Monday, September 13, 2010
विकास या जाति? कौन पड़ेगा भारी! PART- 1
बिहार में चुनावी बिगुल बजे एक हफ्ता से ज्यादा का वक्त बीच चुका है। टिकट का गुणाभाग शुरू है। सवाल ये कि क्या इस बार का चुनाव बिहार में बिना जातीय आधार पर लोग वोट करेंगे। क्या जमाने बाद बिहार जातीय बंधनों से मुक्त होकर सिर्फ विकास बनाक जंगलराज के नाम पर वोट करेगा। कुछ लोग भले ही माहौल बनाने की कोशिश में जुटे हो. लेकिन मेरा मानना है कि बिहार में बिना जातीय आधार के चुनाव नहीं कराए जा सकते। अगर बिहार में राज कर रहे नीतीश कुमार को विकास पर इतना ही भरोसा होता तो ललन सिंह को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद विजय चौधरी को बक्से से निकालकर नहीं लाते। ललन सिंह के विद्रोह के बाद नीतीश कुमार के पास भूमिहार का कोई कद वाला नेता नहीं रह गया था। ललन सिंह की कमेटी में चूंकी विजय चौधरी अहम ओहदे पर थे लिहाजा उनके किस्मत से उनको ये गद्दी नसीब हो गई। संतुष्टि नहीं मिली थी जिस जगदीश शर्मा ने नीतीश के खिलाफ विद्रोह करके अपनी पत्नी को उपचुनाव में निर्दलीय विधायक बनवाया। उन्हें पार्टी से निलंबित करने के बाद तुरंत वापस नहीं बुलाते। लेकिन भरपाई संपूर्ण नहीं हो पाई लिहाजा जहानाबाद वाले अरुण कुमार सिंह को भी वापस बुला लिया। ललन सिंह वाला ड्रामा इस कदर फैल गया कि लगा कि सरकार से पूरा समाज ही नाराज है। इसिलिए नीतीश कुमार ने फूंक फूंक कर कदम रखना शुरू किया। और किसी भूमिहार नेता को नाराज होने का कोई मौका नहीं दिया। मुन्ना शुक्ला, अनंत सिंह, सुनील पांडे सब अपना माहौल बनाने में जुट गए लेकिन नीतीश ने कुछ नहीं कहा। अब सवाल ये कि क्या बिहार का भूमिहार इस बार पिछली बार की तरह ही नीतीश की फिर से ताजपोशी के लिए ताकत लगाएगा। या फिर भूमिहारों का वोट प्रसाद की तरह कांग्रेस और एनडीए में बंटेगा? कुछ राजनीतिक पंडित इस आकलन में होंगे कि भूमिहार का वोट आरजेडी गठबंधन को नहीं मिलेगा तो मुझे लगता है कि ये उनका भ्रम है। अब तक ये होता आया है कि समाज के नाम पर समाज एकजुट नहीं होता रहा। लेकिन नीतीश राज के बाद जो हालात बदले हैं.. उसमें समाज को एक बार फिर से अपनी ताकत का एहसास होने लगा है। लालू राज में समाज ने दिशा बदल दी थी। लोगों का झुकाव गलत कामों की ओर ज्यादा हो गया था। बदली परिस्थितियों में समाज ने एक बार फिर गेयर चेंज किया है। राजनीति में फुल एंट्री की झांकी छोटे छोटे चुनावों में दिखा है। लिहाजा आरजेडी का नहीं पता लेकिन एलजेपी के खाते की 75 सीटों में से जिस पर भी समाज का उम्मीदवार होगा वहां समाज कुछ भी कर सकता है इससे इनकार नहीं किया जा सकता। सूरजभान सिंह यहां पासवान के सारथी बने हैं। रही कांग्रेस की बात तो बिहार में आज की तारीख में कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं है जिसका भूमिहार वोट पर प्रभाव है। रामजतन सिन्हा, अनिल शर्मा अब बीते जमाने की कहानी है। कोई नया बड़ा चेहरा एंट्री मारता है तो फिर समय के साथ उस क्षेत्र की कहानी बदल सकती है। वैसे भूमिहारों को अब भी सबसे ज्यादा नीतीश पर ही भरोसा है। नीतीश भी अपने इस तथाकथित दबंग वोट बैंक को आसानी से छिटकने नहीं देना चाहते। पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश सिंह को मनाने की कोशिश में लगे लालू भी नहीं चाहते कि जो एक्सट्रा फायदा है उसको दूर किया जाए। उत्तर बिहार में भूमिहार नेताओं के आधार की बात करें, तो मुजफ्फरपुर, वैशाली की बात करें तो। मुजफ्फरपुर में सुरेश शर्मा पेशे से व्यापारी है लेकिन बीजेपी के नेता भी है। वोट पार्टी के बैनर का है अपना कुछ है