Thursday, September 10, 2015

बिहार चुनाव के बारे में जानिए

बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं ।
2010 के चुनाव में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को 206 सीटें मिली थी
2010 में लालू और पासवान की पार्टी का गठबंधन था
2010 के चुनाव में लालू को 22 और पासवान को 3 सीटें मिली
2010 के नतीजे- जेडीयू- 115, बीजेपी-91, आरजेडी- 22, एलजेपी-3, कांग्रेस-4,  निर्दलीय-6 अन्य- 2
 सबसे ज्यादा पटना जिले में 14 सीटें हैं
सबसे कम शिवहर जिले में विधानसभा की सिर्फ 1 सीट है
राजनीतिक रूप से बंटवारा-
उत्तर बिहार-(तिरहुत, सारण,मिथिला मंडल) में 13 जिले- विधानसभा की सीटें- 110
कोसी सीमांचल- (कोसी, पूर्णिया मंडल) में 7 जिले, विधानसभा की सीटें 37
भोजपुर-मगध (पटना, गया मंडल) में 11 जिले- विधानसभा की सीटें- 69
अंगिका (भागलपुर, मुंगेर मंडल) में 7 जिले, विधानसभा की सीटें- 27
 चारों जोन में 2010 के नतीजे
उत्तर बिहार (110)- जेडीयू- 49, बीजेपी- 47, आरजेडी- 10, कांग्रेस- 0, अन्य- 4
कोसी सीमांचल (37)- जेडीयू 14, बीजेपी- 14, आरजेडी- 3, एलजेपी- 2, कांग्रेस-3, अन्य- 1
भोजपुर-मगध(69)- जेडीयू- 35, बीजेपी-24, आरजेडी- 7, एलजेपी-1, अन्य- 2
अंगिका (27)- जेडीयू-17, बीजेपी- 6, आरजे़डी- 2, कांग्रेस-1, अन्य- 1

2010 विधानसभा चुनाव में किसको कितने वोट
जेडीयू- 22.58 %
बीजेपी- 16.49 %
 आरजेडी-18.84%
एलजेपी- 6.74%
 कांग्रेस 8.37%

2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे (कुल सीटें-40)
NDA-बीजेपी-22
एलजेपी-6
आरएलएसपी- 3
UPA- आरजेडी-4
कांग्रेस-2
एनसीपी-1
OTHERS- जेडीयू-2

 2014 लोकसभा चुनाव में किसे कितने वोट
 NDA-बीजेपी 29.40%
एलजेपी 6.40 %
आरएलएसपी 3 %
UPA- आरजेडी- 20.10%
कांग्रेस-8.40%
एनसीपी- 1.20%
OTHERS- जेडीयू- 15.80%
  
अभी के गठबंधन के पास 2010 के हिसाब से विधानसभा सीटें
एनडीए- 94
बीजेपी- 91
एलजेपी-3
आरएलएसपी-0
हम- 0
महागठबंधन- 141
जेडीयू- 115
आरजेडी- 22
कांग्रेस-4

बिहार में मुख्य पार्टियां-
एनडीए- बीजेपी(कमल) , एलजेपी(बंगला), आरएलएसपी(पंखा), हम(टेलीफोन)
महागठबंधन- जेडीयू(तीर),  आरजेडी(लालटेन), कांग्रेस(पंजा)
लेफ्ट-
एनसीपी- घड़ी
समाजवादी पार्टी- साइकिल 
जन अधिकार पार्टी पप्पू यादव-
गरीब जनता दल सेक्यूलर- साधु यादव- ऑटो निशान
समरस समाज पार्टी- नागमणि- टेलीविजन

