Tuesday, December 5, 2017

बिहार में अबकी बार, दिग्गज होंगे :बेकार'


बिहार में टिकट का बंटवारा बीजेपी नेताओं की नींद हराम कर देगा। बिहार में लोकसभा की चालीस सीट है। बीजेपी 22 पर जीती थी। इनमें से इस बार कई सांसदों का टिकट कटना तय है। पटना साहिब से शत्रुघन सिन्हा बागी हैं इसलिए उन्हें इस बार टिकट नहीं मिलेगा। दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद पार्टी से बाहर हैं उनकी पत्नी दिल्ली में कांग्रेस की राजनीति कर रहीं हैं । इस बार इनको भी बीजेपी नहीं उतारने वाली। इन दोनों के अलावा बागी तेवर दिख चुके भोला सिंह बुजुर्ग की श्रेणी में हैं इसलिए इनका भी टिकट कट चुका हुआ समझिये । सासाराम के सांसद छेदी पासवान की सदस्यता जा चुकी है इसलिए इनको इस बार घर बैठना होगा।
इनके अलावा पार्टी परफॉर्मेन्स के आधार पर भी कुछ लोगों को बेटिकट करेगी। इनमें सुनी सुनाई बात ये है कि उत्तर बिहार से बेतियाशिवहर,मुजफ्फरपुरझंझारपुर के सांसदों का नाम आ सकता है। बेतिया सीट बीजेपी की पुरानी सीट है लेकिन बीजेपी इस सीट को जेडीयू को दे सकती है। अगर बीजेपी ही लड़ी तो पार्टी साबिर अली या देवेश चंद्र ठाकुर को उतार सकती है। वैसे स्थानीय समीकरण संजय जायसवाल को बेटिकट करने की इजाजत नहीं देते। अगर संजय को ही पार्टी बेतिया से लड़वाती है तो फिर शिवहर से रमा देवी का टिकट कट सकता है। अगर ऐसा हुआ तो पार्टी पूर्व एमएलए रत्नाकर राणा को उतार सकती है। रत्नाकर के अलावा लवली आनंद भी बीजेपी से टिकट की दावेदार बन सकती हैं। राजपूत में ये दोनों ही मजबूत उम्मीदवार होंगे। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में बने रहने की सूरत में ये सीट लोजपा को जा सकती है और वैशाली के सांसद रामा सिंह यहां से उम्मीदवार बनाये जा सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चर्चा है कि उपेंद्र कुशवाहा खुद वैशाली से लड़ने का मन बना रहे हैं।
शिवहर से अगर एनडीए ने राजपूत उम्मीदवार नहीं उतारा तो फिर वैश्य समाज से पवन जायसवाल और वैद्यनाथ प्रसाद के नाम पर पार्टी विचार कर सकती है। दरभंगा सीट जदयू को दी जा सकती है। यहां से नीतीश कुमार अपने करीबी संजय झा को उतार सकते हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि संजय झा के सामने लालू गठबंधन ने कीर्ति झा को उतार दिया तो फिर जदयू के लिए सीट निकालना मुश्किल हो जाएगा। कीर्ति झा को टिकट देने के बाद लालू के लिए अली अशरफ फातमी सिरदर्द बन सकते हैं। ऐसे में उन्हें दरभंगा से मधुबनी भी लालू नहीं भेजना चाहेंगे। क्योंकि लालू की कोशिश अब्दुल बारी सिद्दीकी को बिहार से दूर करने की होगी। लालू चाहेंगे कि सिद्दीकी मधुबनी से लड़कर जीते ताकि तेजस्वी की राह का रोड़ा हमेशा के लिए बिहार की राजनीति से बाहर हो जाये।
मधुबनी से सिद्दीकी और दरभंगा से फातमी के उम्मीदवार बनने पर फिर से ध्रुवीकरण की संभावना बन सकती है जिसका फायदा संजय झा उठा सकते हैं। अगर संजयकीर्ति और फातमी तीनों लड़े तब भी फायदे में संजय झा होंगे। संजय झा अभी जेडीयू के महासचिव हैं पहले बीजेपी में थे लेकिन साथ रहने के दौरान ही संजय को नीतीश अपने साथ ले आये थे।

बेगूसराय में टिकट की बाजी कौन मारेगा ?

