Monday, January 25, 2010

फिल्म सिटी के नजदीक न होता तो ?

रात के बारह बजे थे, कटवारिया सराय से घर लौटना था, हां-ना करते करते साढ़े बारह का वक्त भी बीत गया...इधर लौटने वाले तीन लोग थे. मैं, निप्पू और विवेक। ऑटो से लौटने की तैयारी थी, फिर हुआ कि देर हो गई है ऑटो मिले न मिले.. नवीन सर ने अपनी बाइक दे दी. चेक चाक करके। निप्पू पीछे बैठा, मैं बीच में और विवेक चलाने लगा.. करीब एक बज गए होंगे.. चल दिये तीनों...एक किलोमीटर बाद ही गाड़ी बीच सड़क पर बंद.. तीनों उतरे.. दायां-बांया करके फिर से गाड़ी को निप्पू ने स्टार्ट कर दिया.. विवेक ने चलाना शुरू किया.. वाया एम्स, साउथ एक्स होते हुए डीएनडी की ओर चल पड़े। डीएनडी से पहले भारी कोहरा... हाथ को हाथ न सूझे..विवेक चलाए जा रहा था...कभी आगे चल रहे ट्रक की रोशनी में तो कभी ऐसे ही... रोड समझकर चले जा रहे थे..डीएनडी पर टोकन लेने-देने के बाद आगे बढ़े.. आगे ऑटो, पीछे बाइक... निप्पू ने कहा कि देखना रास्ता न गड़बड़ा जाए.. दिखाई तो दे नहीं रहा था.. अचानक ऑटो ने ब्रेक लिया.. हो गया कन्फ्यूजन..जाना था जिस रास्ते उस रास्ते न जाके फिल्म सिटी के सामने वाले रोड पर आ गए... सामने स्पीड ब्रेकर था...फिल्म सिटी के गेट पर...बाइक की रफ्तार कम क्या हुई.. बीच रोड पर स्टार्ट बाइक न आगे जा रही है न पीछे.. अभी दो बजने वाले थे रात के। कोहरा बढ़ते ही जा रहा था...बाइक का इलाज शुरू किया गया.. बीमारी समझ में नहीं आ रहा था... न आगे जाए न पीछे...पंद्रह मिनट बाद नवीन जी को फोन किये..." sir..bike bich road per kharab ho gai...kya baat kar rahe ho...ji sir..ligiye nippu se baat kijiye"
nippu- bhaiya, samjh me aa gaya, chain tut gai... gadi ko wahi sadak pe chhod k tum log chale jao.." लास्ट वाला बयान नवीन सर का था। तभी जिस रास्ते से हम लोग आए थे उसी रास्ते से एक मारुति ओमनी (टैक्सी) वाला आया... दोनों के हाथ देने पर बेचारा रूक गया... उस बेचारे ड्राइवर को दिल्ली जाना था, रास्ता भूल गया था, उसकी जरूरत ये थी ये लोग मुझे रास्ता बता देंगे...बेचारे का एक हाथ नहीं था..लेकिन यहां तो तीन-तीन लोग थे.. साथ में मोटरसाइकिल जो न आगे जाने का नाम ले.. न पीछे, ठेलने पर भी। निप्पू और विवेक टैक्सी में बैठ गये.. और बाइक लादने की जिद करने लगे... बेचारा टैक्सी वाला रात के दो बजे अकेले छटपटा रहा था... हमलोगों की जिद भी जायज थी... परेशान थे भाई.. बहुत देर से... ऊपर से कोई आशंका दिख नहीं रही थी कि यहां से कटे कैसे।
मैंने पहले मुकेश पराशर जी को फोन लगाया.. ये पता करने के लिए कि क्या अमित गुप्ता जी दफ्तर में है..पराशर जी ने फोन नहीं उठाया... मेरा एक दोस्त है प्रभात, न्यूज 24 में.. फिर उसको मिस कॉल दिया..जगा है कि सोया है.. कौन सी शिफ्ट है.. नहीं मालूम था...इसलिए मिस कॉल देकर छोड़ दिया... उसका कॉल तुरंत आ गया... लेकिन रिसीव करने के बजाए मेरे हाथ से कट गया.. मैंने कॉल बैक किया.. बात की मालूम हुआ उसकी नाइट शिफ्ट है और वो दफ्तर में है...तब तक इधर निप्पू और विवेक टैक्सी वाले को छोड़ने को तैयार नहीं है... दोनों उसी टैक्सी में जाकर बैठे हैं... बाइक के लिए जगह बना रहे थे दोनों... प्रभात से बात करने के बाद फिर मैंने दोनों को कहा कि टैक्सी वाले को जाने दो.. और गाड़ी को किसी तरह से ठेल-ठाल के न्यूज 24 के दफ्तर के पास ले चलो। (निप्पू और विवेक को नहीं मालूम चल पा रहा था कि हम लोग फंसे कहां हैं... ये बात मैं नहीं जान रहा था... मुझे मालूम था कि हमलोग फिल्म सिटी के मेन गेट पर फंसे हुए हैं...)