Wednesday, December 23, 2009
मैच में मारपीट
मैच में मजा आ रहा था.. विपक्षी टीम के खिलाफ हमारे खिलाड़ियों ने अच्छा खासा स्कोर खड़ा किया था। पिछला मैच हमलोग हार चुके थे.. इसबार जीत के प्रति निश्चिंत थे, फिर भी तनाव था। थोड़ी देर पहले दो महिलाएं(मजदूर)मैदान पर मिट्टी डाल रही थी, (घास जमाने का काम चल रहा था) जिस पिच पर खेल चल रहा था उसी पिच पर घास डालने आ पहुंचीं दोनों...लोगों ने मना किया.. हां-ना करते करते मान गई। मैच चल रहा था। तभी फिल्डिंग करते वक्त एक गेंद मैच देख रहे शख्स को लगी। बेचारे की हालत खराब हो गई.. जोर से गेंद लगी थी.. लेकिन यहां तो मामला मैच में जीत को लेकर ज्यादा उत्सुकता से भरा था, फिर किसको चोट लगी और कौन घायल हुआ.. इसकी चिंता किसको थी। खैर... नहीं मालूम था हमलोगों को कि जिसे चोट लगी है वो कौन है। तभी वो दोनों महिलाएं एक बार फिर से मिट्टी लेकर पिच की तरफ बढ़ी चली आ रही थी। जिस बेचारे को गेंद से चोट लगी थी, दुखी था, गुस्से में भी..उसने महिलाओं से कहा- यहीं पिच पर मिट्टी डालो...जहां मिट्टी डालने को लेकर बहस चल रही थी, वहीं निप्पू फिल्डिंग कर रहा था। महिलाओं ने मिट्टी डालकर खेल में खलल डाल दिया। तभी.. निप्पू ने उस शख्स को एक थप्प़ड़ लगा दिया जिसको कुछ देर पहले गेंद से चोट लगी थी। बेचारा चोट लगने की घटना को सीरियसली लेकर चल रहा था। कहा सुनी तेज हो गई... मामला बिगड़ने लगा...बैट, विकेट सब उखड़ गया। सब लोग वहां पहुंच गये... वो दोनों महिलाएं जो बवाल की मुख्य किरदार थीं...एक की उम्र 70 से ऊपर की रही होगी जबकि दूसरे की 45-50 के आसपास...दोनों क्या कुछ बोल रही थी.. हमलोग नहीं समझ रहे थे, इतना जरूर था कि हमलोगों के बारे में कुछ गलत-सलत बोल रही है... लेकिन स्थानीय बोली के जानकार विमल जी को उनकी बातें समझ में आ रही थी.. दोनों महिलाएं गालियां दे रही थी (लोकल)...विमल ने भी महिलाओं को जवाब देकर वहां से हटाने की कोशिश की..लेकिन दोनों मानने वाली नहीं थी। मामले की गंभीरता को समझते हुए दर्जनों की संख्या में काम कर रही महिला मजदूर मौके पर पहुंच गई। तब तक 'बेचारा' दो तीन थप्पड़ खा चुका था। मुकेश जी भी बैट लेकर पहुंच गये। मैच का मजा किरकिरा हो रहा था। जैसे तैसे करके उनलोगों को वहां से हटाया गया। जो मार खाया था उसका घर वहीं पास में था.. महिलाओं की 'गिरोह' के साथ ठेकेदार से शिकायत करने चला गया। हमलोग फिर से मैच खेलने लगे। तय दस ओवर में विपक्षी टीम को हार का सामना करना पड़ा। टीम जीत गई। हमलोग घर लौटे। लेकिन मैच में मारपीट के चलते मजा किरकिरा हो गया।
Wednesday, December 2, 2009
गजब हैं सर!