सिर्फ बिहार के मुख्य नेता-
जेडीयू- नीतीश कुमार, विजय चौधरी, वशिष्ठ नारायण सिंह, श्याम रजक
आरजेडी- लालू यादव, राबडी देवी, रघुवंश सिंह, अब्दुल बारी सिद्दीकी, रामचंद्र पूर्वे
कांग्रेस-अशोक चौधरी,सदानंद सिंह,शकील अहमद,मीरा कुमार, रंजीत रंजन, असरारुल हक
 बीजेपी- सुशील मोदी, नंद किशोर यादव, राजीव रूडी. गिरिराज सिंह,शाहनवाज, राधामोहन
एलजेपी- रामविलास, चिराग, रामचंद्र, पशुपति, सूरजभान, रामा सिंह, महबूब अली कैसर
आरएलएसपी- उपेंद्र कुशवाहा, अरुण कुमार, रामकुमार शर्मा
हम- जीतन राम मांझी, शकुनी चौधरी, वृषण पटेल, नीतीश मिश्रा, महाचंद्र सिंह, लवली
 समाजवादी पार्टी- रामचंद्र सिंह कुशवाहा-प्रदेश अध्यक्ष
एनसीपी- तारिक अनवर, सांसद

जन अधिकार पार्टी- पप्पू यादव सांसद

दिवाली के पटाखे कौन फोड़ेगा ?

