Tuesday, August 31, 2010
भोजपुरी तब से लेकर अब तक...
भोजपुरी एक ऐसी भाषा जिसमें मिठास है, रस है और अपनापन भी। दुनिया भर में भोजपुरी बोलने वालों की आबादी अठारह करोड़ से ज्यादा है। बिहार, पूर्वांचल और झारखंड ही नहीं बंगाल, असम, महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली पंजाब और हरियाणा में भी लाखों लोग बोलचाल में अपनी इस मिठास वाली भाषा का प्रयोग करते हैं। दिल्ली, कोलकाता, और मुंबई जैसे महानगरों में भले ही नौकरी पेशा लोग दफ्तर में हिंदी, अंग्रेजी में बात करते हैं.. लेकिन यहां भी जब अपने इलाके के लोगों से मिलते हैं तो अपनी भोजपुरी को ही अहमियत देते हैं। अगर इतिहास की बात करें तो भोजपुरी का अपना इतिहास एक हजार साल से भी पुराना है। कहते हैं कि बिहार के पुराने आरा जिले(बंटकर अब बक्सर अलग हो चुका है) में नया भोजपुर और पुराना भोजपुर नाम से दो गांव है..जिसको बसाया था मध्य काल में। कहते हैं कि मध्य प्रदेश के उज्जैन से आए भोजवंशी परमार राजाओं ने इस जगह को बसाया था। अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर इस जगह का नाम भोजपुर रखा। तब से यहां के आसपास बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी कहलाने लगी। भौगोलिक हिसाब किताब को देखे तो इस जगह के आसपास ही इस भाषा का गढ़ है। बिहार के भोजपुर, बक्सर, सासाराम, कैमूर, छपरा, सीवान, गोपालगंज, मोतिहारी, बेतिया के साथ ही यूपी का बलिया, वाराणसी, गोरखपुर, बस्ती, बाराबंकी, देवरिया, प्रतापगढ़, गाजीपुर के साथ इन इलाकों से सटा नेपाल का इलाका और झारखंड के इलाके की ये अपनी भाषा है। अंग्रेजों के जमाने में इसका विस्तार दुनिया भर में हो गया। मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, त्रिनिदाद तो सिर्फ नक्शे में अलग है बाकी सब कुछ इसी इलाके जैसा। आजादी के आंदोलन में संपूर्ण भोजपुर का अपना अहम योगदान है। मंगल पांडे से लेकर, चंद्रशेखर आजाद और वीरकुंवर सिंह इसी मिट्टी पर जन्मे थे। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, चंद्रशेखर भी भोजपुरी माटी में ही जन्मे थे। हालांकि इस इलाके से इतने बड़े लोगों के जुड़े होने के बावजूद भी भोजपुरी का जो सपना था वो सपना भी बना है। भोजपुरी के प्रचार प्रसार और विकास में सबसे ज्यादा किसी का योगदान है तो वो है कला संस्कृति के क्षेत्र से जुड़े कलाकारों का। भिखारी ठाकुर के बगैर भोजपुरी की बात तो की ही नहीं जा सकती। बॉलीवुड में भोजपुरी को पहली पहचान मिली फिल्म गंगा मैया तोहे पियरी चढैबो से। 1962 में आई इस फिल्म ने भोजपुरी समाज को देश भर में एक साथ तो जोड़ा ही, भोजपुरी की एक अलग पहचान पेश की। इस फिल्म के जो गीत थे वो खुद मो. रफी, लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर ने गये थे। कलाकार भी अच्छे और अनुभवी थे। इसके बाद फिर बिदेसिया, बलम परदेसिया, धरती मैया जैसी फिल्मों ने भोजपुरी को बॉलीवुड में अलग पहचान दिलाई। 