Sunday, November 28, 2010

असली परीक्षा तो अब होगी



विकास, विकास और विकास। बिहार की नई पीढ़ी विकास का नाम भूल चुकी थी। लेकिन पिछले पांच सालों के दौरान उसने जो कुछ देखा, सुना उसका नतीजा है कि आज देश में विकास की बात हो रही है और बिहार का नाम लोग ले रहे हैं। नीतीश की जीत के कई मायने है। लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती है लोगों के लिए रोजगार के अवसर को पैदा करना। बिहार में बंद हो चुके उद्योग धंधे को फिर से पटरी पर लाना। बिहार से बाहर गए लोगों को बिहार वापस लाना। अब नीतीश के पास इसके बारे में क्या मॉडल है इसका खुलासा अभी न तो बिहार के सामने हुआ है और ना ही देश के सामने। बिहार की सियासत को बिरादरी की वजह से लोग ज्यादा जानते थे। इस बार भी बिरादरी को कम करके किसी ने नहीं आंका था लेकिन नीतीश से आस लगाए हर धर्म, जाति के लोगों ने बिरादरी को बाय बाय कर विकास को गले लगाया। कारण था उम्मीद। लोगों ने नीतीश कुमार में अपनी खुशहाली की तस्वीर देखी। लिहाजा नीतीश को दिल खोलकर करने का मौका दिया है। पिछले पांच साल की तुलना लालू-राबड़ी के पंद्रह साल से होती रही, लिहाजा नीतीश का पांच साल भारी पड़ा। अब जब नीतीश की तुलना उनके अपने पांच साल से होनी है लिहाजा चुनौती बड़ी है। बिहार में रहने वाले लोग अब चमचमाती सड़कों के आदि हो चुके हैं। उनके लिए चमचमाती सड़कें, स्कूल में समय पर शिक्षकों का आना, अस्पताल में डॉक्टरों का समय से पहुंचना धीरे धीरे पुरानी बातें होती चली जाएंगी। बिहार से बाहर रहने वाले लोग साल में पर्व त्योहार, शादी ब्याह के मौके पर एक आध बार बिहार जाते हैं लिहाजा उनके लिए चमचमाती सड़कें और वहां का बदला माहौल जरूर नया होता है लेकिन जो लोग वहीं रहते हैं उनके लिए ये बातें नई नहीं होंगी। लिहाजा अब उनकी नई अपेक्षाओं पर खुद को साबित करना नीतीश के लिए चुनौती का काम होगा।
बिहार की पुरानी सड़कें चमचमा जरूर रही है, लेकिन ट्रैफिक की समस्या बड़ी समस्या बनती जा रही है। चाहे पटना हो या मुजफ्फरपुर। छपरा, दरभंगा और जहानाबाद हर शहर और शहर के बाहर व्यस्त सड़कों पर ट्रैफिक का बोझ बढ़ता जा रहा है। कारण भी है बिहार के लोगों की परचेंजिंग कैपेसिटी जिस अनुपात में बढ़ रही उस अनुपात में कोई ग्रेटर पटना या ग्रेटर दरभंगा टाइप नया कुछ नहीं हो रहा है। और फोर लेन या सिक्स लेन का मामला हर जगह के लिए है भी नहीं। इस टाइप की समस्या से निपटने के लिए भी कुछ जल्दी ही करना होगा।
सेंट्रल यूनिवर्सिटी, आईआईटी, आईआईएम टाइप आइटम भी 9 करोड़ वाले बिहार को चाहिए। कब तक यहां के लड़के टपला खाते फिरेंगे। जात पात के बंधन से ऊपर उठकर लोगों ने मौका दिया है तो हर लेवल पर मुस्तैदी से खड़ा होना होगा।
विरोधी तो विरोधी समर्थक भी कहते हैं कि नीतीश के कार्यकाल में अफसरशाही को मजबूती मिली है, और घूसखोरी, भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। सच्चाई भी है। लूटने की आदत पहले से पड़ी हुई है जिसका ठीक करना होगा। ट्रांसफर, पोस्टिंग और छोटी मोटी बहालियों में भी लाखों का खेल रुका नहीं है। अंतर इतना हुआ कि पहले टेबल के ऊपर से होता था अभी टेबल के नीचे से हो रहा है, इस चीज को सुधारने का मौका बिहार के लोगों ने दिया है।
अपराध पूरी तरह काबू में नहीं आ सकता इसको हर कोई मानता है लेकिन अपराधियों को जिनका आशीर्वाद मिला है वैसे लोगों पर कंट्रोल कीजिए ताकि समाज खुशी से कमा सके, खा सके। लोग खुश रहेंगे, आप खुश रहेंगे। लोगों को कष्ट हुआ तो आप भी चैन से सो नहीं पाएंगे, उन लोगों की तरह।
फिलहाल चुनौतियां पहले से ज्यादा है।साबित को साबित करना है जो कर दिया उसको भी ले चलना है। करने के लिए पूरा वक्त भी है। सत्ता के अहंकार का वक्त नहीं है। अभी वक्त माहौल को और ठीक करने का है। और हां किसी और के लिए बिहार में फिलहाल कोई स्कोप नहीं है। ऊपर से इतिहास गवाह है बिहार की धरती पर उठकर जो गिर गया दोबारा कभी नहीं उठा है। मौका बेहतर है सेवा करके साबित कीजिए । इस बार सत्ता के शिखर पर पहुंचाने वाला वोटर न तो कुर्मी था न कोइरी, न कोई राजपूत,भूमिहार, वैश्य, मुसलमान या फिर यादव, पूरे बिहार ने चुना है अब बिहार को यकीन दिलाइए।

1 comment:

Amit Chandra said...

बिल्कुल सही कह रहे है आप मनोज जी। अगली बार का चुनाव लालु बनाम नितिश नही बल्कि नितिश बनाम नितिश होगा और देखना ये है कि पिछला पॉच साल भारी पडता है या आने वाला पॉच साल। तथ्यपरक लेख के लिए आभार। कभी हमारे ब्लाग पर भी नज़र डाले।