Monday, August 22, 2011

अन्ना की 'शांतिपूर्ण क्रांति'



अन्ना एक आंदोलन
 हिन्दुस्तान में हवा का रुख इस वक्त रामलीला मैदान से शुरू होकर देश भर में फैल रहा है। इस वक्त मैं जब लिख रहा हूं मेरे पीछे जिन्दाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं। रोड पर छोटे छोटे बच्चों से लेकर बड़े तक सब हाथों में मोमबत्ती लिए भारत माता की जय के नारे बुलंद कर रहे हैं। देश भर की गलियों में पिछले पांच-छे दिनों से ये आवाज गूंज रही है। आज की इस पीढ़ी ने इतना बड़ा जनआंदोलन जो बिना किसी बवाल के सात दिनों से हिन्दुस्तान की सड़कों पर चल रहा है नहीं देखा। अतीत के पन्ने को पलटे तो इस पीढ़ी को याद है तो मंदिर आंदोलन और वीपी सिंह की लगाई आरक्षण की आग वाला हिंसक आंदोलन। बीते पच्चीस तीस सालों में कई तरह के आंदोलन भले ही देश में हुए लेकिन आज का ये आंदोलन कई मामलों में अलग है। पुराने आंदलोनों में मीडिया का ये हुजूम नहीं था। आज देश के कोने कोने की तस्वीरें इस कोने से लेकर उस कोने तक जा रही है। देश का एक बड़ा तबका जो देश की तकदीर और तस्वीर को बदलने में अहम भूमिका निभाता है वो आज सड़कों पर है। अपनी आगे की पीढ़ी को संस्कार और शिक्षा देने के लिए। जिन लोगों ने बदलते हिन्दुस्कान की तस्वीरें नहीं देखी वो एक बार रामलीला मैदान जरूर हो आएं। क्योंकि आंदोलन जब अतीत बन जाएगा तो खुद को गुनहगार मानने के अलावा कुछ न कर सकेंगे। आज के इस आंदोलन में हर वो रंग है हर वो तस्वीर है हर वो लोग है जिसे देखना सुनना और समझना चाहता है सवा सौ करोड़ का हिन्दुस्तान। मंच से जब अन्ना हजारे की आवाज नहीं सुनाई देती तो लगता है देश में मातमी सन्नाटा पसरा हुआ है। 74 साल का नौजवान तीस साल के नौजवानों के लिए प्रेरण बनकर सात दिनों से भूखा है। सात घंटे में इन लोगों को पसीना आ जाए। आखिर रामलीला मैदान के मंच पर बैठा शख्स भी आपके और हमारे बीच का इंसान ही है। उसे भी खाना पसंद है शौक से कोई सात दिनों तक भूखा नहीं रहता। आप और हम सात घंटे भूखे रह जाएं तो पूरे खानदान को पता चल जाता है। लेकिन सात दिनों से एक शख्स भूखा है और आपके लिए लड़ रहा है। सिर्फ आपके लिए। सब कुछ ठीक भी रहा तो पांच साल से दस साल और इससे ज्यादा उनकी उम्र नहीं होगी। लेकिन आज हिन्दुस्तान उनके दीर्घायु होने की कामना कर रहा है। देश भर में जन्माष्टमी का उत्सव आज इस आंदोलन के आगे फीका पड़ गया। मुंबई में दही हांडी फोड़ने की तस्वीरें आज के दिन स्कीन से हटती नहीं थी लेकिन शायद ही आज देश ने मुंबई के उत्सव को देखा होगा। सिर्फ इसलिए कि आंदोलन के रंग के आगे उत्सव का रंग फीका पड़ गया, सेना का सिपाही जनता का जनरल बनकर दिलों पर राज कर रहा है।
मैं भी अन्ना हजारे
आज भी इस देश में मध्यमवर्गीय परिवार राजनीति को गंदी नजरों से देखता है। परिवार का कोई बच्चा राजनीति में चला जाए। झंडा बैनर और भाषण की बात करने लगे तो घरवालों से उसे न जाने क्या क्या सुनना पड़ता है। लेकिन आज तस्वीर बदली हुई है। रामलीला मैदान में एक साथ तीन तीन पीढ़ी के लोग पहुंच रहे हैं। ताकत को बढ़ाने के लिए। मुझे नहीं लगता कि जिसे लोग गली मोहल्ले में नेता कहते हैं, या फिर जो राजनीतिक दलों का कार्यकर्ता है वो किसी आंदोलन, धरना, प्रदर्शन, बंदी में अपने बच्चों, बीवी और बेटा-बेटियों को लेकर सड़क पर जिन्दाबाद मुर्दाबाद के नारे लगाने के लिए उतरता है। लेकिन इस आंदोलन में नेता नहीं हर कोई नायक बनकर सड़क पर उतरा है। तीन महीने की बच्ची से लेकर तिहत्तर साल के बुर्जग तक में वही जोश है जो मंच से दिखता है।

एक आदमी की आवाज के पीछे लोग भाग रहे हैं। फिर भी अंधे और बहरे लोगों को न तो दिखाई दे रहा है और ना ही कुछ सुनाई दे रहा है। वक्त हमेशा एक जैसा नहीं होता। लीबिया, सीरिया, ट्यूनिशिया और मिस्र जैसा आइटम गवाह है जहां तीस साल-चालीस साल तक पके पकाए जमींदारों को जमीन में लिटा दिया गया। यहां तो फिर भी सब कुछ सामान्य है। खामोश है हिन्दुस्तान। मन में चिंगारी है लेकिन दबी हुई। लोग उसे हवा नहीं दे रहे। लेकिन सन्नाटा तो कभी भी मजबूर कर सकता है।
19 अगस्त, दिल्ली की सड़कों पर जनसैलाब

चालीस साल
बाद टीम इंडिया की ऐसी शर्मनाक हार हुई है । वो भी उस कप्तान की कप्तानी में जिसने इस टीम को नंबर वन बनाया था। उसी कप्तान की कप्तानी में टीम की नैया डूब गई। टीवी पर कुछ देर के लिए माहौल बनाने की कोशिश भी हुई लेकिन रामलीला मैदान के मंच पर छाए सन्नाटे ने इन्हें आज बख्श दिया। जिस कप्तान की तारीफ में कसीदे पढ़ पढ़ करके थकते नहीं थे उसे भी हार का सामना करना पड़ा है। संयोग है कि आज कल में वापस नहीं लौटना है नहीं तो उनको भी माफी मांगने के लिए रामलीला मैदान जाना होता। कहने के मतलब ये कि आज हिन्दुस्तान रामलीला मैदान की ओर देख रहा है। आज की ये पीढ़ी पहली बार दिल्ली की सड़कों पर लाखों की भीड़ देख रही है। छुट्टी लेकर लोग रामलीला मैदान का रुख कर रहे हैं। लड़ाई है। जो लड़ी जा रही है। अन्ना इस लड़ाई में जनता के जनरल हैं और सड़क पर उतरी ये सेना इस लड़ाई में उनका साथ दे रही है। और इतिहास गवाह है कि शासन को झुकना ही पड़ा है। शांति अहिंसा और सदाचार के नारे के साथ जो शांतिपूर्ण क्रांति की शुरुआत हुई है उसका असर सिर्फ इस पीढ़ी को नहीं कई पीढ़ियों पर पड़ने वाला है। बात सिर्फ अब कानून बनने और न बनने को लेकर नहीं हो रही । बात अब सच और झूठ की है। धोखे में रखने की है। सच को छिपाने की है। 



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