60 का दशक भोजपुरी सिनेमा के लिए उदय का दशक था। धीरे धीरे कई कलाकार भोजपुरी गीत संगीत अभिनय के क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाने पहुंचे... । शत्रुघ्न सिन्हा की इस वक्त बॉलीवुड में एंट्री हो चुकी थी। बाद में शेखर सुमन और मनोज वाजपेयी जैसे कलाकारों ने भी अपने अभिनय का लोहा मनवाकर भोजपुरिया झंडा बुलंद किया। लेकिन 70 का दशक भोजपुरी सिनेमा के लिए उतना शानदार नहीं रहा। अस्सी के दशक भोजपुरी इंडस्ट्री के लिए स्वर्णिम समय था। एक से बढ़कर एक गायक कलाकार और एक से बढ़कर एक गीत। अस्सी के दशक में ही बिहार की लता मंगेशकर शारदा सिन्हा ने भोजपुरी का वो रंग जमाया जो कभी भी फीका नहीं पड़ सकता। आज भी बिहार, यूपी में शादी तो बिना शारदा सिन्हा के गीत बजे संपूर्ण हो ही नहीं सकती। बेटी की शादी में हरियर बांस कटइह हो बाबा.. ऊंचे उंच मड़ौवा छबइह हो..., और चाची चुमाबहू मंगल गावहू दिअहू अशीष रघुनंदन के....बगैर तो शादियां अधूरी सी लगती है। यही वो वक्त था जब राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म नदिया के पार रिलीज हुई थी। जिसने भी नदिया के पार देखी है चंदन और गूंजा के चरित्र को वो जिंदगी भर नहीं भूल सकता। शायद ही कोई दर्शक रहा हो जो सिनेमा के दृ्श्यों को देखकर रोया न हो। उस समय के लोग बताते हैं महिलाएं तो घर लौटकर चर्चा करती थी कि कौन कितना रोया। जिस वक्त नदिया के पार रिलीज हुई बॉम्बे में भारी बारिश हो रही थी, बड़े बैनर का बड़ा भोजपुरी प्रयोग था लेकिन बिहार और यूपी ने पहले ही हफ्ते में वो कमाई दे दी कि मुंबई में सिनेमा रिलीज को निर्माता-निर्देशक भूल गये.. हालांकि दो तीन हफ्ते बाद मुंबई में फिल्म रिलीज हो गई और खूब चली। इस फिल्म का एक एक गीत चाहे कौने दिशा में लेके चला रे....हो या फिर गूंजा रे.. चंदन...आज भी सुनने के बाद लोग गुनगुनाने लगते हैं। इसी फिल्म में शारदा सिन्हा ने शादी के मौके पर जब तक फेरे न हो पूरे सात तब तक दुल्हिन नहीं दुल्हा के....गीत गाये हैं.. आज भी शादियों में दबाकर इस गीत को बजाया जाता है। 1982 में रिलीज हुई नदिया के पार में हीरो सचिन थे जबकि हीरोइन थी वाराणसी में जन्मी साधना सिंह। साधना ने बाद में फिल्मों में काम नहीं किया.. लेकिन उनकी एक ही फिल्म दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा गई। साधना सिंह उसी विश्वनाथ प्रसाद शाहबादी की बहू हैं जिन्होंने पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोहे पियरी चढैबो बनाई थी। अस्सी के दशक की शुरुआत भोजपुरी सिनेमा के लिए धमाकेदार हुई थी। उत्तर भारत के घर घर में भोजपुरी का क्रेज बढ रहा था। तभी भोजपुरी गीत संगीत के क्षेत्र में एंट्री मारी कंचन और बवला की जोड़ी ने। फुलौरी बिना चटनी कैसे बनी....पच्चीस साल बाद भी कंचन के गाये गीत आप सुनेंगे तो वही खनक और वही मिठास, कहीं से कोई द्विअर्थी संवाद नहीं। इसके बाद हाथ में मेहंदी मांग सेनुरवा वाला गाना जब मार्केट में आया तो लोग इस आवाज के दीवाने हो गये। गली-गली चौक चौराहे, शादी समारोहों में कंचन के गीत पर लोग नाचते और झूमते। कंचन उत्तर प्रदेश और बिहार की स्टार हो गई थी। उस जमाने में कंचन और बावला की जोड़ी इतनी हिट हो चुकी थी कि रोज दोनों कभी बिहार, कभी यूपी तो कभी मॉरीशस, सूरीनाम और न जाने कहां कहां स्टेज शो करने निकल जाते थे। इस दौर के गीत हम न जइबे ससुर घर में बाबा, आरा हिले छपरा हिला... और साढ़े तीन बजे मुन्नी जरूर मिलना लोगों के लिए पुराने नहीं पड़े हैं। अस्सी के दशक में ही 1989 में आई राजश्री प्रोडक्शन की एक और फिल्म, मैंने प्यार किया। मैंने प्यार किया पर्दे पर बड़ी ब्लॉक बास्टर साबित हुई। इस फिल्म में कहे तोहसे सजना ये तोहरी सजनिया... शारदा सिन्हा ने गाये थे..