निखिल जी गजब के आदमी हैं। उस वक्त भी मेरी नाइट शिफ्ट ही थी, मई-जून का महीना था साल दो हजार छे में। निखिल सर ने ज्वाइन ही किया था। एसोसिएट प्रोड्यूसर थे तब। मैं चैनल में उनसे पांच-सात महीना सीनियर था वैसे था ट्रेनी ही। हम दोनों की जब जान पहचान हुई तो उसके अगले दिन से ही हम लोग एक दूसरे से इतने घुल मिल गये कि लगा ही नहीं कि हम लोगों की कल ही मुलाकात हुई है। प्योर देसी अंदाज में हमलोगों ने मुंबई के न्यूज रूम का माहौल बदल दिया। मैं उस समय वाशी में रहता था, निखिल सर हीरानंदानी में। रात में हमलोग एक ही गाड़ी से दफ्तर आते थे। उनके काम करने का अंदाज उनके वीओ का अंदाज.... आप तुलना नहीं कर सकते। जुलाई में हमलोग मुंबई से दिल्ली आ गए। सबसे पहले अपनी शिफ्ट में मैं आया, फिर बाकी लोग। अरुण सर के नेतृत्व में हमलोगों ने काम करना शुरू किया, डीएलएफ से सुबह का बुलेटिन लॉन्च हुआ। करीब सवा महीने तक हमलोगों ने कोई ऑफ नहीं लिया। उसी दौरान नवीन सर भी नाइट की शिफ्ट में आ गए थे। डीएलएफ में निखिल सर को सुबह साढ़े सात का प्रोग्राम मिला। आधे घंटे की बड़ी खबर। यकीन नहीं करेंगे। पांच बजे खबर तय होती थी, साढ़े सात में छे-सात पैकेज कटकर लगे होते थे। कुछ खबरों का वीओ तो निखिल सर बिना कॉपी के ही मुजबानी कर दिया करते थे। जबकि उस वक्त सात बजे 30-30 चला करता था। इसके बाद दफ्तर फिर नोएडा में आया। मार्च 2007 में मैं सुबह की शिफ्ट में आ गया निखिल सर कुछ दिनों के लिए रात में ही रुके। इसके बाद साथ-साथ काम करने का बहुत कम ही मौका मिला। एक बार नवरात्रि के दौरान हमदोनों कुछ दिनों के लिए सुबह की शिफ्ट में साथ थे। एक वॉकथ्रू को लेकर विवाद हो गया... ध्यान ही नहीं रहा...कि हमलोगों के बीच गर्मागर्मी तक हो गई। बाद में मैंने माफी मांगी, लेकिन उन्होंने अरुण सर से बोलकर अपनी शिफ्ट बदलवा ली, मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई.....खैर कुछ हो नहीं सकता था। इसके बाद बहुत दिनों तक हमलोगों ने साथ में काम नहीं किया। नवंबर 2008-दिसंबर 2008 में एक बार फिर मुझे एक शिफ्ट में काम करने का मौका मिला। दो महीने के लिए शाम की शिफ्ट में काम करने गया था। (4 साल में 2 महीने), बड़ा अच्छा लगता है जब आप अपने ऊपर के अधिकारी के करीबी होते हैं। कभी-कभी कुछ खबरों पर काम करने की मेरी इच्छा नहीं होती तो पहले ही पूछ लेते किस खबर पर काम करना है। अच्छा लगता आप अपने हिसाब से काम करते हो। दो महीने बाद मैं नाइट में चला गया। तीन महीने की नाइट शिफ्ट हो चुकी थी अब।
