भगवान राम के जन्म को लेकर आपने कई जगह पढ़ा होगा, सुना होगा, धारावाहिकों में देखा भी होगा । लेकिन सीता के जन्म को लेकर बहुत कम लोग वाकिफ होंगे। कुछ लोग जनकपुर सुनकर ही लौट आए होंगे कुछ कहानी में घुसे होंगे तो सीतामढ़ी से आगे नहीं बढ़े होंगे। (रिसर्च और दिलचस्पी रखने वालों को छोड़कर)। अभी दफ्तर में कल ही चर्चा हो रही थी, तो हमारे एक वरिष्ठ हैं शिवेंद्र जी, उनको और कुछ और मित्रों को मान्यताओं पर आधारित सीता जन्म की कहानी सुना रहा था। इसिलिए प्रसंगवश लगा कि इसे सार्वजनिक किया जा सकता है। वैसे कहानी में शिवेंद्र जी ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली और इस कहानी को उन्होंने सन्नाटे में निपटवाते हुए संपन्न करवा दिया। खैर, मान्यताओं पर आधारित कहानी का जिक्र कर देता हूं..
सुनाया जाता है कि उस युग में राजा जनक के राज में भारी अकाल पड़ा था। प्रजा परेशानी में जी रही थी। अकाल से निपटने के लिए पूजा-पाठ का दौर लगातार चल रहा था। पूजा- पाठ के दौरान ही एक दिन भविष्यवाणी हुई कि “राजा अकेले जहां कभी खेती नहीं हुई है वहां की बंजर भूमि पर हल चलाएंगे तो जनकपुर का भला होगा”। भविष्यवाणी में इस बात का भी जिक्र किया गया कि भगवान शंकर के जिस हल से राजा बंजर जमीन को जोतेंगे वो हल जनकपुर से दक्षिण-पश्चिम दिशा के जंगलों में मिलेगा। खैर भविष्यवाणी के बाद प्रजा का दबाव बढ़ा और सुख- समृद्धि के लिए राजा बंजर जमीन जोतने की तैयारी में जुटे।
जनकपुर बड़ा राज्य हुआ करता था लिहाजा उस जगह की तलाश होने लगी जहां कि जमीन बिल्कुल ही बंजर थी। भविष्यवाणी में ये कहा गया था कि जनकपुर से दक्षिण-पश्चिम दिशा के जंगल में ही हल मिलेगा, लिहाजा उसी इलाके में बंजर भूमि की खोज हो रही थी। खोज खत्म हुई। भविष्यवाणी में जिस हल का जिक्र किया गया था वो हल मिला। बंजर जमीन जोतने के लिए जिस जगह की खोज हुई वो जगह आज के सीतामढ़ी शहर से पांच किलोमीटर पश्चिम में पड़ता है। कथा के मुताबिक इस जमीन के पश्चिम में तब घनघोर जंगल हुआ करता था।
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सीतामढ़ी में जानकी स्थान |
भविष्यवाणी के मुताबिक मिले आदेश को देखते हुए राजा रथ पर सवार होकर अपने राज की भलाई के लिए सिर्फ सारथी को लेकर उस जगह की ओर निकल पड़े। फिर तत्कालीन सीतामढ़ी शहर से पांच किलोमीटर पश्चिम जिसे आज पुनौरा कहा जाता है वहां की बंजर भूमि पर हल चलाना शुरू किया। हल चलाने के दौरान जमीन में गड़ा एक घड़ा हल से टकराया। मान्यताओं के मुताबिक तभी मौसम एकदम बदल गया। घड़ा और हल की टक्कर के बाद घड़ा फूट गया और घड़े से बच्चे के रोने की आवाज आई। राजा ने हल चलाना छोड़ दिया । फूट चुके घड़े से निकली बच्ची को गोद में उठाया और आसमान में बदलते मौसम को देखते हुए तुरंत जनकपुर लौटने का फैसला किया। राजा बच्ची को लेकर रथ की ओर बढ़े, सारथी तैयार बैठा था और राजा के रथ पर सवार होते ही सारथी जनकपुर की तरफ बढ़ चला। लेकिन चार किलोमीटर की ही यात्रा हुई थी कि बदलते मौसम ने अपना असर दिखाना शुरू किया। बारिश की प्रबल संभावना देख राजा जनक ने सारथी को सुरक्षित ठिकाने की तरफ रथ को बढ़ाने का आदेश दिया। राजा जिस इलाके से आए थे वहां की भूमि बंजर थी, पीछे जंगल था और राजा जिस इलाके से बढ़ रहे थे वहां आसपास कोई बस्ती भी नहीं थी। हालांकि कुछ और आगे बढ़ने के बाद जहां राजा का रथ पहुंचा था वहां परवल की खेती हुई थी। जिसे देख राजा ने तुरंत सारथी से कहा कि यहां खेती हुई है मतलब आसपास कोई बस्ती जरूर होगी। काफी खोजने के बाद सारथी को बस्ती तो नहीं मिला लेकिन फसल की देखभाल के लिए एक किसान ने झोपड़ी बना रखी थी, वो जरूर दिखा। तभी तेज बारिश होने लगी। राजा रथ छोड़कर पैदल ही बच्ची को गोद में लिए उस झोपड़ी में जा छिपे। मूसलाधार बारिश जब थमी तब जाकर कहीं राजा घर के लिए प्रस्थान कर पाए। मान्यताओं के मुताबिक तब जनकपुर में अजब खुशी का माहौल था। बारिश होने के बाद लोग खुश थे।
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जनकपुर में जानकी मंदिर |
(उपरोक्त लेख मान्यताओं पर आधारित है)
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पुनौरा में सीता जन्म स्थान |
अब कहानी के कुछ पहलुओं को जानिए- जिस जंगल से राजा को भगवान शंकर का हल मिला अब वहां जंगल नहीं है। उस जगह का नाम आज शिवहर है जो बिहार में पड़ता है। शिव-हल की वजह से इस जगह का नाम शिवहल से होते होते शिवहर हो गया। राजा ने जिस जगह पर जमीन जोते थे वो जगह आज पुनौरा के नाम से जाना जाता है। आज भी वहां पौराणिक स्मृतियां मौजूद हैं।
(मान्यताओं के मुताबिक)।
जिस जगह परवल की खेती हो रही थी और जिस झोपड़ी में राजा जनक सीता को लेकर बारिश से बचने के लिए छिपे थे, उस जगह आज विशाल जानकी मंदिर है जहां देश प्रदेश से लोग रोज दर्शन के लिए पहुंचते हैं। परवल की खेती वाला इलाका खूबसूरत शहर सीतामढ़ी हो चुका है जो बिहार में पड़ता है। और मिथिला की राजधानी जनकपुर आज नेपाल में है।
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नेपाल रेल की दुर्लभ तस्वीरें-जनकपुर में |
वैसे जानकारी के लिए ये भी बता दूं कि तमिल भाषा के रामायण में सीता को रावण की बेटी बताया गया है। मंदोद्री को सीता की मां। ये कहा गया है कि सीता के जन्म के साथ ही उनकी शक्ति और राक्षस कुल के लिए खतरे की जानकारी मिलने पर रावण को बिना बताये मंद्रोदी ने सीता को नदी में बहवाया दिया था। जो बहते-बहते राजा जनक के राज में पहुंची और फिर नदी किनारे पूजा करते वक्त उन्हें मिली।
(स्रोतों पर आधारित) अगली बार जनकपुर की विस्तार से चर्चा
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