बिहार में चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है। पांच चरणों में चुनाव और 8 नवंबर को नतीजे। यानी दीवाली से पहले साफ हो जाएगा कि बिहार में जीत के पटाखे कौन फोड़ेगा ?  बिहार का ये चुनाव लालू-नीतीश के लिए तो करो या मरो का चुनाव है। नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेताओं के लिए भी सीधे सीधे बिहार का ये चुनाव प्रतिष्ठा का चुनाव बन चुका है। लोकसभा चुनाव में जीत के बाहर मोदी लहर की सवारी कर बीजेपी ने महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात में सरकार बना ली। जम्मू कश्मीर में भी मिली जुली सरकार बनाने में पार्टी कामयाब रही। लेकिन दिल्ली में बीजेपी को बुरी हार का सामना करना पड़ा। बिहार का चुनाव इन चुनावों से अलग है। बिहार का चुनावी पूरी तरह जाति के समीकरण पर लड़ा जाने वाला चुनाव है। विकास का तड़का लगाकर जातियों की तोड़ने की रणनीति बीजेपी कर तो रही है लेकिन उससे कितना फायदा मिलेगा ये चुनाव में ही पता चलेगा। अभी भले ही दुनिया की नजरों में जातीय बदनामी से बचने के लिए नेता विकास विकास की बात कर रहे हैं लेकिन चुनावी हकीकत में विकास पीछे छूट जाएगा और वोट जाति के नाम पर ही पड़ेंगे। असल में बिहार अब भी जातीय राजनीति के दलदल से बाहर नहीं आ पाया है। इसलिए तमाम पार्टियां जाति के गणित को ही दुरुस्त करने में जुटे हैं। विकास की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मुजफ्फरपुर जाते हैं तो यदुवंशी की बात करते हैं। महादलित के अपमान का जिक्र करते हैं। लालू हैं कि जाति आधारित गिनती से बाहर आ ही नहीं रहे। विकास पुरुष की छवि वाले नीतीश कुमार की पार्टी के नेता भी जाति को बिहार की राजनीति की जरूरत मानते हैं। टिकटों का बंटवारा भी इसी आधार पर होने वाला है। इस बंटवारे में जो सामाजिक संतुलन और विद्रोह की आग को शांत कर लेगा वो भारी पड़ेगा। बिहार में कांग्रेस की भूमिका स्टेपनी वाली है। असली नेता लालू-नीतीश हैं। अगर ये दोनों  चुनाव हारते हैं तो फिर इनकी आगे की राजनीति लगभग खत्म हो जाएगी। यही वजह है कि लालू हर दांव लगाकर बेटे-बेटियों को विधायक बनाने की जुगत में हैं। जहां तक नीतीश की बात है तो उनका परिवार राजनीति में नहीं है। ऐसे में हार के बाद पांच साल तक दिल्ली और पटना में सत्ता से दूर रहना इन क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं के लिए आसान नहीं रहेगा। लालू खुद चुनाव नहीं लड़ रहे ये उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है । नीतीश लालू को साथ लेकर चुनावी अखाड़े में उतरे हैं ये नीतीश की सबसे बड़ी कमजोरी है। इन कमजोरियों को साथ लेकर दोनों सत्ता के संघर्ष में उतरे हैं। हां नीतीश के पास विकास वाली छवि की पूंजी है तो लालू के पास वोट बैंक की। लेकिन लालू की छवि का घाटा भी नीतीश की छवि को उठाना पड़ रहा है। बीजेपी के पास सबसे बड़ा माइनस प्वाइंट ये है कि इनके पास नेताओं की भरमार है। लेकिन मुख्यमंत्री के लायक घोषणा करने वाला कोई चेहरा नहीं है। बिहार ये जरूर जानना चाहेगा कि अगर सरकार बनेगी तो उनका मुख्यमंत्री कौन होगा ? विरोधी पार्टी के नेता यही पूछ रहे हैं कि नीतीश कुमार के सामने कौन होगा ?  दूसरी बात ये कि खास खास समुदाय का एक तरफा वोट अगर बीजेपी को मिलने की उम्मीद है तो उसके लिए नरेंद्र मोदी या बीजेपी को श्रेय नहीं जाता। उसका श्रेय जाता है लालू यादव को। हां नरेंद्र मोदी अब भी बिहार में लोकप्रिय हैं। जिसका फायदा बीजेपी को मिलने की उम्मीद है। अगर नुकसान होता है भी है इसका कारण पासवान, कुशवाहा और मांझी जैसे सहयोगी हो सकते हैं। चुनाव जीतने के लिए दोनों गठबंधनों ने अपने अपने तमाम घोड़े खोल दिये । प्रधानमंत्री ने सवा लाख करोड़ के पैकेज का एलान किया। वित्त राज्य मंत्री बिहार जाकर बोल आए कि सरकार बनने पर और इतना देंगे। चुनाव से पहले छे फीसदी डीए का एलान केंद्रीय कर्मचारियों के लिए हुआ। बाढ़ पावर प्लांट के लिए भी स्पेशल एलान आज ही हुआ है। नीतीश कुमार ने भी अंतिम समय में सारी ताकत लगा दी। नौकरी में महिलाओं को 35 फीसद आरक्षण देने से लेकर पुलिस वालों को 13 महीने की सैलरी देने तक का एलान कर दिया। जीतन राम मांझी के सीएम पद से हटने के बाद उनके लिए ज्यादतर फैसले नीतीश ने रद्द कर दिये थे। लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्हीं फैसलों को लागू करने का फैसला किया। सवा लाख करोड़ के पैकेज के जवाब में दो लाख सत्तर हजार के विकास का प्लान नीतीश ने पेश किया है। पिछले दिनों ही एसटी कोर्ट में निषाद आरक्षण की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर लाठी से प्रहार किया गया और लगा कि मामला अलग रंग लेगा तो तुरंत आरक्षण देने का प्रस्ताव पास कर दिया। वैसे नीतीश के लिए रोजगार सेवक, सांख्यिकी सेवक, नियोजित शिक्षक अब भी परेशानी की वजह हैं। एक दिन पहले ही राजभवन के पास साख्यिकी सेवक ने खुदकुशी की कोशिश की। आज जेडीयू दफ्तर के बाहर रोजगार सेवक ने इसी तरह की कोशिश की है। मतलब ऐसा नहीं है कि राजकाज में हर कोई खुश ही है। बिहार का चुनाव आज पूरी तरह व्यक्ति केंद्रित हो गया है।  पार्टियां पीछे हैं, सामने नीतीश, लालू और मोदी का चेहरा ही है। जहां तक सियासी समीकरण का सवाल है तो अभी तक बुरी खबर लालू-नीतीश के लिए ही आ रही है। पप्पू यादव लालू से बाहर होकर यादवों में सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं । तारिक अनवर मुस्लिम कार्ड खेलकर महागठबंधन से बाहर चले गए। तस्लीमुद्दीन जैसे नेता खुश नहीं दिख रहे। टिकट बंटवारे को लेकर कलह है। नीतीश के दर्जन भर  विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं। इन संकेतों को समझें तो फिर दीवाली के पटाखे फोड़ने से नीतीश और लालू अभी की परिस्थिति में तो दूर ही दिख रहे हैं। आगे इनके विरोधियों का हाल क्या होगा उस पर नजर रहेगी।  

बिहार चुनाव- किस दौर के चुनाव में कौन है भारी ?