निखिल जी गजब के आदमी हैं। उस वक्त भी मेरी नाइट शिफ्ट ही थी, मई-जून का महीना था साल दो हजार छे में। निखिल सर ने ज्वाइन ही किया था। एसोसिएट प्रोड्यूसर थे तब। मैं चैनल में उनसे पांच-सात महीना सीनियर था वैसे था ट्रेनी ही। हम दोनों की जब जान पहचान हुई तो उसके अगले दिन से ही हम लोग एक दूसरे से इतने घुल मिल गये कि लगा ही नहीं कि हम लोगों की कल ही मुलाकात हुई है। प्योर देसी अंदाज में हमलोगों ने मुंबई के न्यूज रूम का माहौल बदल दिया। मैं उस समय वाशी में रहता था, निखिल सर हीरानंदानी में। रात में हमलोग एक ही गाड़ी से दफ्तर आते थे। उनके काम करने का अंदाज उनके वीओ का अंदाज.... आप तुलना नहीं कर सकते। जुलाई में हमलोग मुंबई से दिल्ली आ गए। सबसे पहले अपनी शिफ्ट में मैं आया, फिर बाकी लोग। अरुण सर के नेतृत्व में हमलोगों ने काम करना शुरू किया, डीएलएफ से सुबह का बुलेटिन लॉन्च हुआ। करीब सवा महीने तक हमलोगों ने कोई ऑफ नहीं लिया। उसी दौरान नवीन सर भी नाइट की शिफ्ट में आ गए थे। डीएलएफ में निखिल सर को सुबह साढ़े सात का प्रोग्राम मिला। आधे घंटे की बड़ी खबर। यकीन नहीं करेंगे। पांच बजे खबर तय होती थी, साढ़े सात में छे-सात पैकेज कटकर लगे होते थे। कुछ खबरों का वीओ तो निखिल सर बिना कॉपी के ही मुजबानी कर दिया करते थे। जबकि उस वक्त सात बजे 30-30 चला करता था। इसके बाद दफ्तर फिर नोएडा में आया। मार्च 2007 में मैं सुबह की शिफ्ट में आ गया निखिल सर कुछ दिनों के लिए रात में ही रुके। इसके बाद साथ-साथ काम करने का बहुत कम ही मौका मिला। एक बार नवरात्रि के दौरान हमदोनों कुछ दिनों के लिए सुबह की शिफ्ट में साथ थे। एक वॉकथ्रू को लेकर विवाद हो गया... ध्यान ही नहीं रहा...कि हमलोगों के बीच गर्मागर्मी तक हो गई। बाद में मैंने माफी मांगी, लेकिन उन्होंने अरुण सर से बोलकर अपनी शिफ्ट बदलवा ली, मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई.....खैर कुछ हो नहीं सकता था। इसके बाद बहुत दिनों तक हमलोगों ने साथ में काम नहीं किया। नवंबर 2008-दिसंबर 2008 में एक बार फिर मुझे एक शिफ्ट में काम करने का मौका मिला। दो महीने के लिए शाम की शिफ्ट में काम करने गया था। (4 साल में 2 महीने), बड़ा अच्छा लगता है जब आप अपने ऊपर के अधिकारी के करीबी होते हैं। कभी-कभी कुछ खबरों पर काम करने की मेरी इच्छा नहीं होती तो पहले ही पूछ लेते किस खबर पर काम करना है। अच्छा लगता आप अपने हिसाब से काम करते हो। दो महीने बाद मैं नाइट में चला गया। तीन महीने की नाइट शिफ्ट हो चुकी थी अब।