चर्चा है कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह अपनी सीट बदल सकते हैं। गिरिराज पिछली बार ही बेगूसराय से लड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें नवादा भेज दिया। इसके लिए तब रोना धोना भी हुआ था। इस बार बेगूसराय का मैदान साफ है और दिल्ली में उनकी हैसियत भी मजबूत हो चुकी है । ऐसे में संभव है कि पार्टी उनकी सीट बदल दे और उन्हें बेगूसराय लड़ने के लिए भेज दिया जाए । इस स्थिति में नवादा सीट से भूमिहार जाति के हिसुआ से विधायक अनिल सिंह की दावेदारी मजबूत हो सकती है । उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा से बागी होकर अपनी अलग रालोसपा बनाने वाले जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार भी नवादा से दावेदार हो सकते हैं । अरुण कुमार इन दिनों अलग पार्टी बनाकर घूम रहे हैं और उनकी मुहिम को बीजेपी का साथ मिल रहा है । ऐसे में उनका बीजेपी में जाना तय लग रहा है और अगर उनकी बात सुनी गई तो वो जहानाबाद की जगह नवादा को चुनना पसंद करेंगे ।
अगर अरुण कुमार जहानाबाद से ही लड़ते हैं तो फिर सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी (एलजेपी) को नवादा भेजा जा सकता है । तब बिहार में मंत्री ललन सिंह मुंगेर से जेडीयू के उम्मीदवार होंगे । अगर इतना सब कुछ संभव नहीं हुआ तो फिर सब कुछ पहले जैसा होगा नवादा से गिरिराज,जहानाबाद से अरुण और मुंगेर से वीणा सिंह । बेगूसराय की सीट जेडीयू के ललन सिंह के लिए छोडी जा सकती है । टीवी पर बराबर दिखने वाले आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा के भी बीजेपी के टिकट पर बेगूसराय से लड़ने की चर्चा राजनीतिक गलियारों में है । ऐसा सुना जा रहा है कि लेफ्ट से टिकट के लिए जेएनयू वाले कन्हैया कुमार भी कोशिश कर रहे हैं ।
पटना साहिब में शत्रुघन सिन्हा की जगह बीजेपी किसी बड़े चेहरे को आउटसोर्स कर सकती है या फिर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी दावेदार हो सकते हैं ।

नीतीश - मोदी की दोस्ती की गाड़ी यहां आकर रुक जाएगी क्या ?

बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं । 2014 के चुनाव के वक्त एनडीए में तीन पार्टियां ही थी । लेकिन आज पांच पार्टियां सीधे तौर पर एनडीए में शामिल है । जबकि छठी पार्टी भी चुनाव के वक्त हिस्सा बन सकती है । ऐसे में टिकट का बंटवारा कैसे होगा ये बड़ा सवाल है ?

2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो 40 सीटों में से 22 बीजेपी को,  6एलजेपी को और 3 सीटें आरएलएसपी को मिली थी । यानी 40 में से कुल 31 सीटें । तब बीजेपी 30, एलजेपी  7 और आरएलएसपी 3 सीटों पर लड़ी थी । उस वक्त जेडीयू ने अलग चुनाव लड़ा था और पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली थी । यूपीए में शामिल आरजेडी को 4, कांग्रेस को 2, एनसीपी को 1 सीट मिली थी ।
अब जेडीयू और मांझी की पार्टी हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा )एनडीए का हिस्सा है । दोनों साथ रहे तो इनको भी इन्हीं सीटों में से हिस्सा देना होगा । जेडीयू का साथ रहना तो पक्का है मांझी को लेकर अभी कुछ पक्का कहा नहीं जा सकता । वैसे आरएलएसपी के लक्षण भी एनडीए के साथ बने रहने के दिख नहीं रहे हैं ।

आरएलएसपी को हटा दें तो बीजेपी के 22 सांसद और एलजेपी के 6 सांसद मिलाकर 28 होते हैं । यानी जेडीयू के लिए अधिकतम 12 की गुंजाइश बनती है ।
अब ऐसा भी नहीं कि सभी बारह सीटें जेडीयू को ही दी जाएगी क्योंकि बीजेपी के जो उम्मीदवार कम मतों से हारे हैं वो आसानी से दावा नहीं छोड़ेंगे । हारने वालों में शाहनवाज जैसे दिग्गज भी हैं । )

