Sunday, September 12, 2010

विकास या जाति, कौन पड़ेगा भारी PART- 2


1931 की जनगणना के मुताबिक बिहार में 4.7 प्रतिशत ब्राह्मण, 4.2 प्रतिशत राजपूत एवं 2.9 प्रतिशत भूमिहार है। अगड़ों में 1.2 प्रतिशत ही कायस्थ है। इस तरह राज्य में चारों अगड़ी जातियों की संख्या 13 प्रतिशत के आसपास है। अब सवाल उठता है कि लालू के जंगल राज वाले शासन काल में तो भूमिहार वोटर लालू के साथ नहीं थे उस वक्त भी ये वोट बैंक लालू के खिलाफ था फिर लालू को क्यों नहीं हरा सके। इसके लिए समझना पड़ेगा बिहार का सियासी समीकरण। लालू राज के खात्मे की कहानी भले ही नीतीश रूपी कलम से सवर्ण वोटरों ने लिखी लेकिन इसके लिए पिछड़ों को स्याही बनाया गया। मतलब पिछड़ों का एक बड़ा वोट बैंक( कुर्मी, कोयरी के अलावा) जिसमें यादव का भी एक हिस्सा शामिल है उसने लालू के सिंहासन को हिलाया, और सालों से खार खाए सवर्ण वोटरों ने इसे धक्का दिया। जंमाने बाद दो दर्जन से ज्यादा भूमिहार विधायक बने, इतने ही राजपूत भी। लेकिन इस साल नया खेल है। नीतीश ने पिछड़ा, दलित वाला आधार भले ही मजबूत किया है लेकिन उस आधार को बूथ तक पहुंचाने वाला समाज इस बार अब तक खुल के साथ नहीं आया है। मतलब बात यहां भूमिहार, राजपूतों की कर रहे है। बंटाईदारी बिल का बवंडर, ललन सिंह की रुखसती, लालू के जंगलराज के सिपाहियों को गले लगाना, सवर्ण जाति के बाहुबलियों को जेल में डलवाना, ये वो मुद्दे हैं जिनकी वजह से नीतीश की डगर को आसान नहीं माना जा रहा। बंटाईदारी बिल को तो गलत बताने में जुट गये हैं नीतीश कुमार। ललन सिंह की भरपाई के लिए अरुण कुमार सिंह को वापस लाए, विजय चौधरी को अध्यक्ष बनाया, जगदीश शर्मा को फिर से गले लगाया, बाहुबलियों के खिलाफ शांत हो गये। लेकिन तस्लीमु्ददीन, रमई राम, श्याम रजक, विजय कृष्ण, रामदेव महतो, अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती जैसे जंगल राज के सिपाहियों को अपने साथ लाकर सुशासन के नाम पर बट्टा लगाने का काम किया है उसका जवाब अभी उनके पास कुछ नहीं है। राजपूत समाज पिछली बार खुलकर उनके साथ खड़ा था। राजपूतों के दिग्गज दिग्विजय सिंह, प्रभुनाथ सिंह, आनंद मोहन सपरिवार नीतीश के लिए ललकार रहे थे। आज की तारीख में साथ कोई नहीं है। बांका वाले दिग्विजय सिंह अब दुनिया में नहीं रहे। प्रभुनाथ सिंह नाराज होकर लालू के साथ हो लिए, जेल में बंद आनंद मोहन ने पत्नी लवली को कांग्रेस में भेज दिया। सवाल ये कि भूमिहार अग्रेसिव होकर साथ दे भी दे तो राजपूत बहुल इलाकों में क्या होगा। वैसे भी लालू के पास लोकसभा में चार सांसद हैं खुद लालू और बाकी तीन राजपूत जाति से। नीतीश के पास जो लोग हैं औरंगाबाद वाले सुशील सिंह, आरा में मीना सिंह तो ये लोग सांसद हैं लेकिन ज्यादा आधार वाले नेता नहीं है। राजपूत वोट लेने में नीतीश को परेशानी होगी। कहीं ललन सिंह कांग्रेस में चले गए चुनाव से पहले तो भूमिहारों का बेगूसराय, लखीसराय, शेखपुरा, नवादा, पटना का समीकरण बदल सकता है। इंतजार कीजिए धीरे धीरे तस्वीर सब साफ हो जाएगी।

1 comment:

Unknown said...

Nitish Kumar is the good rular but not a good polotician.

Chandeshwar Rai
Bettiah