जब कई दिनों तक हमलोग नहीं मिलते तो वो रात में दफ्तर मेरे आने का इंतजार करते साथ में और साथियों को भी रोके रहते। फिर मैं भी जल्दी पहुंचता और सब लोगों के साथ करीब आधे घंटे-एक घंटे लंबी चर्चा होती। जनवरी2009 से मार्च 2009 तक मैं नाइट शिफ्ट में रहा। अप्रैल में सुबह की शिफ्ट में आया। चुनाव का वक्त था। शाम को शिफ्ट खत्म करने के बाद मैं देर तक रुकता और फिर हमलोग 7-7.30 बजे चाय पीते और मैं निकलता और बाकी लोग अपने काम में लग जाते। तीन महीने बाद निखिल जी की नाइट लगी। सुबह हमलोगों की मुलाकात होती, खबरों पर चर्चा होती, लेकिन ज्यादा देर तक वो नहीं रुकते। जब वो शाम की शिफ्ट में आए तो मेरी नाइट फिर से लग गई। मुलाकात के लिए वो देर तक रुकते और मैं जल्दी आता। घर जाने का कभी कभी तो मौका मिलता है। निखिल जी के साथ जिसने भी काम किया उनकी शिफ्ट में उसका वो हमेशा ख्याल रखते। सत्येश हो तब या फिर गोकर्ऩ जी। हाल में शीतल मणि और विनयश्री, अमित भी उनके साथ नाइट की टीम में थे। इन लोगों के ऊपर भरोसा करके उन्होंने पूरी जिम्मेदारी दे रखी थी। अभिनित, रश्मि, यश, विवेक और निप्पू की बात ही छोड़ दीजिए। विवेक और अमित भाटिया जब चैनल में पहले दिन आए थे तो सबसे पहला परिचय ही आउटपुट में निखिल सर से हुआ था। अब जब निखिल सर ने चैनल को अलविदा कह दिया, ये लोग कैसे रह पाएंगे, और कैसे काम कर पाएंगे... बेहतर यही बताएंगे। गाली देना उन्होंने इधर शुरू किया है। पहले वो गाली नहीं देते थे, चिल्लाते भी नहीं थे। समय के साथ का बदलाव है ये। कुछ लोगों को गाली देकर ही उन्होंने इंडस्ट्री में काम का तरीका बताया। इस कला को भी पसंद करते हैं लोग। एक चेले ने तो जात-पात करने का भी आरोप लगा दिया। लेकिन ऐसा बिल्कुल ही नहीं है। वैसे सिर्फ यही लोग कमजोर नहीं हुए हैं। मैं तो ये समझता हूं कि निखिल जी के जाने से अरुण सर को भी व्यक्तिगत रूप से घाटा हुआ है। निखिल सर जैसे लोग सफर में बहुत कम मिलते हैं। पहले तो टाइम टेबुल की जानकारी होती थी, किस दिन छ्टुटी है, कब घर पे हैं। अब तो पता भी नहीं चलेगा। फोन करना पड़ेगा। हो सकता है कभी कहे कि अभी उपभोक्ता व्यस्त है... कभी फोन उठाए तो हो सकता हो कुछ कर रहे हो... खैर....कई लोग आए और गए लेकिन आपका जाना बहुतों पर भारी पड़ रहा है। इस उम्मीद के साथ अब उठ रहा हूं कि स्टार न्यूज तो बस एक पड़ाव था....आगे फिर मौका मिलेगा तो साथ काम करेंगे, लेकिन सब लोग शायद तब भी साथ नहीं होंगे। अंत में यही कहूंगा कि निखिल सर जैसे लोग बहुत कम मिलते हैं। लेकिन उनका फैसला कहीं से भी उचित नहीं है। और उससे भी बड़ा उन लोगों का फैसला गलत रहा जिन्होंने उनको जाने की इजाजत दी।