वैसे तो फिल्म के सब गाने हिट थे लेकिन शारदा सिन्हा के इस भोजपुरी गीत ने तड़का डालने का काम किया। पेशे से प्रोफेसर शारदा सिन्हा इस वक्त भोजपुरी की आवाज बन चुकी थी। भोजपुरी सिनेमा का ये वो सुनहरा दौर था जब शारदा सिन्हा की आवाज में गाए गए लोक आस्था के महापर्व छठ के पारंपरिक गीतों को इस समय लोगों ने हाथों हाथ लेना शुरू कर दिया। नतीजा हुआ कि जो भोजपुरी घर और मुहल्ले की भाषा थी, अब तीज त्योहारों में देश के बड़े शहरों की फिजां में शारदा सिन्हा की आवाज के रूप में तैरने लगी थी। शारदा सिन्हा ने सुपरहिट हिंदी फिल्म हम आपके है कौन के गानों में भी अपनी आवाज दी है। गायक बालेश्वर भी इस दौरान हिट हो गये थे। लेकिन जैसे जैसे राजनीतिक रूप से देश में भोजपुरी मजबूत हो रहा था। सिनेमा, संस्कृति के क्षेत्र में कमजोर पड़ रहा था। वीपी सिंह, चंद्रशेखर, लालू यादव जैसे नेता देश के शिखर पर थे। लेकिन भोजपुरी का मामला गड़बड़ा रहा था। शारदा सिन्हा की आवाज में खनक तो थी लेकिन उन्होंने गाना कम कर दिया था। बॉलीवुड में कोई भोजपुरी फिल्मों पर दांव नहीं लगा रहा था। लेकिन इस दौरान भी अपने आवाज की जादू से लोगों को लुभाने के लिए भोजपुरिया माटी के कलाकार जुटे हुए थे। भोजपुरियां जुबान पर इस वक्त भरत शर्मा की आवाज थी। विरह गीतों को गाकर भरत शर्मा ने भोजपुरी इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाई। लेकिन 1993-1994 से भोजपुरी गीतों के लिए बेहद ही बुरा दौर शुरू हुआ। ये वो वक्त था भोजपुरी की मिठास पर द्विअर्थी संवाद भारी पड़ने लगा था। मुन्ना तिवारी के नथुनिये पर गोली मारे या फिर बथता बथता वाला गीत...हालात ऐसे हो गये कि भोजपुरी गीतों को लोगों ने घर से बाहर निकाल दिया। अब ये गीत सिर्फ चाय और पान की दुकानों पर बजने लगे थे। जो भोजपुरी गीत चंद दिन पहले तक बिहार और यूपी की शान मानी जाती थी. अब उसका मतलब अश्लील और गंदा हो गया था। धीरे धीरे अश्लीलता का ये विष भोजपुरी गानों में फैलता गया और अब होड़ इस बात की होने लगी थी कि कौन कितना अश्लील गा सकता है। खा लू तिंरगा गोरिया हो फाड़ के जा झाड़ के.....1998 में जब ये गीत बिहार की गलियों में बजता था कहीं न कहीं से मारपीट और गाली गलौज की खबरें जरूर अखबार में पढ़ने को मिलती थी। गुड्डा रंगीला के इस गीत पर कई जिलों में प्रशासन ने बजाने पर प्रतिबंध तक लगा दिया। लेकिन इसके बाद भी अश्लीलता के इस काले अध्याय पर अंकुश नहीं लगाया जा सका। हालात ऐसे हो गये कि लोग इस तरह के गीतों के आदि होते चले गए। गुड्डा रंगीला के साथ राधे श्याम रसिया, छोटू छलिया और न जाने कौन कौन से गायक हुए कुछ चर्चा में आए कुछ गुमनामी के अंधेरे में खो गये। लेकिन इस दौरान बिहार में एक गायक ऐसा भी था जो बिहार, यूपी और भोजपुरिया समाज की नब्ज को पकडने की कोशिश में लगा था। बगल वाली जान मारे ली जब बाजार में बजना शुरू हुआ तो फिर कभी मनोज तिवारी मृदुल ने