पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि
देश में लाखों-करोड़ों लोग ऐसे होंगे जिन्होंने नागा साधुओं को कभी अपनी आंखों से नहीं देखा होगा। जब भी कोई कुंभ होता है नागा साधु चर्चा में आ जाते हैं। इस बार
उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ लग रहा है। और इस बार भी नागा साधु हिंदुओं के इस बड़े
उत्सव में आकर्षण का केंद्र हैं।
कुंभ मेले के बाद नागा साधु कहां
लुप्त हो जाते हैं, ये सबसे बड़ा रहस्य का विषय है। लेकिन उससे भी रहस्यमयी है इन
नागा साधुओं की जिंदगी। नागा साधु बनाने का काम हरिद्वार और उज्जैन के कुंभ में ही
होता है। बाकी दोनों जगह इलाहाबाद और नासिक में नए नागा साधु नहीं बनाए जाते। नागा
साधु बनने की प्रक्रिया काफी कठिन है। परिवार समाज को त्याग कर इस दुनिया में आने
वाले साधुओं को ब्रह्मचर्य का पालन करन होता है। नागा बनाने से पहले ये सुनिश्चित
कर लिया जाता है कि वो साधु वासना और इच्छाओं से मुक्त हो चुका है। अखाड़े में जब
साधु नागा बनने के लिए आते हैं तो सबसे पहले उनके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती
है। इस परीक्षा को पास करने में साधुओं को महीनों से लेकर सालों तक का वक्त लग
जाता है। ब्रह्मचर्य की परीक्षा पास होने के बाद उन्हें महापुरुष का दर्जा मिलता
है। इसके बाद भी कई कठिन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद उन्हें अवधूत बनाया जाता
है।
इस वक्त ही नागा साधु बनने जा
रहे साधुओं को अपना खुद का पिंडदान करना होता है यानी सांसरिक और भौतिक दुनिया से
उसे खुद को मुक्त करना होता है। इसके बाद आखिरी दौर होता है। जब अवधूत नागा बनता
है। इसके लिए 24 घंटे बिना कपड़ों के अखाड़े के नीचे साधु को खड़ा होना होता है।
इसी दौरान वैदिक मंत्रों के जरिये उनके लिंग को अखाड़े के वरिष्ठ साधु झटके देकर
निष्क्रिय करते हैं।
और फिर तैयार होता है एक नया
नागा। उज्जैन में जो साधु तैयार होते हैं उन्हें खूनी नागा कहा जाता है। यानी वैसे
नागा जो धर्म की रक्षा के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार रहते हैं। नागा साधु का
मतलब होता है बिना कपड़ों के दिखने वाला। बदन को भभूत से लपेटे हुए। रूप रंग
डरावना लगता है लेकिन एक अलग सी चमक भी होती है। कपड़ों की जगह नागा साधु भभूत ही
शरीर पर लपेटते हैं। जटा वाले बाल। माथे पर लंबा और बड़ा सा चंदन इनका श्रृंगार
है।
अमूमन किसी भी नागा को कपड़े
पहनने की इजाजत नहीं होती है। लेकिन विशेष परिस्थिति में उन्हें गुरुए कपड़े पहनने
की अनुमति दी गई है। 24 घंटे में एक बार ही खाना खाना होता है। एक दिन में सात घर
से ज्यादा मांगने की अनुमति भी नहीं होती। यानी सात घरों में भीक्षा नहीं मिलने पर
उन्हें भूखे ही सोना पड़ता है। नागा साधु जमीन पर ही सोते हैं।
7 शैव और 3 वैष्णव अखाड़े हैं और
सभी अखाड़ों के अपने अपने नागा साधु होते हैं। इनके बीच फर्क करना बड़ा मुश्किल
होता है। लेकिन कुंभ के दौरान किसी भी शाही स्नान में सबसे पहले इन्हीं नागाओं को
नहाने की अनुमति होती है। नागा साधु के नहाने के बाद ही बाकी लोग नहाते हैं। जिस
रास्ते से नागाओं का जुलूस कुंभ में निकलता है उस रास्ते पर आम लोगों के आने जाने
की अनुमति नहीं होती।
अमूमन नागा साधुओं को गुस्से के
लिए जाना जाता है । हाथ में त्रिशूल, तलवार, शंख, गदा लेकर भ्रमण करते हैं।
ज्यादातर नागा साधु जंगल, पहाड़ के इलाकों में रहने चले जाते हैं। बहुत नागा अपने
अपने आश्रम में रहते हैं। ज्यादातर समय ये गुप्त ही रहते हैं।
नागा बनने से पहले खुद का तपर्ण
और पिंडदान कर देते हैं इसलिए इन्हें सामाजिक रूप से जिंदा नहीं माना जाता। तब ये
देश के नागरिक भी नहीं रह जाते। इसीलिए वोटर लिस्ट में इनका नाम दर्ज नहीं होता।
नागा बनने की प्रक्रिया के दौरान
ही अपने शरीर को इस कदर तैयार करते हैं कि ताकि. जाड़ा और गर्मी से कोई परेशानी न
हो। सड़क पर नागा साधु का दर्शन हिंदू धर्म में सौभाग्य की बात है। इतिहास में
नागा साधु बनाने की परंपरा आश्रम, अखाड़ों की रक्षा के लिए की गई थी। लेकिन ये
परंपरा अब भी जारी है। उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में पचास हजार साधु नागा साधु बनने
वाले हैं।