको लेकर असमंजस जाने-जाने के दिन तक रहा। वैसे छुट्टी मिलेगी या नहीं, मिलेगी तो सब को मिलेगी या नहीं इसको लेकर भी तस्वीर साफ नहीं हो पा रही थी। हालांकि जब मन बन गया और वरिष्ठों से राय लेने के बाद जगह की तस्वीर साफ हुई तो कैसे जाया जाए, इसको लेकर मामला फंस गया। हालांकि जल्द ही इसका भी तोड़ निकाला गया । इसके बाद एक दिन का ऑफ और एक दिन पुराना बाकी वाला ऑफ मिलाकर दो दिन की छुट्टी का समय निकला। तय समय से एक घंटे की देरी से हमलोग 31 दिसंबर की सुबह 7 बजे नाहन के लिए प्रस्थान किए। करीब 6-7 घंटे की यात्रा करने के बाद भी नाहन के रास्ते में पहाड़ की बात तो दूर नाहन का बोर्ड तक नहीं दिख रहा था। ऊपर से अंबाला में एक हाई-फाई चाय दुकान के मालिक से पूछा तो कहा कि नाहन कहां है ये पता नहीं। (लौटते वक्त ड्राइवर ने बताया कि चाय दुकानदार साउथ इंडियन है लिहाजा उसे यहां की भौगोलिक स्थिति की जानकारी नहीं है)

शंका हो रही थी कि कहीं गलत रास्ते पर तो नहीं जा रहे हैं ? किलोमीटर का बिल तो नहीं बढ़ रहा है ?कुछ कर भी नहीं सकते थे, सिवाए ड्राइवर के किसी को कोई जानकारी नहीं थी इस रूट की। खैर 2.15 बजे नाहन का बोर्ड दिखा और फिर दस मिनट बाद पहाड़। राहत मिली की रास्ता गलत नहीं है। 17 किलोमीटर पहाड़ पर का सफर तय कर 3 बजे के आसपास पहुंच भी गए। सर्किट हाउस में ठहरने का इंतजाम था सो वहां सब मामला सेट हो गया। लेकिन सबसे पहला झटका मित्रों को सर्किट हाउस में ही लगा जब वहां के केयर टेकर ने कहा कि यहां कुछ घूमने के लिए है ही नहीं।