मांझी अगर राज्यपाल नहीं बने और राज्यसभा भी नहीं गये इस स्थिति में साथ रखने के लिए उनको भी खुद के लिए एक और प्रदेश अध्यक्ष वृषण पटेल के लिए एक यानी दो सीटें देनी होगी । इस लिहाज से अधिकतम 10 सीटें ही जेडीयू के लिए दिख रही है । इसमें भी पप्पू यादव साथ आ गए तो एक सीट उनके खाते में जाएगी । यानी नौ ही बचती है जिस पर जेडीयू दावा कर पाएगा या बीजेपी थोड़ा बहुत सोचेगी भी ।
(इतना भी तब जब उपेंद्र कुशवाहा अलग हो जाएंगे)

य़ानी सीट का बंटवारा सिरदर्दी ही साबित होने वाला है । जमीन पर हैसियत टटोलने और अपना संगठन मजबूत करने के लिए कार्यकर्ता सम्मेलन शुरू कर दिया है । थोड़ी देर के लिए अगर इसी को फॉर्मूला मान लें तो अब सवाल ये है कि क्या जेडीयू सिर्फ 10 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगा । मुझे तो ऐसा नहीं लग रहा । लेकिन और रास्ता क्या है एक फॉर्मूला ये बन सकता है कि जेडीयू लोकसभा में कम सीटों पर लड़े और विधानसभा में उसे ज्यादा सीट मिले । लेकिन इसकी गुंजाइश इसलिए कम है क्योंकि बाकी पार्टनर भी हैं । उनका क्या होगा ?

नीतीश पैर पीछे करेंगे ?

2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के पास 115 विधायक थे । लेकिन लालू और कांग्रेस से समझौता कर अपनी जमीन बचाने के लिए नीतीश ने 14 सीटों की कुर्बानी दे दी और 101 सीटों पर उम्मीदवार लड़ाया । यानी नीतीश का पैर पीछे खींचने का रिकॉर्ड पुराना है । इसलिए संभव है कि मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए नीतीश अपने पैर पीछे खींच लें और लोकसभा के लिए दस बारह सीट पर समझौता करके मान जाएं ।
2014 के पहले तक के लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन हुआ करता था । तब जेडीयू 25 और बीजेपी 15 सीटों पर चुनाव लड़ती थी । लेकिन2014 से समीकरण उल्टा हो गया है ।

2014 का रिजल्ट दोहराया तो ?

2014 में बिहार में कुल 6 करोड़ 38 लाख वोटर थे । इनमें से 3 करोड़ 53 लाख 4हजार वोट पड़े थे । 22 सीटें जीतने वाली बीजेपी को 1 करोड़ 5 लाख 43 हजार वोट मिले थे । प्रतिशत में कहें तो 29.86 फीसदी । बीजेपी की सहयोगी एलजेपी को22 लाख 95 हजार यानी 6.5 फीसदी । जेडीयू को 56 लाख 62 हजार वोट मिले यानी 16.04 फीसदी । आरजेडी को 72 लाख 24 हजार वोट यानी 20.46 फीसदी । कांग्रेस को 30 लाख 21 हजार यानी 8.56 फीसदी वोट मिले । एनडीए में बीजेपी+एलजेपी+जेडीयू के वोट जोड़ दें तो कुल 52 फीसदी होता है । यानी आधे से भी ज्यादा । यही समीकरण बना रहा तो फिर लालू और कांग्रेस कहीं टक्कर में नहीं दिखेगी ।

अभी अररिया में लोकसभा उपचुनाव होना है । 2014 में यहां आरजेडी के तस्लीमुद्दीन जीते थे । तस्लीमुद्दीन को उस चुनाव में लाख वोट मिले थे । दूसरे नंबर पर बीजेपी थी जिसे लाख 61 हजार वोट और तीसरे नंबर रहे जेडीयू को लाख21 हजार वोट मिले थे । इस लिहाज से सीट पर दावा तो बीजेपी का ज्यादा बनता है । अब देखना होगा कि किशनगंज की सीट के बदले दोनों दलों में सौदा क्या होता है ।