हरिओम कुशवाहा को मुजफ्फरपुर
जिला जनता दल यूनाइटेड का अध्यक्ष बनाया गया है। वैसे तो हरिओम पार्टी में कई अहम
पदों पर रह चुके हैं लेकिन अध्यक्ष बनने का सपना 15 साल बाद साकार हुआ है। बात उन
दिनों की है जब हरिओम समता पार्टी की युवा इकाई के जिला अध्यक्ष हुआ करते थे।
मुजफ्फरपुर में समता पार्टी के जिला अध्यक्ष को लेकर विवाद चल रहा था। एक गुट
हरिनारायण सिंह को अध्यक्ष बनाना चाहता था तो दूसरा गुट विश्वजीत कुमार को।
तब डॉक्टर हरेंद्र कुमार
मुजफ्फरपुर में पार्टी के सबसे बड़े नेता हुआ करते थे। हरिओम कुशवाहा डॉक्टर साहब
के साथ ही थे। डॉक्टर साहब का खेमा हरिनारायण सिंह की अध्यक्ष के पद पर वापसी चाह
रहा था लेकिन रघुनाथ झा का खेमा विश्वजीत के अलावा किसी नाम पर मानने को राजी नहीं
था। नतीजा हुआ कि जिले में लंबे समय तक दो-दो अध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी काम
कर रही थी। उसी दौरान विवाद के बीच में हरेंद्र कुमार समर्थकों ने एक नया गुट खड़ा
कर दिया। तब इस तीसरे गुट का उदय हरिओम कुशवाहा के नेतृत्व में हुआ था।
15 साल पहले 7 जुलाई 2001 को
सरैयागंज स्थित कमलू भाई के घर पर पार्टी के तमाम प्रकोष्ठों के जिला अध्यक्षों की
बैठक हुई। इस बैठक में युवा के अध्यक्ष हरिओम कुशवाहा, समता सेवा दल के अध्यक्ष शैलेश कुमार शैलू,
महिला समता की जानकी श्रीवास्तव, किसान के अध्यक्ष दिग्विजय नारायण सिंह, पिछड़ा
के अध्यक्ष दिनेश सहनी,
अल्पसंख्यक के जलील हुसैन, दलित
प्रकोष्ठ के अध्यक्ष गोवर्धन पासवान मौजूद थे। इस बैठक में तमाम प्रकोष्ठों के
अध्यक्ष ने मिलकर अध्यक्ष मंडल का गठन किया था। इस अध्यक्ष मंडल के प्रमुख बनाए गए
थे हरिओम कुशवाहा।
इस बैठक के बाद अगले दिन तमाम
अखबारों ने खबर छापी कि मुजफ्फरपुर जिला समता में तीसरे गुट की नींव पड़ी। पार्टी
के भीतर संवैधानिक संकट का खड़ा हो गया था। स्थिति ऐसी थी कि पार्टी के तमाम
प्रकोष्ठों पर किसी तरह की कार्रवाई की हिम्मत प्रदेश नेतृत्व नहीं जुटा पाया था।
लंबे समय तक मुजफ्फरपुर में इस तरह का झगड़ा चलता रहा। बाद में महंथ राजीव रंजन
दास को महानगर का अध्यक्ष और विश्वजीत कुमार को जिला का अध्यक्ष बनाकर दोनों गुटों
को साधने की कोशिश हुई।
इस बैठक को 15 साल होने वाले हैं
और अध्यक्ष की असली कुर्सी तक पहुंचने में हरिओम कुशवाहा को इतना वक्त लग गया।
हरिओम कुशवाहा मुरौल प्रखंड के रहने वाले हैं। हरिओम जब समता पार्टी की युवा इकाई
के जिला अध्यक्ष थे तब मुरौल में पार्टी की राजनीति इन्हीं के हिसाब से चलती थी।
सकरा की राजनीति में पूर्व विधायक सुरेश चंचल कभी हरिओम के करीबी थे। बाद में
दोनों की राजनीति की राह अलग हो गई।
जब पार्टी सत्ता में नहीं थी तब
पद को लेकर बड़ा संघर्ष हुआ करता था। जिला अध्यक्ष से लेकर महानगर के अध्यक्ष पर
सब की सहमति से कभी फैसला नहीं हो पाया। पद को लेकर संघर्ष के उस दौर में हरिओम
कुशवाहा जॉर्ज (हरेंद्र कुमार) गुट में हुआ करते थे। जबकि नीतीश कुमार (गणेश
भारती) का अपना अलग गुट था। लेकिन हरेंद्र कुमार के पार्टी छोड़ने के बाद जिले की
राजनीतिक परिस्थितियां बदल गई। हरिओम कुशवाहा और गणेश भारती उस दौर में एक दूसरे
के राजनीतिक विरोधी हुआ करते थे। लेकिन अब पार्टी में न तो जॉर्ज हैं और ना ही
हरेंद्र कुमार, लिहाजा हरिओम कुशवाहा को पार्टी ने जिले में गणेश भारती का
उत्तराधिकारी बनाया है।
हरिओम कुशवाहा के साथ पार्टी ने
उन अमरीश कुमार (कमलू भाई के बेटे) को महानगर का अध्यक्ष बनाया है जो कभी विभात
कुमार और माधव जी के वक्त पद को लेकर चल रहे विवाद में अपने लिए तीसरा कोण देखा
करते थे। अमरीश युवा इकाई में तब प्रदेश के सचिव, महासचिव हुआ करते थे। बाद में
इनसे बहुत जूनियर रहे शब्बीर अहमद को महानगर का अध्यक्ष बना दिया गया। लेकिन
विधानसभा चुनाव में जिस तरह से शब्बीर ने पार्टी के फैसलों का विरोध किया उनकी
छुट्टी तय मानी जा रही थी।
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