जब कई दिनों तक हमलोग नहीं मिलते तो वो रात में दफ्तर मेरे आने का इंतजार करते साथ में और साथियों को भी रोके रहते। फिर मैं भी जल्दी पहुंचता और सब लोगों के साथ करीब आधे घंटे-एक घंटे लंबी चर्चा होती। जनवरी2009 से मार्च 2009 तक मैं नाइट शिफ्ट में रहा। अप्रैल में सुबह की शिफ्ट में आया। चुनाव का वक्त था। शाम को शिफ्ट खत्म करने के बाद मैं देर तक रुकता और फिर हमलोग 7-7.30 बजे चाय पीते और मैं निकलता और बाकी लोग अपने काम में लग जाते। तीन महीने बाद निखिल जी की नाइट लगी। सुबह हमलोगों की मुलाकात होती, खबरों पर चर्चा होती, लेकिन ज्यादा देर तक वो नहीं रुकते। जब वो शाम की शिफ्ट में आए तो मेरी नाइट फिर से लग गई। मुलाकात के लिए वो देर तक रुकते और मैं जल्दी आता। घर जाने का कभी कभी तो मौका मिलता है। निखिल जी के साथ जिसने भी काम किया उनकी शिफ्ट में उसका वो हमेशा ख्याल रखते। सत्येश हो तब या फिर गोकर्ऩ जी। हाल में शीतल मणि और विनयश्री, अमित भी उनके साथ नाइट की टीम में थे। इन लोगों के ऊपर भरोसा करके उन्होंने पूरी जिम्मेदारी दे रखी थी। अभिनित, रश्मि, यश, विवेक और निप्पू की बात ही छोड़ दीजिए। विवेक और अमित भाटिया जब चैनल में पहले दिन आए थे तो सबसे पहला परिचय ही आउटपुट में निखिल सर से हुआ था। अब जब निखिल सर ने चैनल को अलविदा कह दिया, ये लोग कैसे रह पाएंगे, और कैसे काम कर पाएंगे... बेहतर यही बताएंगे। गाली देना उन्होंने इधर शुरू किया है। पहले वो गाली नहीं देते थे, चिल्लाते भी नहीं थे। समय के साथ का बदलाव है ये। कुछ लोगों को गाली देकर ही उन्होंने इंडस्ट्री में काम का तरीका बताया। इस कला को भी पसंद करते हैं लोग। एक चेले ने तो जात-पात करने का भी आरोप लगा दिया। लेकिन ऐसा बिल्कुल ही नहीं है। वैसे सिर्फ यही लोग कमजोर नहीं हुए हैं। मैं तो ये समझता हूं कि निखिल जी के जाने से अरुण सर को भी व्यक्तिगत रूप से घाटा हुआ है। निखिल सर जैसे लोग सफर में बहुत कम मिलते हैं। पहले तो टाइम टेबुल की जानकारी होती थी, किस दिन छ्टुटी है, कब घर पे हैं। अब तो पता भी नहीं चलेगा। फोन करना पड़ेगा। हो सकता है कभी कहे कि अभी उपभोक्ता व्यस्त है... कभी फोन उठाए तो हो सकता हो कुछ कर रहे हो... खैर....कई लोग आए और गए लेकिन आपका जाना बहुतों पर भारी पड़ रहा है। इस उम्मीद के साथ अब उठ रहा हूं कि स्टार न्यूज तो बस एक पड़ाव था....आगे फिर मौका मिलेगा तो साथ काम करेंगे, लेकिन सब लोग शायद तब भी साथ नहीं होंगे। अंत में यही कहूंगा कि निखिल सर जैसे लोग बहुत कम मिलते हैं। लेकिन उनका फैसला कहीं से भी उचित नहीं है। और उससे भी बड़ा उन लोगों का फैसला गलत रहा जिन्होंने उनको जाने की इजाजत दी।
काश! मैं दिन की शिफ्ट में होता....