पीछे पलटकर नहीं देखा। भोजपुरी संगीत के क्षेत्र में जो कमी हुई थी उस कमी को मनोज तिवारी ने भरना शुरू कर दिया। बिहार और यूपी ने मनोज तिवारी को हाथों हाथ लिया। एक के बाद एक एलबम हिट होते चले गए। गीत संगीत के क्षेत्र से मनोज तिवारी ने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। दो हजार के दशक में मनोज तिवारी हिट हो गये। फिल्मों में अभिनय करने लगे। भोजपुरी फिल्में फिर से बनने लगी। रवि किशन और मनोज तिवारी जैसे कलाकारों की भोजपुरी फिल्में हिट होने लगी। लेकिन पिछले दो तीन सालों से मनोज तिवारी ने गाना बंद कर दिया। अब उनका नया एलबम भी नहीं आता। इस दौरान भोजपुरी को विस्तार देने के अभियान में कई गायक शामिल हुए लेकिन इनमें से कई अश्लीलता की भेंट चढ़ गए। इस बीच बिहार को एक नई बड़ी आवाज जो मिली वो कल्पना, देवी, मालिनी अवस्थी,पवन सिंह की आवाज। कल्पना वैसे तो असम की रहने वाली हैं लेकिन आवाज की खनक को सुनकर आपको नहीं लगेगा कि उनका भोजपुरी से कोई रिश्ता नहीं रहा होगा। गा तो सब लेती हैं लेकिन शुद्द द्विअर्थी गीत इनकी पहचान है। 2003 में जब देवी की एंट्री हुई तो लोग उन्हें दूसरी शारदा सिन्हा तक कहने लगे। विशुद्द पारंपरिक गीत गाने वाली देवी अपने प्रशंसकों को ज्यादा दिन तक संभाल नहीं सकी। हालांकि अब भी कभी कभी गा लेती हैं। मालिन अवस्थी टीवी की गायिका है। एलबम वैसे मैंने तो नहीं देखा और ना सुना है लेकिन अच्छा गा लेती हैं। पवन सिंह के गीत सिंगल अर्थी कभी नहीं होते... लेकिन फिलहाल कोई ऑप्शन नहीं है तो पवन सिंह का बाजार गर्म है। गायकी के साथ अभिनय भी कर रहे हैं। लॉलीपॉप लागेलू...इनका बड़ा हिट रहा। वैसे दिनशे लाल यादव निरहुआ, छैला बिहारी, तृप्ति शाक्या जैसे कलाकार भी है जो अपनी जगह पर बने हुए है। रिंकू घोस, रानी चटर्जी, पाखी, सरीखे गैर भोजपुरिया हीरोइनों की बदौलत भोजपुरी सिनेमा का बाजार हिट है तो इसकी वजह भोजपुरी की मिठास ही है। बंगाली लड़की रिंकू घोस और रानी भोजपुरी निर्माता निर्देशकों की पहली पसंद है। वैसे अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, अजय देवगन, राजबब्बर, नगमा, भाग्यश्री जैसे बड़े कलाकार भी इन दिनों बॉलीवुड के भोजपुरी संस्करण में शामिल है। लेकिन साल दो साल से भोजपुरी इंडस्ट्री में एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है। छोटे छोटे बच्चे जिनके दूध के दांत भी नहीं टूटे वो गीत गा रहे हैं.... बात तो अच्छी है लेकिन उनसे अच्छे गीत गवाए नहीं जा रहे। अब अरविंद अकेला उर्फ कलुआ को ही ले लीजिए, है तो अभी हॉट प्रॉपर्टी लेकिन उसके गीतों को आप घर में नहीं सुन सकते। फिलहाल इन उतार चढ़ावों के बीच बॉलीवुड में भोजपुरी अपनी जगह बनाने में कामयाब है। और इन कलाकारों की कोशिशों से भोजपुरी का प्रचार और प्रसार भी हो दुनिया भर में हो रहा है।
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2 comments:
Dear Manoj Ji,
namashkar,
Bahut mehanat kiye hai.
sadar bahut badiya laga.
aisahi likhate rahiya bhagwan se
duaa hai ki apki kalam ko aur takat de.
Thank you
Dipu Singh, Buxer,Bihar
धन्यवाद सर.
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