बिहार में चुनावी बिगुल बज गया है । चुनाव आयोग ने 5 चरणों में चुनाव कराने का एलान किया है । नतीजे 8 नवंबर को यानी दीवाली से पहले आ जाएंगे । चुनाव की तारीखों के एलान के बाद आज हम आपको आंकड़ों के लिहाज बताने जा रहे हैं कि किस दौर में कौन सी पार्टी भारी है और कौन सी पार्टी कमजोर ।

12 अक्टूबर को पहले दौर का चुनाव
पहले चरण में भागलपुर मंडल के दोनों जिले भागलपुर और बांका, मुंगेर प्रमंडल के सभी पांचों जिले मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, खगड़िया, जमुई के साथ मिथिला मंडल के समस्तीपुर, बेगूसराय और मगध मंडल के नवादा जिलों में वोट डाले जाएंगे । यानी कुल 10 जिलों की 49 सीटों पर वोटिंग होगी । 2010 में इन 49 सीटों में से जेडीयू के पास 29, बीजेपी के पास 13, आरजेडी के पास 4, कांग्रेस के पास 1 और अन्य के पास 2 सीटें थी ।

16 अक्टूबर को दूसरे दौर का चुनाव
चुनावों का सबसे छोटा चरण है । मगध प्रमंडल के गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, अरवल के अलावा पटना प्रमंडल के कैमूर और रोहतास में वोट डाले जाएंगे । इन 6 जिलों में विधानसभा की कुल 32 सीटें हैं । 2010 के चुनाव में जेडीयू के पास 18 बीजेपी के पास 9, आरजेडी के पास 2, एलजेपी के पास 1 और अन्य को 2 सीटें मिली थी ।

28 अक्टूबर को तीसरे दौर का चुनाव
राजधानी पटना सहित 6 जिलों में इस दौर में वोट डाले जाएंगे । पटना प्रमंडल के पटना, भोजपुर, बक्सर, नालंदा जिले के अलावा तिरहुत प्रमंडल के वैशाली और सारण प्रमंडल के छपरा जिले में वोट डाले जाएंगे । इस दौर में कुल 50 सीटों पर वोटिंग होगी । 2010 के नतीजों को देखें तो बीजेपी और जेडीयू का अंतर काफी कम है । जेडीयू को उस वक्त 23 सीटें मिली थी । बीजेपी के पास 20 और आरजेडी के खाते में 7 सीटें गई थी ।

1 नवंबर को पांचवें दौर का चुनाव
तिरहुत प्रमंडल के 5 जिलों के साथ सारण के दो जिलों में  55 सीटों पर वोटिंग होगी । मुजफ्फऱपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण के साथ सारण प्रमंडल के सीवान और गोपालगंज जिले में 1 नवंबर को वोट डाले जाएंगे । 2010 के चुनाव में यहां बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी थी । जेडीयू को तब 25 और बीजेपी को 26 सीटों पर जीत मिली थी । तब आरजेडी को एक और अन्य को तीन सीटें मिली थी ।

5 नवंबर को पांचवें दौर का चुनाव
सीमांचल के साथ ही मिथलांचल के भी दरभंगा और मधुबनी जिलों की 57 सीटों पर इस दौर में वोटिंग होगी । कोसी प्रमंडल के 3 जिले मधेपुरा, सहरसा, सुपौल के अलावा पूर्णिया के 4 जिले पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज में तो वोटिंग होगी ही । मिथिला मंडल के दरभंगा और मधुबनी जिलों में भी पांचवें दौर में वोट डाले जाएंगे ।
2010 में इन 9 जिलों में जेडीयू को 20 और बीजेपी को 23 सीटें मिली थी । आरजेडी को 8, एलजेपी को 2, कांग्रेस को 3 और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी ।
आखिरी दौर का चुनाव काफी अहम माना जा रहा है । बीजेपी अभी संख्या के हिसाब से भले ही सब पर भारी है । लेकिन असल प्रभाव इस इलाके में लालू-नीतीश का ही है । सीमांचल मुस्लिम और यादव बहुल इलाका है। लेकिन इस बार के चुनाव में पप्पू यादव तारिक अनवर, तस्लीमुद्दीन महागठबंधन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश में जुटे हैं ।
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