दो महीने की नाइट शिफ्ट इस बार खत्म हो चुकी है। अभी एक महीने बचे हैं। लेकिन इस वक्त कोसने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। अगर नाइट की शिफ्ट नहीं होती और मैं दिन की शिफ्ट में होता तो
शायद निखिल सर को नहीं जाने देता। शुक्रवार की रात यश ने फोन किया, मैं सोया हुआ था, बताया कि
एक गड़बड़ हो गई है सो निखिल सर ऑफिस छोड़कर घर चले गये हैं, शाम को कुछ विवाद हुआ था।
मैंने निखिल सर को फोन किया, लंबी बातचीत हुई...लेकिन सर अड़े हुए थे। रात में ऑफिस गया काम निपटाने के बाद सुबह सीधा उनके घर चला गया। करीब दो-तीन घंटे तक साथ रहे, बातचीत हुई, इस बीच दफ्तर से कई लोगों के फोन भी उनके मोबाइल पर आते रहे, बातचीत चलती रही। अंत में सहमति बन चुकी थी। मैं घर आ गया। रात में कोई बात नहीं हुई। रविवार की सुबह नवीन सर को फोन किया... नवीन सर उनके घर पर थे। उन्होंने बताया कि सब सामान्य हो चुका है। सोमवार यानी कल से मामला ठीक हो जाएगा। मैं तो निश्चिंत हो ही गया था, बाकी मित्रों को भी निश्चिंत कर दिया। सोमवार की सुबह करीब एक घंटे तक दफ्तर के बाहर हमलोगों ने बात की। नवीन सर, निखिल सर, यश तीनों ऑफिस में घुसे, हमलोग अपने घर चल दिये। सबको यकीन हो गया था कि मामला निपट गया है। अब सब ठीक है। रात में सोकर ,उठा तैयार हुआ, भूख लगी थी लेकिन घर में खाने का इंतजाम नहीं था।
सोचा ऑफिस जाकर खाऊंगा। जल्दी ऑफिस निकल गया था। जैसे ही स्कूटर से अंदर घुसा सामने अभिनित और प्रवीण जी मिल गये। मुझे किसी तरह की कोई आशंका नहीं थी, सिर्फ भूख लगी थी इसलिए थोड़ी चिंता थी, कि कैंटीन जाकर कुछ खा लूं, लेकिन प्रवीण जी ने चर्चा शुरू कर दी। मैं अब अनमने तरीके से सुन रहा था, क्योंकि ताजा सच्चाई से मैं अवगत नहीं था। अंत में उन्होंने कहा....
"और इन लोगों ने इस्तीफा उनका मंजूर भी कर लिया.." मैं सुनकर अवाक रह गया, कुछ बोल नहीं पाया। फिर मैंने पूरी जानकारी उनसे ली। भूख तो खत्म हो चुकी थी। अभिनित ने बताया कि अब कोई गुंजाइश नहीं है। अंदर ऑफिस में दाखिल हुआ तो वहां भी सर्वर ने सिस्टम का माचो कर रखा था।
मैंने सर से पूछा..... करीब आधे घंटे तक इसी मुद्दे पर बातचीत की, इस फैसले से दुखी वो भी थे। लेकिन शायद उनके हाथ सिस्टम से बंधे थे खैर.....
सुबह सुबह उनका मैसेज आया...... मेयर वाले पैकेज में कांग्रेस का आंकड़ा ठीक कर दो। अभी भी स्टार न्यूज ही देख रहे थे। बाद में हमलोग शिफ्ट खत्म करके उनके घर पहुंचे। बातचीत की शुरुआत मैंने कि सर "आप तो चार सौ बीस निकले....."
उन्होंने स्वीकार किया कि हां मैंने तुमलोगों के साथ ऐसा कर दिया.....लेकिन क्यों किया उसका जवाब भी हमलोगों के लिए ही था। कारण भी हम ही थे।
निखिल सर ने सोमवार की घटना का जिक्र करना शुरू किया...
काम करने के मूड से ही दफ्तर आया था। ऑफिस में काम भी शुरू किया। लेकिन जिस मुद्दे को लेकर शिकायत थी, वो शिकायत दूर नहीं हुई। जिस चीज को सुधारने का वादा किया गया वो चीजें तो बिल्कुल नहीं बदली। बंद शीशे के पीछे बैठक शुरू हो गई, कार्यक्रम से जुड़े सभी सीनियर पहुंच गये। लेकिन उस टीम के जूनियरों को कोई पूछा तक नहीं। यहीं बात इस वक्त के फैसले के लिए काफी था....
