बिहार में नीतीश और बीजेपी का
साथ 17 साल पुराना है। 1996 में जब लोकसभा का चुनाव हो रहा था चुनाव से ठीक पहले
जॉर्ज और नीतीश ने बीजेपी से हाथ मिलाया था। जॉर्ज और नीतीश उस वक्त समता
पार्टी में हुआ करते थे। तब शरद यादव इन लोगों के साथ नहीं थे। 1994 में जॉर्ज और
नीतीश ने जनता दल का साथ छोड़कर समता पार्टी बनाई थी। 1996 के चुनाव में बीजेपी और
जेडीयू ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा। 1996 के चुनाव में 54 सीटों में से बीजेपी को 18
और जेडीयू को 6 सीटें मिली थी। केंद्र में देवेगौड़ा के नेतृत्व में सरकार बनी। और
फिर 1998 तक संयुक्त मोर्चे की सरकार रही। बीच में देवेगौड़ा के बाद गुजराल
प्रधानमंत्री भी बने। इसी बीच 1997 में अध्यक्ष पद को लेकर विवाद में जनता दल टूट
गया और लालू के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल बना।
1998 में फिर
से बिहार में चुनाव हुआ। 54 में से
समता पार्टी को 10 और बीजेपी को 20 सीटें मिली।
1999 के चुनाव से पहले जनता दल
टूटा और फिर शरद यादव के नेतृत्व वाले जनता दल यू, समता पार्टी का आपस में विलय हो
गया। पार्टी का नाम जनता दल यू हुआ और जॉर्ज अध्यक्ष । 1999 के
चुनाव में फिर से बीजेपी के साथ मिलकर जेडीयू ने चुनाव लड़ा। 1999 के
चुनाव में एनडीए को बिहार में 54 में से 41 सीटों पर जीत मिली थी। तब झारखंड साथ
था। अकेले बिहार की 40 में से 30 सीटों पर दोनों दलों को जीत मिली थी। जेडीयू को
18 और बीजेपी को 12 सीटें ।
लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद
अध्यक्ष पद को लेकर हुए विवाद में जनता दल यू और समता पार्टी को फिर से अलग कर
दिया। समता पार्टी के 12 और जेडीयू के पास 6 सांसद बचे। हालांकि 2000 के विधानसभा चुनाव
में बीजेपी, जेडीयू, समता पार्टी और बिहार पीपुल्स पार्टी ने साथ मिलकर चुनाव
लड़ा। नतीजों के बाद नीतीश सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने। इसी साल झारखंड
बिहार से अलग हुआ और जेडीयू-बीजेपी के बीच पहला विवाद हुआ बिहार में नेता
प्रतिपक्ष की कुर्सी को लेकर। तब तक सुशील मोदी बिहार में विपक्ष के नेता थे लेकिन
झारखंड बंटने के बाद जब बीजेपी की सीटें घटी और फिर नंबर के हिसाब से समता पार्टी
बड़ी पार्टी हो गई। और उपेंद्र कुशवाहा विपक्ष के नेता बने।
लेकिन इस चुनाव के बाद जनता दल
यू में अध्यक्ष पद को लेकर विवाद हुआ और पासवान ने 2000 में 4 सांसदों के साथ अपनी
नई पार्टी बना ली । (पासवान रामकृष्ण हेगड़े को
अध्यक्ष बनाने के पक्ष में थे, बिहार चुनाव में नीतीश को सीएम प्रोजेक्ट करने से
भी नाराज थे ) नई पार्टी का नाम रखा लोक जनशक्ति पार्टी। नई पार्टी के
साथ करीब 1 साल तक पासवान वाजपेयी सरकार में संचार से कोयला मंत्री तक रहे। 27
अप्रैल 2002 को रामविलास पासवान ने वाजपेयी सरकार से इस्तीफा दे दिया। पासवान ने
इस्तीफे का आधार गुजरात दंगे को बनाया लेकिन हकीकत ये है कि पासवान इस बात से
नाराज थे कि बीजेपी यूपी में मायावती से हाथ मिलाने जा रही थी और पासवान का
मंत्रालय भी बदल दिया गया था । दलित राजनीति में हाशिये पर जाने का डर की वजह से
पासवान ने वाजपेयी सरकार का साथ छोड़ दिया।
लेकिन जनता में ये मैसेज गया कि गुजरात दंगों की वजह से उन्होंने सरकार का साथ
छोड़ा है। हालांकि 2002 में गुजरात दंगों के वक्त वाजपेयी सरकार में नीतीश रेल
मंत्री बने रहे
अक्टूबर 2003 में फिर से जनता दल
यू और समता पार्टी का विलय हो गया। पार्टी का नाम जनता दल यू रहा। जॉर्ज अध्यक्ष,
शरद यादव संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बने। 2004 में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर चुनाव
लड़ा। बीजेपी को बिहार में 6 और जेडीयू को 5 सीटें मिली।
(2004 में जेडीयू को 1 सीट लक्षद्वीप, 1 यूपी में आंवला भी मिली
थी)
नीतीश
