ये जो हफ्ते में एक दिन की छुट्टी मिलती है उसके फायदे कम घाटा ज्यादा है। आपके लिए तो मैं बिल्कुल ही नहीं कह रहा ये सिर्फ मैं अपने बारे में कह रहा हूं। महीने में 4-5 साप्ताहिक छुट्टियां मिलती हैं। पहला हफ्ता वाला तो मान लीजिए कभी बैंक तो कभी बिजली बिल या दिस दैट करके बारह एक बजे तक का टाइम निकल जाता है। यहां के बाद अब शुरू होती है समय बीताने के रास्ते खोजने की परीक्षा। अभी फिलहाल तीन-चार दोस्त हैं जिनके साथ होने पर छुट्टी का मतलब छुट्टी हो पाता है। लेकिन ये भी कब महीने की पहली छुट्टी के दिन । वो भी दोपहर बाद। किसी तरह से खा-पीकर, कुछ खरीदारी करके, सिनेमा देखकर टाइम निकाल लिया। लेकिन फिर छे दिन बाद सब कुछ ठीक रहने पर छुट्टी का दिन आ धमकता है। अब क्या... न बिजली बिल बचा...न किराया का...राशन और सब्जी तो समझिए रोज टाइप आइटम है । उसका तो साप्ताहिक मामलों से कोई लेना देना ही नहीं । अब ऐसा भी नहीं कि छुट्टी का दिन है तो ज्यादा देर तक सोते रहिए। नींद तो अपने टाइम पर ही खुलेगी । दफ्तर के दिन हड़बड़ी में सब कुछ करके निकल जाना पड़ता है लेकिन छुट्टी है तो इत्मीनान से करते रहिए...टाइम भी धीरे धीरे बीतता है।
अब आइए बुनियादी मुद्दे पर। चूंकी दिल्ली में दोस्त हो गए हैं कम। जो थे पुराने साथी-सहपाठी सबकी अपनी टाइमिंग है। सबकी अपनी गृहस्थी है। सो उधर से हाथ निकल गया। बचे अब तीन-चार करीबी वाले। अब छुट्टी असल में यही खलती है । अब चूंकि ज्यादा लोगों के साथ तो उठना-बैठना है नहीं.. जो लोग होते हैं साथ में उनकी भी अपनी दुनिया है। अपनी जान पहचान है तो उसमें दखल देना किसी सूरत में मुनासिब नहीं है। क्योंकि उसके पास भी वही महीने में 4-5 छुट्टी है। उसी में सबको अपनी अपनी प्लानिंग करनी होती है। किसी को शादी में जाना तो किसी को पुराने दोस्त के पास तो किसी को कहीं. किसी को कहीं...कहने का मतलब सीधा और साफ शब्दों में ये है कि आपकी दुनिया छोटी है इसलिए आपको दिक्कत होती है और होती रहेगी। फिलहाल...!!! बहुत कम लोग जानते हैं कि कई बार तो कमरे में अकेले बोर हो जाने पर मार्केट जाकर पान खाकर टाइम बीताना पड़ता है ताकि पान खाने के दौरान उसी में कुछ देर उलझा रहूं...और फिर उसके बाद उसके असर में कुछ देर। कई बार यूं ही गाड़ी लेकर निकल जाना पड़ता है ताकि शरीर में थोड़ा बहुत धूप वगैरह भी लग जाए और कुछ समय भी...वैसे टीवी पर साउथ इंडियन फिल्में देखना और किताब पढ़ना भी रूटीन में शामिल होता है लेकिन कुछ देर बाद इससे भी मन उचट जाता है। चार-पांच छुट्टियों में से एक-दो तो ऐसी भी होती है जब पुराने पंद्रह बीस अखबारों को पलट पलट कर कुछ खास लेख, खबरें खोजने और फिर उसको पढ़ने का भी सहारा लेना पड़ता है। लेकिन इसमें भी उतना समय नहीं लगता। जिस वक्त ये लिख रहा हूं उस वक्त मैं घर में गैस सिलेंडर वाले का इंतजार कर रहा हूं। पान खाने के लिए बाहर जाने का मन था लेकिन गैस सिलेंडर वाले को फोन किया तो बोला कि मैं आ रहा हूं। तो इसी दौरान इसे छाप रहा हूं।
एक दिन की छुट्टी होने की वजह से भी शायद ऐसा है अगर दफ्तर में दो दिन की छुट्टी होती.. तो कहीं घूमने-फिरने भी निकल जाया जाता तो उसमें भी मन लगता...हो सकता है दो दिन की छुट्रटी का कुछ ज्यादा ही घाटा होता। वैसे परिचित लोग तो छुट्टी लेकर घूम फिर भी आते हैं यहां कहां मौका मिलता है। छे साल के दौरान इसी साल दो दो दिन के लिए शिमला और नैनीताल जाने का मौका मिला। वो भी तब जब साल में एक बार सिर्फ घर जाने की छुट्टी ली। इस महीने तो पार्टनर भी घर गया है। उसका भी टाइम टेबल अपना है। दूसरे मूड का है सो उसका समय ज्यादातर तो निकल जाता है। कभी कभी उसको भी उलझन होती है। जब 2006-2007 के दौरान दो दिन की छुट्टी मिलती थी उस वक्त मेरे बड़े भाई भी नॉर्थ में रहते थे... उस दौरान हर छुट्टियों में वहीं चला जाया करता था। लेकिन अब वो बिहार में ही हैं सो नॉर्थ कनेक्शन भी कट गया । एक रायजी मित्र हैं तो वो बिहार में ही हैं । बालक भी परिवार वाला आदमी है। धीरे-धीरे लोग कम होते गए न...जैसे जैसे नए लोग जुड़ना शुरू होते हैं तो पुराने अपने आप कम होने लगते हैं...लेकिन यहां नया पुराना सब माइनस में ही है। अब आज का रूटीन पता ही नहीं है करना क्या है....गैस वाला अब भी नहीं आया । आता तो इसको रोकता...अब कल तो ठीक रहा...मैच भी था... सब थे भी...लेकिन कल तो छुट्टी नहीं थी न... छुट्टी तो आज है...चलिए देखिए....क्या कर सकते हैं....कोई बात नहीं !!! थोड़ा यूपी चुनाव पर टाइम देना है। अब वही देखने जा रहा हूं। चलिए। आपको छुट्टी मिले तो फोन कीजिएगा। मैसेज कीजिएगा। हो सके तो बताकर मिलने भी आ सकते हैं। बुला भी सकते हैं।
No comments:
Post a Comment