टैक्सी वाला चला गया.. जाना था दिल्ली बेचारा कहां गया पता नहीं... निप्पू और विवेक के जान में जान आई कि वो लोग फिल्म सिटी के पास फंसे हैं.. खैर दोनों ठेल-ठाल के बाइक को फिल्म सिटी ले गये...चेन अंदर फंसने के चलते आवाज... कल्पना कर लीजिए... बताएंगे तो बोर हो जाइएगा... दफ्तर से प्रभात नीचे आया... बाइक पार्क की गई...सुबह वापस ले जाने का आश्वासन देकर... अंदर-अंदर हमलोग आईबीएन की तरफ पहुंच गये... यहां और कन्फ्यूजन.. कोहरे के चलते जाना किधर है... पते न चले... पास में एक ड्रॉपिंग की गाड़ी थी... विवेक ने जाकर बात की...बुजुर्ग आदमी थे...अपना दुखड़ा सुनाने लगे... लेकिन फिर बोले कि मेन रोड पर छोड़ देता हूं... हमलोग बैठे और
फिल्म सिटी के दूसरे वाले गेट पर पहुंच गये... यहां से हमलोगों को अट्टा पहुंचना था... चलने लगे...रास्ते में लिफ्ट मांगने की कोशिश करते रहे... निप्पू और विवेक...बीच पुल पर जो फिल्म सिटी और अट्टा के बीच है, फ्लाइओवर से पहले, एक कार रुकी, चौबीस-पच्चीस साल का लड़का चला रहा था. पिकअप-ड्रॉपिंग का मामला था...तीनों बैठ गये.. इससे पहले कि वो कहे जा रहा था कि मैं तो रजनीगंधा जाऊंगा... फाइनली वो रजनीगंधा के रास्ते नहीं मुड़ा... अट्टा की तरफ बढ़ते- बढ़ते नीचे से होते हुए बढ़ने लगा... सेक्टर 27 के सामने पूछा कि, कहां जाओगे...57 के थाने... हमलोगों ने बताया नहीं-58 के थाने...कार के ड्राइवर से बातचीत में मालूम चला कि वो पास के गांव का ही रहने वाला है... अभी तीन नहीं बजे थे...जैसे जैसे कार बढ़ रही थी रफ्तार कम होती जा रही थी... कोहरा इतना बढ गया था कि कुछ नहीं दिख रहा था...शॉप्रिक्स के कट से हमलोगों को मुड़ना था... ड्राइवर को समझ में नहीं आ रहा था... उसका वश चलता तो चार कट पहले ही मुड़ जाता.... जैसे तैसे शॉप्रिक्स के कट के पास पहुंचे तो उसने कार रोक दी...कहा रिक्शे वाले को जैकेट दूंगा अपना... हम तीनों में से किसी ने रिक्शे वाले को देखा नहीं था... कार से ड्राइवर उतर गया... बगल में खड़ा हो गया... हम तीनों कार में...भाई ये क्या माजरा है.. समझ में किसी को नहीं आ रहा था...तभी पीछे एक रिक्शावाला दिखा... पास आने पर ड्राइवर ने अपनी जैकेट उसे दे दी...न रिक्शेवाले को समझ में आया और ना ही हम लोगों को। फाइनली हमलोग अगले तीन-चार मिनट में सेक्टर 58 के थाने पहुंच गये...कार वाले को धन्यवाद किया... निप्पू ने कुछ पैसे दिए...लेने के बाद उसने कहा... दोस्त ये अच्छा नहीं किया...खैर फिर किसी तरह उसे समझाकर वापस भेज दिया।
हम तीनों वहीं कॉफी वाले के पास उतरे, सुबह के तीन बजने वाले थे। पिछले दो तीन घंटों को याद कर करके भगवान का शुक्रिया जता रहे थे। निप्पू ने कहा कि ये कार वाला वहां हमलोगों के लिए भगवान बनकर आया था... नहीं तो इस कोहरे में कहां टपला खा रहे होते पता भी नहीं चलता....निप्पू की बात में सच्चाई थी...वैसे एक बात और अगर फिल्म सिटी की जगह डीएनडी या फिर बीच में कहीं और बाइक का माचो हुआ होता तो क्या होता?
उस रात की ये तो एक कहानी है जिसमें हम तीनों किरदार थे.. एक और कहानी ठीक उसी रात और उसी वक्त की है... उसमें अभिनित और रश्मि के साथ साथ नवीन सर और रवींद्र जी भी भूमिका निभा रहे थे...इस कहानी को जानने के लिए
ब्लॉग बदलना पड़ेगा...दूसरी वाली कहानी भी पहली वाली कहानी से कम नहीं है।

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