दो सीटों से लड़ रहे थे जिसमें से बाढ़ की सीट से वो हार गए। जॉर्ज ने मुजफ्फरपुर
से चुनाव लड़ा और वो जीते। इस चुनाव में एनडीए ने वाजपेयी को पीएम प्रोजेक्ट किया
था।
इसके बाद 2005 के फऱवरी में जो
विधानसभा चुनाव हुआ उसमें किसी दल को बहुमत नहीं मिला। जेडीयू को 55, बीजेपी को 38, आरजेडी को 75, एलजेपी को 29 सीटें मिलीं। लेकिन रामविलास पासवान ने मुस्लिम
मुख्यमंत्री बनाने का कार्ड खेला जो कामयाब नहीं हुआ और फिर बिहार एक साल में
दूसरी बार चुनाव में गया। इसके बाद 2005 के नवंबर में फिर
बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ। नीतीश सीएम प्रोजेक्ट हुए।
बीजेपी और जेडीयू
को मिलाकर 143 सीटें मिलीं। 88 जेडीयू और 55 बीजेपी। इस चुनाव में पासवान को सिर्फ
10 सीटें ही मिली। बहुमत के साथ नीतीश मुख्यमंत्री बने और सुशील मोदी उप
मुख्यमंत्री।
लेकिन इसी चुनाव के बाद शुरू हुआ
नीतीश का जनाधार बढ़ाने का खेल। नीतीश ने अल्पसंख्यक वोटरों में अपनी पैठ बनाने के
लिए जी तोड़ मेहनत शुरू की। मुस्लिमों को अगड़े-पिछड़े में बांट दिया। पसमांदा
समाज (पिछड़ा मुसलमान) से अली अनवर को नेता बनाया। लालू को इस बात का डर सताने लगा
कि कहीं मुस्लिम वोट उनसे अलग न हो जाए।
2006 में पार्टी अध्यक्ष पद के
चुनाव को लेकर हुए विवाद में जॉर्ज फर्नांडिस को नीतीश ने हाशिये पर डाल दिया।
जॉर्ज को नीतीश के सहयोग से शरद यादव ने हरा दिया। अब जॉर्ज अपनी बनाई पार्टी के
लिए बेगाने हो गये ।
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गुजरात दंगे का पोस्टप |
(इस चुनाव में जॉर्ज को टिकट नहीं दिया, ज़ॉर्ज मुजफ्फरपुर से निर्दलीय लड़कर हार गए)
2009 में बिहार
की 40 में से नीतीश की पार्टी को 20 और बीजेपी को 12 सीटें मिली। नीतीश की पार्टी
25 और बीजेपी 15 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में जेडीयू
को 24.04 और बीजेपी को 13.93 फीसदी वोट मिले थे। यानी कुल वोटों का 37.97 फीसदी
वोट। जबकि आरजेडी को 19.30 और कांग्रेस को 10.26 फीसदी वोट मिले।
केंद्र में सरकार यूपीए की बनी।
और उधर एनडीए में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की दूरी बढ़ती गई।
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लुधियाना रैली- 2009 |
चुनाव प्रचार में नीतीश ने बिहार में मोदी को
नहीं आने दिया। कोसी बाढ पीड़ितों के लिए मोदी ने बिहार सरकार को 5 करोड़ का चेक
भेजा था उसे नीतीश ने वापस कर दिया। नीतीश का ये पैतरा काम आया और बिहार के चुनाव
में पार्टी को बहुत बड़ी जीत मिली। कुल 243 में से 140 पर लड़कर 115 पर जेडीयू और
103 में से 91 पर बीजेपी को जीत मिली।
इस चुनाव में
एनडीए को 39.1 फीसदी वोट मिले। जो 2005 की तुलना में 2.9 फीसदी ज्यादा थे।
आरजेडी-एलजेपी को 25.6 वोट मिले जो 2005 की तुलना में 13.5 फीसदी कम था।
मतलब संदेश साफ हो गया था बिहार
में मोदी की जरूरत नहीं है। इस जीत ने नीतीश को ताकत दी और उनकी पार्टी के नेता
पीएम की दावेदारी पर मोदी के दावे को खारिज करने में जुट गए। पिछले साल इकनॉमिक
टाइम्स को दिये इंटरव्यू में नीतीश ने चुनाव से पहले पीएम पद का नाम घोषित करने की
मांग की। उनकी पार्टी के नेता भी चुनाव से पहले जल्द नाम घोषित करने का दबाव बनाते
रहे। लेकिन 13-14 अप्रैल 2013 को दिल्ली में हुई पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में
जेडीयू ने बीजेपी को दिसंबर तक की मोहलत तो दी लेकिन अपने भाषण में नीतीश ने मोदी
पर जबरदस्त हमला किया। नतीजा हुआ कि रिश्ते सुधरने की जगह और बिगड़ते गये।
1 comment:
इसमें 1 समस्या है.
2009 में बिहार में 7 मई तक चुनाव निपट
गए थे. इसके बाद 8 या 9 मई को लुधियाना में
एनडीए की रैली थी. यही वजह है कि नीतीश कुमार
रैली में शामिल हुए.
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