शायद निखिल सर को नहीं जाने देता। शुक्रवार की रात यश ने फोन किया, मैं सोया हुआ था, बताया कि
एक गड़बड़ हो गई है सो निखिल सर ऑफिस छोड़कर घर चले गये हैं, शाम को कुछ विवाद हुआ था।
मैंने निखिल सर को फोन किया, लंबी बातचीत हुई...लेकिन सर अड़े हुए थे। रात में ऑफिस गया काम निपटाने के बाद सुबह सीधा उनके घर चला गया। करीब दो-तीन घंटे तक साथ रहे, बातचीत हुई, इस बीच दफ्तर से कई लोगों के फोन भी उनके मोबाइल पर आते रहे, बातचीत चलती रही। अंत में सहमति बन चुकी थी। मैं घर आ गया। रात में कोई बात नहीं हुई। रविवार की सुबह नवीन सर को फोन किया... नवीन सर उनके घर पर थे। उन्होंने बताया कि सब सामान्य हो चुका है। सोमवार यानी कल से मामला ठीक हो जाएगा। मैं तो निश्चिंत हो ही गया था, बाकी मित्रों को भी निश्चिंत कर दिया। सोमवार की सुबह करीब एक घंटे तक दफ्तर के बाहर हमलोगों ने बात की। नवीन सर, निखिल सर, यश तीनों ऑफिस में घुसे, हमलोग अपने घर चल दिये। सबको यकीन हो गया था कि मामला निपट गया है। अब सब ठीक है। रात में सोकर ,उठा तैयार हुआ, भूख लगी थी लेकिन घर में खाने का इंतजाम नहीं था।
सोचा ऑफिस जाकर खाऊंगा। जल्दी ऑफिस निकल गया था। जैसे ही स्कूटर से अंदर घुसा सामने अभिनित और प्रवीण जी मिल गये। मुझे किसी तरह की कोई आशंका नहीं थी, सिर्फ भूख लगी थी इसलिए थोड़ी चिंता थी, कि कैंटीन जाकर कुछ खा लूं, लेकिन प्रवीण जी ने चर्चा शुरू कर दी। मैं अब अनमने तरीके से सुन रहा था, क्योंकि ताजा सच्चाई से मैं अवगत नहीं था। अंत में उन्होंने कहा....
"और इन लोगों ने इस्तीफा उनका मंजूर भी कर लिया.." मैं सुनकर अवाक रह गया, कुछ बोल नहीं पाया। फिर मैंने पूरी जानकारी उनसे ली। भूख तो खत्म हो चुकी थी। अभिनित ने बताया कि अब कोई गुंजाइश नहीं है। अंदर ऑफिस में दाखिल हुआ तो वहां भी सर्वर ने सिस्टम का माचो कर रखा था।
मैंने सर से पूछा..... करीब आधे घंटे तक इसी मुद्दे पर बातचीत की, इस फैसले से दुखी वो भी थे। लेकिन शायद उनके हाथ सिस्टम से बंधे थे खैर.....
सुबह सुबह उनका मैसेज आया...... मेयर वाले पैकेज में कांग्रेस का आंकड़ा ठीक कर दो। अभी भी स्टार न्यूज ही देख रहे थे। बाद में हमलोग शिफ्ट खत्म करके उनके घर पहुंचे। बातचीत की शुरुआत मैंने कि सर "आप तो चार सौ बीस निकले....."
उन्होंने स्वीकार किया कि हां मैंने तुमलोगों के साथ ऐसा कर दिया.....लेकिन क्यों किया उसका जवाब भी हमलोगों के लिए ही था। कारण भी हम ही थे।
निखिल सर ने सोमवार की घटना का जिक्र करना शुरू किया...
काम करने के मूड से ही दफ्तर आया था। ऑफिस में काम भी शुरू किया। लेकिन जिस मुद्दे को लेकर शिकायत थी, वो शिकायत दूर नहीं हुई। जिस चीज को सुधारने का वादा किया गया वो चीजें तो बिल्कुल नहीं बदली। बंद शीशे के पीछे बैठक शुरू हो गई, कार्यक्रम से जुड़े सभी सीनियर पहुंच गये। लेकिन उस टीम के जूनियरों को कोई पूछा तक नहीं। यहीं बात इस वक्त के फैसले के लिए काफी था....
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