वैसे मुझे भी लगा था कि कुछ तो देखने को मिलेगा, लेकिन मेरे सभी साथियों को नाहन को लेकर ज्यादा उम्मीद थी। मामला यहीं फेल हो गया, ऊपर से बाजार में कार लेकर पता करने निकले तो ऐसा लग रहा था जैसे पूरे नाहन में सिर्फ हम लोग ही थे जो घूमने आए थे। खैर मामला गड़बड़ा गया था। रश्मि कुछ ज्यादा ही दुखी हो गई थी, हम सब में से सबसे ज्यादा रश्मि ही थी जो यात्रा को लेकर उत्साहित थी। होटल में खाना खाते वक्त मुझे लगा कि कुछ तो करना होगा नहीं तो पैसा बेकार हो जाएगा। इतना खर्च हुआ तो नहीं कुछ और सही। तय कर लिया कि कल शिमला की तरफ जाएंगे। हालांकि किसी को बताया नहीं। नाहन में जो कुछ भी था देखने के लिए, वैसे था तो कुछ भी नहीं, लेकिन रानीताल, माल रोड, राजा का किला टाइप जो कुछ भी था सब घूम-घाम लिए। रात को सर्किट हाउस की तरफ लौट रहे थे तो हुआ कि कुछ खरीदा जाए। एक कपड़े की दुकान में गये और सब लोगों ने स्वेटर, जैकेट टाइप आइटम खरीदे।सर्किट हाउस लौटने के बाद सब ने मान की बात रखी, सब मन मसोस-मसोस कर बोल रहे थे। बिना वक्त जाया किए फैसला हो गया कि कल शिमला जाएंगे, लेकिन कल दो बजे ही यानी 1 जनवरी को 2 बजे तक शिमला छोड़ देंगे ताकि रात तक घर पहुंच जाए और सुबह समय से दफ्तर।
 नए साल की सुबह सुबह 6 बजे हम चारों शिमला यात्रा के लिए निकल पड़े। रास्ते में पहाड़ी रास्ते का आनंद लेते हुए 11.30 बजे हमारी गाड़ी शिमला पहुंची । जनता कुफरी जाने की जिद करने लगी। भावनाओं का सम्मान करते हुए हमलोग कुफरी की तरफ बढ़े।  रास्ते में बर्फबारी के दर्शन हुए और फिर शिमला आना सफल हो गया। डेडलाइड 2 बजे की ही थी कि 2 बजे लौटना भी है। हालांकि खाना खाने और गाड़ी पार्किंग के चक्कर में देर हुई लेकिन माल रोड, मिडल बाजार, लोअर बाजार टाइप जगह घूम घाम के 4 बजे से पहले फ्री हो गए। इस दौरान टॉयलेट खोजने के लिए 15 मिनट का समय बर्बाद हुआ। माल रोड से वापस पार्किग की तरफ लौटने में रास्ता भूले तो उसमें भी कुछ वक्त गया। बंडी, जूता, टोपी तीन चीजों की खरीदारी भी हुई। और 3 बजकर 56 मिनट पर सब लोग गाड़ी में बैठकर दिल्ली के लिए निकल पड़े। सोच रखे थे कि दिन-दिन में पहाड़ी रास्ता काट लेंगे। लेकिन रास्ते में परमाणु के पास 1 घंटा जाम में फंस गए। 1 घंटा लगभग रात को खाने में लगा। लौटने के दौरान 2 जगह चाय पी गई। और इस प्रकार रात 2 बजे के करीब दिल्ली में दाखिल हुए। हिसाब किताब करते और सब को छोड़ते हुए 3.30 बजे के करीब घर पहुंचे। और ऐसे साल का पहला दिन कार और पहाड़ में बीत गया। 2010 का आखिर दिन जितना उत्साह से शुरू हुआ था उतने उत्साह से खत्म नहीं हुआ लेकिन 2011 का पहला दिन उत्साह से शुरू हुआ और फिर उत्साह के थकान से खत्म भी।
अभिनित, रश्मि और यश ने यात्रा का आनंद तो लिया ही मैंने भी जमाने बाद कहीं की यात्रा की सो पूरा आनंद लिया। कुछ भी कहिए मजा आया, समय होता और और आता। बस निप्पू को सबने मिस किया। निप्पू क्यों नहीं गया इसके कारण का जो खुलासा उसने किया किसी को नहीं बता सकता। बेहतर होगा तुम तीनों में से कोई मुझसे या उससे पूछेगा भी नहीं। समय आने पर बता दूंगा। वैसे निप्पू ने कहा था कि मेरे लिए कुछ लेते आइएगा, लेकिन किसी ने कुछ लिया नहीं। मैं भी भूल गया। सॉरी निप्पू। अगली बार...साथ चलेंगे तो हिसाब बराबर करेंगे।

4 comments:

Anonymous said...

sir ye yatra ek yadgar anubhav tha. maine bhi bhut jyada yatra nhi ki hai lekin jitni bhi ki hain un mein se ye sabse yadgar rahi.umeed karti hun ki aisi rochak or yaadgar yatra aage bhi karte rahenge. ek baat or jo bhut jaruri hai ki aapke bina ye yatra mumkin nhi thi. isliye yaadgar anubhav ke liye shukriya.

Anonymous said...

sir ye yatra ek yadgar anubhav tha. maine bhi bhut jyada yatra nhi ki hai lekin jitni bhi ki hain un mein se ye sabse yadgar rahi.umeed karti hun ki aisi rochak or yaadgar yatra aage bhi karte rahenge. ek baat or jo bhut jaruri hai ki aapke bina ye yatra mumkin nhi thi. isliye yaadgar anubhav ke liye shukriya.
rashmi

Anonymous said...

"sir jee aap ne to samajwad me punjiwad ka maza liya......isko kahte hai mix economy.......happy new year".

MANOJ KUMAR said...

धन्यवाद। अगली यात्रा की प्रतिक्षा में।
आपका साथी