ऐसा नहीं लगता। जेडीयू में मुन्ना शुक्ला चूंकि बाहुबली हैं इसलिए इनका मानदान होता है। लेकिन इनके चलते घाटा भी है। अजीत कुमार कांटी से विधायक हैं, विधानसभा में अच्छी पकड़ का फायदा दो बार मिल चुका है। हरेंद्र कुमार के अभी नीतीश से संबंध बेहतर नहीं हैं। कांग्रेस में पांडे और शाही परिवार के लोग हैं लेकिन सिर्फ चुनावों के समय ही इन लोगों का नाम सामने आता है। विनोद चौधरी, समीर कुमार टाइप के लोग भी नेता हैं यहां जिनकी हर पार्टी में ऊपर तक पहचान है, कब किसी पार्टी में है ये चुनाव के वक्त मालूम पड़ता है। सीतामढ़ी में विमल शुक्ला कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। ढाका वाले बीजेपी विधायक अवनीश कुमार, मधुबन वाले आरजेडी विधायक बबलू देव का भी प्रभाव है। जेडीयू विधायक के पति सैदपुर वाले राजेश चौधरी नए चेहरे हैं। कुछ और नए नाम हैं जो उभरने की कोशिश में हैं। मोतिहारी में अवनीश कुमार, बबलू देव, राय सुंदर देव शर्मा(एलजेपी),गप्पू राय(आरजेडी) जैसे नाम हैं जिनका अपने अपने क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। बेतिया में बीजेपी के चंद्रमोहन राय,कांग्रेस के रणविजय शाही जैसे लोगों का प्रभाव है। छपरा, सीवान में धूमल सिंह(जेडीयू),सत्यदेव सिंह(बीजेपी),सुरेंद्र शर्मा,जैसे लोग प्रभावशाली और दबंग कहे जाते हैं। मतलब हर इलाके में हर नेता का हिसाब किताब है। कोई मास लीडर नहीं जिसका वोट बैंक पर प्रभाव हो। पटना में कोई अनंत सिंह को नेता मानता है. कोई सूरजभान को कोई दीलिप सिंह को श्याम सुंदर सिंह धीरज को,कही संजय सिंह नेता हैं,तो कहीं गणेश शंकर विद्य़ार्थी,बेगूसराय में राजो सिंह के बेटा बहू नेता हैं कांग्रेस के,तो बीजेपी वाले भोला सिंह को भी मानते हैं लोग नेता। कृष्णा शाही, रामजीवन सिंह और सीपीएम सीपीआई वाले समाज के लोग अब पुराने हो चुके हैं। नालंदा में गया सिंह, कुमार पुष्पंजय की नेतागीरी है। जहानाबाद में अरुण कुमार, जगदीश शर्मा, अखिलेश सिंह ,किंग महेंद्र नेता हैं। नवादा में आदित्य सिंह, अनिल सिंह, अखिलेश सिंह पत्नी सहित नेता हैं।(रामाश्रय सिंह अब मामला खत्म है )तो आरा बक्सर में सुखदा पांडे, सुनील पांडे नेता हैं। कटिहार,खगड़िया में निखिल चौधरी और चौधरी बिरादरी नेता हैं। सीपी ठाकुर,ललन सिंह टाइप के लोग आज नेता भले ही बड़े हैं लेकिन प्रभाव को फिलहाल चुनाव तक गोली मारिए। कुल मिलाकर भूमिहारों का मास नेता कोई नहीं है। भूमिहारों के नाम पर इनकी नेतागीरी है। कुछ पुराने नेता भी है जो अब बिल्कुल ही पुराने पड़ चुके हैं।
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2 comments:
I disagree with Nitish Kumar.
As Nitish Kumar is my ideal leader, hence I would like to suggest him to please do not be over confident. The Cast wise voting is the FACT of today’s politics, even in developed state.
I know the fact of todays Bihari socity. The common Bihari will favor the CAST candidate only.
Chandeshwar Rai
Bettiah
Bihar
yeah..
i agree wid mr. chandeshwar that, the common Bihari will favor the CAST vise voting only.
They will vote only that person who belongs to their cast or society.No matter to them that, state is developing or not.The thing only matter is that, whether their candidate is winning or not.They are still narrow minded (I m not talking abt all bihari's but abt 50% people of Bihar have the above stated mentality.)
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