जब कई दिनों तक हमलोग नहीं मिलते तो वो रात में दफ्तर मेरे आने का इंतजार करते साथ में और साथियों को भी रोके रहते। फिर मैं भी जल्दी पहुंचता और सब लोगों के साथ करीब आधे घंटे-एक घंटे लंबी चर्चा होती। जनवरी2009 से मार्च 2009 तक मैं नाइट शिफ्ट में रहा। अप्रैल में सुबह की शिफ्ट में आया। चुनाव का वक्त था। शाम को शिफ्ट खत्म करने के बाद मैं देर तक रुकता और फिर हमलोग 7-7.30 बजे चाय पीते और मैं निकलता और बाकी लोग अपने काम में लग जाते। तीन महीने बाद निखिल जी की नाइट लगी। सुबह हमलोगों की मुलाकात होती, खबरों पर चर्चा होती, लेकिन ज्यादा देर तक वो नहीं रुकते। जब वो शाम की शिफ्ट में आए तो मेरी नाइट फिर से लग गई। मुलाकात के लिए वो देर तक रुकते और मैं जल्दी आता। घर जाने का कभी कभी तो मौका मिलता है। निखिल जी के साथ जिसने भी काम किया उनकी शिफ्ट में उसका वो हमेशा ख्याल रखते। सत्येश हो तब या फिर गोकर्ऩ जी। हाल में शीतल मणि और विनयश्री, अमित भी उनके साथ नाइट की टीम में थे। इन लोगों के ऊपर भरोसा करके उन्होंने पूरी जिम्मेदारी दे रखी थी। अभिनित, रश्मि, यश, विवेक और निप्पू की बात ही छोड़ दीजिए। विवेक और अमित भाटिया जब चैनल में पहले दिन आए थे तो सबसे पहला परिचय ही आउटपुट में निखिल सर से हुआ था। अब जब निखिल सर ने चैनल को अलविदा कह दिया, ये लोग कैसे रह पाएंगे, और कैसे काम कर पाएंगे... बेहतर यही बताएंगे। गाली देना उन्होंने इधर शुरू किया है। पहले वो गाली नहीं देते थे, चिल्लाते भी नहीं थे। समय के साथ का बदलाव है ये। कुछ लोगों को गाली देकर ही उन्होंने इंडस्ट्री में काम का तरीका बताया। इस कला को भी पसंद करते हैं लोग। एक चेले ने तो जात-पात करने का भी आरोप लगा दिया। लेकिन ऐसा बिल्कुल ही नहीं है। वैसे सिर्फ यही लोग कमजोर नहीं हुए हैं। मैं तो ये समझता हूं कि निखिल जी के जाने से अरुण सर को भी व्यक्तिगत रूप से घाटा हुआ है। निखिल सर जैसे लोग सफर में बहुत कम मिलते हैं। पहले तो टाइम टेबुल की जानकारी होती थी, किस दिन छ्टुटी है, कब घर पे हैं। अब तो पता भी नहीं चलेगा। फोन करना पड़ेगा। हो सकता है कभी कहे कि अभी उपभोक्ता व्यस्त है... कभी फोन उठाए तो हो सकता हो कुछ कर रहे हो... खैर....कई लोग आए और गए लेकिन आपका जाना बहुतों पर भारी पड़ रहा है। इस उम्मीद के साथ अब उठ रहा हूं कि स्टार न्यूज तो बस एक पड़ाव था....आगे फिर मौका मिलेगा तो साथ काम करेंगे, लेकिन सब लोग शायद तब भी साथ नहीं होंगे। अंत में यही कहूंगा कि निखिल सर जैसे लोग बहुत कम मिलते हैं। लेकिन उनका फैसला कहीं से भी उचित नहीं है। और उससे भी बड़ा उन लोगों का फैसला गलत रहा जिन्होंने उनको जाने की इजाजत दी।
7 comments:
jin khoja tin paiyan.narayan narayan
Snehil swagat hai!
वाकई अब लोटे बिना पेंदी के ही चल रहे हैं ,
निखिल सर के नजदीक आप तो बने ही रहो
बहुत अच्छी बाते बताई आपने निखिल जी चले गए ? लेकिन कहाँ ?? अभी कहाँ होंगे koi dusraa channel join kiyaa hoga!! kahi jo bhi achcha laagi aapki watra!!!
Accha prayaas hai, Welcome.
Accha prayaas hai, Welcome.
स्वागत बलोग जगत में ।
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